फर्रुखाबाद: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक शस्त्र लाइसेंस पत्रावली का निस्तारण ढाई वर्ष बाद न्यायालय के आदेश के बाद किये जाने पर गहरी निराशा व्यक्त की है। न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने अपने विस्तृत आदेश में प्रशासनिक व्यवस्था को आज भी सामंती युग में जीने और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का उलाहना देते हुए जिलाधिकारी सच्चिदानंद दुबे पर 25 हजार रुपये नगद का जुर्माना लगाया है।
मामला वही शस्त्र लाइसेंस का है। जिसे जिलाधिकारी बड़े फख्र से अपना विवेकाधिकार व विशेषाधिकार मानते हैं। सत्तारूढ़ दल के नेताओं की सिफारिश पर गर्दन झुका कर लाइसेंस जारी करना व आम आदमी को मनमानी वसूली न मिलने तक दोड़ाते रहना कमोबेश सारे जिलाधिकारियों की ही कार्यशैली का हिस्सा रहा है। ऐसा ही विनीत कुमार की शस्त्र पत्रावली के साथ हुआ। कोई राजनैतिक पहुंच थी नहीं सो बेचारा जब कलक्ट्रेट के बाबुओं के चक्कर काटकर थक गया तो बेचारा कमिश्नर के पास अपनी शिकायत लेकर पहुंचा। आयुक्त कानपुर मंडल ने विगत 30.9.2009 को पत्रावली के शीघ्र निस्तारण के आदेश दे दिये। परंतु उसके बाद के.धनलक्षमी, मिनिस्ती एस. व रिग्जियान सेम्फिल के बाद वर्तमान जिलाधिकारी सच्चिदानंद दुबे भी विगत 24.9.2011 से पत्रावली को दाबे बैठे रहे। जब मामला में उच्च न्यायालय ने संज्ञान लिया तो असलहा लिपिको के पटल बदल दिये व उनको प्रतिकूल प्रविष्ट दिये जाने की बात कह कर अपना पल्ला झाड़ लिया।
न्यायालय ने जिलाधिकारी की ओर से दिये गये शपथ-पत्र पर जो उद्गार आदेश में व्यक्त किये हैं, उनसे प्रशासनिक व्यवस्था के प्रति न्यायपालिका की गहरी निराशा टपकती है। न्यायमूर्ति ने अपने आदेश में जिलाधिकारी द्वारा यह कहे जाने पर कि उनसे पहले भी तीन जिलाधिकारी गुजर चुके हैं, इस लिये इस मामले में वह अकेले दोषी नहीं हैं, की जमकर खिल्ली उड़ाते हुए कहा है कि
“The system recognises the office and the incumbents coming and going cannot claim immunity for their inaction. Whether ‘A’ was holding the office or ‘B’, makes no difference since what has suffered in this case is the trust and confidence of common man in the system.”
अर्थात अधिकारियों के तबादले से कोई अंतर नहीं पड़ता, आम आदमी तो कुर्सी को जानता है, और जब काम नहीं होता तो व्यवस्था में उसका विश्वास डिगता है।
न्यायालय ने निष्क्रियता व अनिर्णय को अनुचित, अवैध और मनमानी से परिभाषित किया है। व्यवस्था के प्रति निराशा का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है
“the people of this country got independence and gave to themselves a Constitution in the hope that the system in their own Constitution would wipe out their tears but even after more than six decades, the system is functioning unchanged, as if still these authorities are king and common man is a downtrodden tiny Indian having no voice or existence at all. This is really unfortunate that for these petty matters and due to sheer inaction, apathy and carelessness of not attending the statutory function”
अर्थात इस देश को आजाद हुए छह दशक बीत गये परंतु आम आदमी की व्यवस्था से उसकी आंख का आंसू पोंछने आस आज भी अधूरी है। आज भी अधिकारी अपने आपको राजा समझते हैं व आम आदमी को रियाया। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है।
न्यायालय ने जिलाधिकारी सच्चिदानंद दुबे पर 25000 रुपये नगद का जुर्माना दो माह के भीतर वादी विनीत अग्निहोत्री को अदा करने के आदेश दिये हैं