फर्रुखाबाद: माहौल सर्राफा व्यवसाय पर छाये टैक्स संकट से निजात के जश्न का और भरे बाजार महफ़िल में फ़ैल गया रायता| नेतागिरी को लेकर छपास की आग दिल में लिए सर्राफ नगर सर्राफा कमेटी के चुनाव को लेकर भिड गए| अस्तीने चढ़ गयी, कालर फडकने लगे और बस बची तो गुत्थमगुत्था| एक तरफ बुजुर्ग व्यापारी नेता चीख रहे थे- सब गुड गोबर कर लिया| कल का अख़बार ख़राब कर लिया| टैक्स पर केंद्र सरकार की राहत पर मना जश्न कोना पायेगा और नेतागिरी में सर फुत्तौब्बल से अख़बार रंग जायेगा|
दोपहर में जब दिल्ली से खबर आई कि प्रणव मुखर्जी ने 5 लाख के सर्राफा कारोबार को टैक्स से मुक्त कर दिया है तभी से नगर के सर्राफा व्यवसायी जेठ की तपती दुपहरी के ठन्डे होने का इन्तजार कर रहे थे| देर शाम बस इंतजाम हो गया| आतिशबाजी खरीद ली गयी, मीडिया के सभी छायाकारो को कई कई बार फोन करके चौक पर बुलाया गया| लाला रामभरोसे सर्राफ की दुकान के आगे खड़े होकर ददुआ सहित कई लोगो ने प्रणव दा की तारीफ में कसीदे पढ़ दिए| लोकतंत्र का यही सच्चा नमूना है| कुछ रोज पहले जिन नेताओ को संकेत रुपी मृतक मान टिकटी (लाश लेकर चलने वाली एक तरह की चारपाई) निकाली जा रही थी, उनकी म्रत्यु का तेरहवी का भोज हो रहा था| आज वो पूजे जा रहे थे|
भाषण चल ही रहा था कि अचानक पीछे से एक अश्लील टिप्पणी सहित आवाज आई कि सर्राफा व्यवसायी अपना जश्न अपनी में………..लें| नजर आवाज की तरफ घूमी तो स्वर्णकारो के कई जाने माने पहचाने चेहरे थे| आखिर मंच पर स्वर्णकार क्यूँ नहीं? जबकि हड़ताल में सबसे ज्यादा नुकसान कारीगरों का ही हुआ| खैर ददुआ ने मोर्चा संभाला और मक्खन की पूरी टिक्की खर्च कर दी स्वर्णकारो को मानाने में| अबकी बार मंच से ददुआ बोले- इस हड़ताल को सफल बनाने में सबसे बड़ा योगदान स्वर्णकारो का था| ये अगर जेवर न बनाये तो सर्राफा व्यवसायी क्या बेचेगा| पीछे से आवाज आई —–जिंदाबाद|
कार्यक्रम में सड़क खाली की गयी और 501 पटाखों वाली लम्बी लड़ी में एक छोर आग लगायी गयी| चटाई तो बिछाई मगर जब जली तो अपनी लाइन संभल नहीं पायी और आस पास से गुजर रहे कई महिलाओ और साइकिल सवारों को जश्न के छोटे मोटे जख्म दे गयी|
इधर जश्न का मामला कुछ रौनक पकड़ रहा था कि अचानक सर्राफा व्यवसाय के दो नेताओ में अस्तीने खिच गयी| अनुपम रस्तोगी और दीपक अग्रवाल में मुह से जोर आजमाइश हो रही थी| मामला सर्राफा नगर कमेटी के चुनाव को लेकर था| अरुण प्रकाश तिवारी ‘ददुआ’ और उनके चेले चुनाव में कुछ वक़्त चाहते थे मगर बहुत वर्षो से नेतागिरी की सुर्खियों से बाहर रहे अनुपम रस्तोगी चुनाव जल्दी कराना चाहते थे| आखिर लोगो ने बीच बचाव नहीं किया होता तो कुरते के कई बटन नेहरु रोड की सड़क पर टहल रहे होते|