तिवारी ने संतान के लिये पत्नी से तलाक व मुझसे शादी का वादा किया था: उज्जवला शर्मा

Uncategorized

सत्ता, सेक्स और संपत्ति के घालमेल की एक बानगी एनडी तिवारी, डॉ. उज्ज्वला शर्मा और रोहित शेखर है। तीनों के अपने-अपने दावे और उसी के अनुरूप अपने-अपने तर्क। ऊंचे, शीशे के मकानों में रहने वालों के किस्से भी अजब-गजब होते हैं। जीवन के ढाई दशक बीत जाने के बाद रोहित शेखर नामक युवक कहता है कि आठ दशक पार कर चुके वृद्ध एनडी तिवारी उसके जैविक पिता हैं। शुरुआती दिनों में सुनने में यह अजीब लगता था, लेकिन जब पांच दशक से अधिक की जिंदगी जी चुकी रोहित शेखर की मां डॉ. उज्ज्वला शर्मा भी अपने बेटे के साथ खड़े होकर कहती है- ‘हां, तिवारी ही रोहित के जैविक पिता हैं। सरकारी कागजों में पिता के रूप में जिस बीपी शर्मा का नाम है, वह तो उसके पालन-पोषण करने वाले हैं।

उज्जवला शर्मा अपने जमाने की तेज-तर्रार कांग्रेस कार्यकर्ता , एनडी तिवारी की बेहद करीबी उज्ज्वला ने बाकायदा हाईकोर्ट में इस बात का पूरा ब्योरा दिया था कि आखिर उनके और तिवारी के बीच रिश्ते कैसे पनपे और कैसे उनके प्यार के नतीजे में रोहित का जन्म हुआ।

कोर्ट में दिए बयान में उज्ज्वला कहती है कि “एक सम्मानित परिवार से ताल्लुक रखने वाले एन डी तिवारी जी के लगातार आग्रह और इस दौरान उनके गहरे प्यार को लेकर आश्वस्त होने के बाद ही मैं भावनाओं के भारी दबाव में आई और इसी के नतीजे में रोहित शेखर का जन्म हुआ।”

तिवारी और उज्ज्वला की दोस्ती उन दिनों परवान चढ़ी जब तिवारी उज्ज्वला के घर उसके सांसद पिता से अकसर मिलने जाया करते थे। उन दिनों को याद कर उज्ज्वला कहती है कि “एन डी तिवारी उन दिनों मेरे सांसद पिता के पास लगातार आने वालों में शामिल थे। हालांकि उनका आना-जाना पार्टी को कामों को लेकर होता था लेकिन इस वजह से हमारी भी उनसे मुलाकात होती रहती थी। तिवारी तब युवा कांग्रेस के अध्यक्ष हुआ करते थे और मैं महिला युवा कांग्रेस की महासचिव थी। हालांकि मेरी (उज्ज्वला) और उनकी (एन डी तिवारी) उम्र में काफी फर्क था लेकिन लगातार कोशिशों के बाद तिवारी ने मेरा भरोसा जीत लिया। उस वक्त अपने पति के साथ मेरा विवाद भी चल रहा था। तिवारी जी ने ये कहकर मुझे बार-बार अपने बच्चे की मां बनने के लिए बाध्य किया कि उनकी पत्नी से उन्हें कोई संतान नहीं है और उनसे तलाक लेने के बाद वे मुझसे शादी की बाकी औपचारिकताएं पूरी कर लेंगे।”

उज्ज्वला का आरोप है कि सांसद बनने के बाद तिवारी की दिलचस्पी उनमें और उनके बेटे रोहित में कम होने लगी और यहां तक कि वे मां-बेटे को धमकाने लगे। बकौल उज्ज्वला 1993 में अपनी पत्नी की मौत के बाद एक बार तिवारी ने गोद लेने की आड़ में रोहित को बेटा कबूल करने का वादा भी किया लेकिन दो साल बाद वो फिर पलट गए। इसी के बाद उज्ज्वला ने कोर्ट की शरण ली।

 

कहा जाता है कि- प्रतिष्ठित व्यक्तित्व को जीवन में बहुत संभल कर चलना चाहिए.। इस पूरे प्रसंग में एक दूसरा भी पहलु है, वह है…–शास्त्रों में स्त्री को सावित्री, पूज्या और यहां तक की – ”यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवता”…कह कर और महत्त्व दिया गया। किन्तु साथ ही यह भी कहा गया कि स्त्री अग्नि से भी अधिक जलाने की क्षमता वाली ”अग्निशिखा” भी कहा गया, अर्थात् यदि आग और तिनके को एक साथ रखोगे तो निश्चित ही आग की क्षमता उस तिनके अथवा काष्ठ से अधिक होती। यदि उसी ”अग्निशिखा” (उज्ज्वला शर्मा) रुपी स्त्री को अग्नि के सात फेरे लगाकर घर में देवी स्वरुप लाया जाता और उससे ‘रोहित’ जैसा पुत्र पैदा होता तो इस प्रकार के कोर्ट के असंख्य फेरे नहीं लगाने पड़ते।

आखिर, क्यों एक बेटा अपने को नाजायज कहलाने पर तुला हुआ है, वह भी इतने सालों के बाद? लेकिन, इस बारे में रोहित का अपना तर्क है- ‘मैं ऐसा इसलिए कर रहा हूं कि आगे से किसी बच्चे का हक नहीं मारा जाए। जब संविधान ने जीने का अधिकार दिया है तो हर बच्चे का हक बनता है कि उसे उसका पिता का नाम मिले।

नारायण दत्त तिवारी अपने लंबे राजनीतिक जीवन के सबसे बुरे दौर से गुजर रहे हैं। पहले एक विवादित वीडियो टेप के कारण उन्हें आंध्र प्रदेश के गवर्नर पद से इस्तीफा देना पड़ा और अब रोहित शेखर।

दरअसल, सत्ता और सेक्स का घालमेल भारतीय राजनीति में दशकों पुराना है। यह मामला भी कुछ उसी तर्ज पर है। सत्तर के दशक के उत्तरार्ध में शेर सिंह हरियाणा की राजनीति में एक बड़ा नाम होते थे। केंद्र में राज्यमंत्री भी रह चुके थे। वर्ष 1967 से 1979 तक वह सांसद भी रहे। उन्हीं शेर सिंह की पुत्री हैं डॉ. उज्ज्वला शर्मा। राजनीतिक लोगों के बीच उठना-बैठना उज्ज्वला शर्मा का भी था। घर आने वाले अतिथियों की आवभगत भी कभी-कभार वह किया करती थीं। उस समय एनडी तिवारी यूथ कांग्रेस में थे। एक सरपरस्ती के चलते उनका शेर सिंह के यहां आना-जाना लगा रहा। हालंकि, उस समय उज्ज्वला शर्मा विवाहित थीं। उनके पति बीपी. शर्मा एक व्यवसायी थे। एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता का दामाद होने का लाभ भी उन्हें कारोबार में मिलने लगा था और ‘कारोबार चल निकला। उस समय के कुछ लोगों से जब इस बाबत चर्चा की गई तो पता चला कि विवाह के कुछ दिनों बाद ही उज्ज्वला की अपने पति बीपी शर्मा से नहीं बनती थी। दोनों के स्वभाव में कई असमानताएं थी।

बेशक, लोकलाज के कारण दोनों एक छत के नीचे रहते थे, मगर अलगाव की स्थिति थी। बीपी शर्मा नई दिल्ली से बार-बार बिहार भी जाते थे। चूंकि, बीपी शर्मा का ताल्लुक बिहार से था, इसलिए वह कभी पारिवारिक कारणों से, तो कभी कारोबार के कारण बिहार जाते-आते रहते थे। अलगाव की स्थिति बढ़ती जा रही थी। उसी दरम्यान एनडी तिवारी को इस बात की जानकारी हुई। बताया यह भी जाता है कि उस समय एनडी तिवारी दांपत्य जीवन में वर्षों गुजारने के बाद भी संतान सुख प्राप्त नहीं कर सके थे। इसलिए उज्ज्वला और तिवारी की नजदीकियां बढ़ती गईं। पहले भौतिक रूप से निकट आने के बाद कब दोनों दैहिक स्तर पर भी एक-दूजे के हो गए, किसी को पता ही नहीं चला।

आज डॉ. उज्ज्वला शर्मा बेहिचक के कहती हैं, ‘जब से तिवारी को यह पता चला कि मेरे और बीपी शर्मा के संबंध मधुर नहीं हैं तो वह स्नेह के जरिए मेरे निकट आए। करीब सात वर्षों तक स्नेहपूर्ण संबंध रहा। वर्ष 1977 में जब मैंने देखा कि एनडी तिवारी जैसे योग्य और भद्र पुरुष की ओर से पिछले सात वर्षों से एक निकट मैत्री संबंध का प्रस्ताव है तो मैं खुद को रोक नहीं पाई। मेरे और तिवारी के शारीरिक संबंध बने। फलस्वरूप 15 फरवरी, 1979 को रोहित का नई दिल्ली में जन्म हुआ।

तिवारी के रंगीन मिजाजी के किस्से उत्तराखंड की पहाडिय़ों से लेकर पूरे देश में चाव लेकर सुने और सुनाए जाते हैं। दरअसल, दो बार कांग्रेस के खिलाफ चुनाव जीतने वाले तिवारी ने 1963 में जब कांग्रेस का दामन थामा तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और उनकी इस कामयाबी ने अच्छे-अच्छों को कायल बना दिया। वे हेमवतीनंदन बहुगुणा के खास रहे, पर जब आपातकाल में संजय गांधी की चरणपादुकाओं ने उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया तब उन्होंने बहुगुणा की तरफ देखा तक नहीं। वह चार बार उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने। कितने ही केंद्रीय मंत्रालयों के मंत्री रहे। पुराने लाल टोपीधारी तिवारी हर समय उद्योपगतियों की आंखों के तारे और दुलारे रहे। उनकी इस अदा का कांग्रेस आलाकमान भी कायल रहा। राजनीति के तमाम उतार-चढ़ावों के बीच तिवारी आधी सदी तक कांग्रेस राजवंश के वफादार बने रहे। कहा जाता है कि अपना प्रशस्तिवाचन सुनना उनका प्रिय शगल रहा है और इस पर वह मुग्ध भी होते रहे हैं। जिसने भी उनका प्रशस्ति गान किया उसे उन्होंने निहाल कर दिया। उनका यही कौशल था, जिसके चलते 2002 में उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने मीडिया के दिग्विजयी धुरंधरों को मुख्यमंत्री आवास के पिछवाड़े में खूंटे से बांध दिया था।

तिवारी के राजनीतिक जीवन की त्रासदी रही है कि सार्वजनिक कार्यों से ज्यादा उनकी चर्चा यौन संबंधों को लेकर हुई। पता नहीं कितनी ही स्त्रियों का नाम उनसे जोड़ा गया। वे चाहे यूपी के मुख्यमंत्री रहे हों या केंद्रीय मंत्री, राजनीति की बार बालाएं यात्रा से लेकर घर तक उनके जीवन पर छाई रहीं। जब वे उत्तराखंड में मुख्यमंत्री थे तब एक कमसिन हसीना को राज्य की सबसे ताकतवर महिला माना जाता था। इसे लेकर पूरे राज्य में चटखारेदार किस्से सुनाकर लोग अपनी यौन कुंठाओं को आवाज देते रहे। इसे संयोग कहें या उनके अंदाज की बानगी कि मुख्यमंत्री के उनके उस कार्यकाल में भी पहले दस सर्वाधिक ताकतवर लोगों में भी सात महिलाएं ही थीं। यह अकारण नहीं था कि सनसनीखेज वीडियो के खुलासे के बाद आंध्र प्रदेश के अखबार भी राजभवन को ‘ब्रोथल हाउस’ नाम दे रहे थे। इन सारी महिलाओं की तादाद को अगर जोड़ा जाए तो इसके मुकाबले बड़े से बड़ा मुगल बादशाह भी बौना दिखता है।

इसी कड़ी में एक नाम डॉ. उज्ज्वला शर्मा का भी है। उन्होंने पहले तो कभी सार्वजनिक मंचों पर यह नहीं कहा कि मेरे तिवारी के बीच शारीरिक संबंध हैं, जो कई वर्षों तक चले। मगर, उसी उज्ज्वला शर्मा का पुत्र रोहित शेखर सैकड़ों फोटो और अन्य सबूत लेकर कानूनी दावे के साथ कह रहा है कि मेरे नाजायज बाप एनडी तिवारी हैं। मुझे मेरे बाप का नाम चाहिए।

यहां सवाल यह भी उठता है कि क्या अभी तक रोहित शेखर को बाप का नाम नहीं मिला था? जबाव मिलता है, सरकारी कागजों में उसके बाप का नाम बीपी शर्मा है, जो उसकी मां के पति हैं। कानूनी किताबों के आधार पर यह कहा जा रहा है कि बीपी शर्मा स्वभाविक पिता हैं, क्योंकि वह उसके मां के पति हैं और उन्होंने रोहित का लालन-पालन किया है। चूंकि, एनडी तिवारी का डीएनए और रोहित शेखर का डीएन आपस में मेल खाता है, इसलिए वह उसके जैविक पिता हैं। यानी पिता भी हुए दो- स्वाभाविक और जैविक।