बाबा रामदेव का चेहरा तक नहीं देखना चाहते उनके गुरू

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काले धन को लेकर योग गुरू बाबा रामदेव ने भले ही सरकार की नाक में दम कर दिया हो लेकिन रामदेव के गुरू उनके खासे खफा हैं। नेत्र ज्योति प्रदान करने एवं आयुर्वेदिक तथा योग की शिक्षा देने वाले गुरु चैतन्य आनंद उर्फ बंगाली अब अपने शिष्य से इस हद तक खिन्न हैं कि वह उनकी सूरत देखना तो दूर नाम तक सुनना पसंद नहीं करते।

यूपी के बिजनौर जिले से तेरह किलोमीटर दूर ऐतिहासिक विदुर कुटी के पास एक छोटे से आश्रम में अपने जीवन के अंतिम क्षण में वह अपने शिष्य रामदेव के व्यवहार से खासे खिन्न हैं। बंगाली बाबा को दुख के साथ गुस्सा भी है कि रामदेव ने उनकी दी गई शिक्षा का दुरूपयोग किया है और उसे धन कमाने का धंधा बना लिया है।

अयत्न वृद्घ हो चुके बंगाली बाबा आज भी अपने सीमित साधनों के तहत लोगों की निस्वार्थ सेवा और इलाज करते हैं। वह अपने शिष्य रामदेव से इतने नाराज हैं कि वह रामदेव से किसी प्रकार का सहयोग भी लेना नहीं चाहते। रामदेव बंगाली बाबा के शिष्य बनने का किस्सा भी बड़ा रोचक है। लगभग दो दशक पूर्व रामदेव नेत्र की ज्योति खो जाने पर बंगाली बाबा की शरण में आया थे।

बाबा के आश्रम और आर्शीवाद से रामदेव को न केवल नेत्र ज्योति मिली थी बल्कि योग शिक्षा एवं एक हजार पृष्ठों का एक आयुर्वेदिक ग्रन्थ भी मिला था जिससे रामदेव आज पतंजलि औषधालय चला रहे हैं। बंगाली बाबा की शिक्षा और कृपा से आज रामदेव विश्व प्रसिद्ध हैं। अपने गुरू को याद नहीं करने पर बंगाली बाबा ने सिर्फ इतना कहा कि कई साल पहले आया था।

आज बंगाली बाबा रामदेव को नापंसद करते हैं, उन्होंने यहां तक कह दिया कि रामदेव का नाम उनके आश्रम से न जोड़ा जाए। मालूम हो कि लगभग तीन वर्ष पूर्व जब बाबा रामदेव बिजनौर आए थे तब वह बंगाली बाबा के आश्रम गए थे और पैर छूकर आर्शीवाद भी लिया था। बंगाली बाबा के सहयोगियों का कहना है कि बंगाली बाबा रामदेव के राजनैतिक स्टंट से खफा रहते हैं भले ही वह कालेधन के खिलाफ लड़ रहे हों।