रमजान का दूसरा अशरा चल रहा है। तीसरे अशरे में एहतकाफ होता है। ऐहतकाफ में मस्जिद में अकेले रहकर दुआएं और कुराने पाक की तिलावत की जाती है। हजरत मुहम्मद सल. ने पहली मर्तबा एहतकाफ किया, लेकिन शब-ए-कदर नहीं मिली, दूसरी मर्तबा भी यही हुआ तीसरी बार उन्हें शब-ए-कदर मिली।
कहा कि शब-ए-कदर की रात वह रात है, जिसमें इबादत का सबाब 83 साल के बराबर मिलता है। कुराने करीम में इस रात के सिलसिले में पूरी सूरत शब-ए-कदर के नाम से उतरी है, जो इसकी फजीलत और अस्मत को बताती है। शब-ए-कदर में जागना लाजिमी है। ऐहतकाफ की सुन्नत को कायम रखने के लिए हर मस्जिद एहतकाफ करना चाहिये।
कुरान-ए-करीम में कहा गया है कि यह न समझो कि खुदा चाहता है कि तुम भूखे रहो बल्कि तुम्हें अहसास हो कि गरीबी और मुफलिसी का अहसास क्या होता है। रमजान में अमीरी और गरीबी का फर्क मिट जाता है। एक ही सफ पर बैठकर इफ्तार से आपस के भेदभाव दूर हो जाते हैं।