लखनऊ : बसपा सरकार में मुख्य अभियंता लोकनिर्माण विभाग (विकास) के पद पर तैनात रहे और वर्तमान में बसपा के विधायक त्रिभुवन राम और राजकीय निर्माण निगम में प्रबंध निदेशक रहे सी पी सिंह के खिलाफ भी जांच की आंच पहुचनी शुरू हो गई | मायावती सरकार की इन दोनों अधिकारियों पर खास कृपा थी | जब से बसपा सरकार गई , और सपा की सरकार ने प्रदेश की सत्ता संभाली तभी से ये कयास लगाए जा रहे थे की, वर्तमान सरकार माया सरकार के दौरान स्मारकों में हुए घोटालो की जांच कराकर दोषियों के खिलाफ कारवाई करेगी, स्मारकों के निर्माण और उसमे इस्तेमाल किये गए पत्थरो की खरीद में भारी धांधली हुई थी | इस खरीद फ़रोख्त का सारा जिम्मा लोकनिर्माण विभाग और राजकीय निर्माण निगम के अधिकारियो ने निभाया था, माया सरकार के दौरान राजकीय निर्माण निगम के प्रबंधक निदेशक सी पी सिंह के आदेश पर ही स्मारकों के नक्शों में भारी बदलाव किये गए थे, साथ ही लोकनिर्माण विभाग ने पत्थरो की खरीद फ़रोख्त में अहम् भूमिका निभाई थी, उस समय जो भी काम हुए सभी कामो में तात्कालिक मुख्य अभियंता टी राम की भूमिका अहम् थी |
स्मारकों के निर्माण में हुए धांधली का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है क़ी, अधिकारियों ने सरकारी धन की लुट के लिए, ऐसा रास्ता निकला जो सिर्फ यही अधिकारी सोच सकते थे वो था , पत्थरो को तराशने के काम का जिस बलुवा पत्थर को मिर्जापुर और चुनार से खरीद कर सीधे लखनऊ पहुचाया जा सकता था वो पत्थर सीधे राजस्थान के बयाना भेजे गए थे, तराशे जाने के लिए, उसके बाद उन पत्थरो को लखनऊ लाया गया | इस बात का जिक्र सीएजी ने भी अपनी रिपोर्ट में किया था की अगर बयाना भेजे गए पत्थरो को मिर्जापुर में ही तराशा गया होता तो ढुलाई में खर्च हुए 15.60 करोड़ रुपये बचा लिए गए होते | पर अधिकारियों ने मनमाने तरीके अपना कर, सरकारी धन का दुरुपयोग किया साथ ही उस पैसे की बंदरबांट भी कर डाली | इस पूरे घोटाले में सबसे चौकाने वाली बात ये रही सीएजी रिपोर्ट में साफ़ लिखा गया की डॉ. भीम राव अम्बेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल के निर्माण में 366 करोड़ रुपये और कांशीराम स्मारक स्थल पर 514 करोड़ रुपये यानि कुल 880 करोड़ रुपये का बजट था, लेकिन बार बार नक्शों में बदलाव की वजह से और नए कार्य जोड़ने के कारण दिसम्बर 2009 तक इन दोनों स्मारकों की लागत 2452 करोड़ पहुच गई | बाद के वर्षो में इसकी लागत और बढती गई | रिपोर्ट पर विश्वाश करे तो इन दोनों स्मारकों में करीब 5 हज़ार करोड़ रुपयों के घोटाला किये जाने की बात सामने आई है |
इन सभी बातो और सीएजी की रिपोर्ट को ध्यान में रखते हुए नई सरकार के मुखिया अखिलेश यादव ने स्मारकों की जाँच लोकायुक्त को सौंप दी, लोकायुक्त ने प्रदेश सरकार से लोकसेवको के अलावा किसी भी व्यक्ति, ठेकेदार या फार्म को तलब करने का अधिकार माँगा था, इसके साथ ही लोकायुक्त ने किसी जाँच एजेंसी को भी लोकायुक्त के अधीन करने की मांग की थी | बुधवार को प्रदेश सरकार की तरफ से लोकायुक्त और उपलोकायुक्त अधिनियम की धारा 18 के तहत अधिसूचना जारी किये जाने का पत्र सरकार की तरफ से भेजा गया, इसके तहत जाँच के लिए आर्थिक अपराध अनुसंधान शाखा को उनके अधीन कर दिया गया |
प्रदेश सरकार की तरफ से क़ानूनी दुश्वारिया दूर होने के बाद से ही, लोकायुक्त न्यायमूर्ति एन के मल्होत्रा ने बसपा शासन काल में किये गए स्मारकों के निर्माण की जांच शुरू कर दी | जाँच के पहले चरण में ही उन्होंने चार अधिकारियो को नोटिस जारी किया | अब उन अधिकारियो के बयान दर्ज करने के बाद जाँच प्रक्रिया आगे बढ़ेगी | बुधवार को ही लोकायुक्त ने स्मारकों के निर्माण सम्बन्धी फाइलों और घोटाले सम्बन्धी फाइलों की समीक्षा की और भूतत्व और खनन विभाग के निदेशक भवनाथ सिंह को 19 जुलाई को तलब किया है | भवनाथ सिंह ने ही मुख्यमंत्री सचिवालय को पत्र लिख कर लखनऊ और नोएडा में बने स्मारकों में करोडो रुपये के घोटाले की आशंका जताई थी | लोकायुक्त ने भवनाथ सिंह के अलावा 24 जुलाई को राजकीय निर्माण निगम के प्रबंध निदेशक ए के गुप्ता, 25 जुलाई को खनन सलाहकार एसक्यू फारूखी और 26 जुलाई को पूर्व खनन निदेशक रामबोध मौर्या को भी हाज़िर होने के निर्देश दिए है | सूत्रों के अनुसार इन सभी अधिकारियों को नोटिस जारी कर दिया गया है |
अब सवाल ये उठता है क़ी, सरकार की तरफ से दिए गए अधिकारों का इस्तेमाल कर लोकायुक्त की जांच उन अधिकारियो तक पहुचती है, या नही जो इन घोटालो के सूत्रधार थे ,जिन्होंने सारे घोटालो को अंजाम देने के लिए अपने दिमाग का इस्तेमाल किया था | टी राम और सी पी सिंह की सरपरस्ती में हुए इन घोटालो में अब सबकी निगाहें इस तरफ लगी हुई है क़ी, लोकायुक्त कब इन्हें तलब कर इनसे इन स्मारकों में हुए धांधली और घोटालो में इधर से उधर किये गए अरबो रुपयों के बारे में पूछताछ करते है |