माया की सोने की सैंडिल खा गया हाथी

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लखनऊ। आखिरकार लम्बे अरसे के बाद नाटक माई सैंडिल को प्रसिद्ध मिल ही गई| सोमवार को प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह में सत्यपथ रंगमंडल की ओर से नाटक ‘माई सैंडिल’ का मंचन हो गया है| मिली जानकारी के मुताबिक, तीन माह के लंबे इंतजार के बाद मुकेश वर्मा के लिखे इस नाटक का मंचन खास इसलिए भी है कि पूर्व की बसपा सरकार ने नाटक के मंचन पर रोक लगा दी थी।

माया की सोने की सैंडिल हाथी खा गया| सैंडिल निकालने के चक्कर में राज्य के भ्रष्टाचार और हत्याओं के मामले सामने आए। जनता ने विद्रोह किया और माया राज का अंत हो गया। मुकेश वर्मा द्वारा लिखित तथा निर्देशित नाटक ‘माई सैंडिल’ की यही दिलचस्प कहानी है।

यह है कहानी-

यह नाटक पांच सौ वर्ष पूर्व की मायागढ़ की राजकुमारी माया के ऊपर आधारित है। माया अपने राज्य की अकेली महिला है जो पुरुष समाज पर एकछत्र राज्य करती है और बेहद भ्रष्टाचारी है। उसके राज्य में चारों तरफ गुंडागर्दी और अराजकता का माहौल है। माया के जन्मदिन पर उसके चापलूस मंत्री माया को प्रसन्न करने के लिए सोने की सैंडिल भेंट करने की योजना बनाते हैं। सोने की सैंडिल अरब से मंगवाई जाती है। मंगाए गए कीमती सैंडिल को सोने की पन्नी में छिपाकर बड़े जतन से रखा जाता है। मगर माया के हाथी जिन्हें सोना, चांदी, हीरे, मोती खाने की आदत होती है वह माया के सोने के सैंडिल को खा जाता है।

जब यह बात माया के मंत्री को पता चली तो उसने हाथी के पेट से माया की सैंडिल को बाहर निकालने का प्रयास किया। इसके लिए राज्य के सबसे प्रसिद्ध वै को बुलाया गया। वह हाथी को ऐसी दवाई देने की सलाह देते हैं जिससे हाथी के मल के साथ सैंडिल भी बाहर आ जाए। पहली बार जब हाथी का मल बाहर आया तो उसमें राज्य के तीन वैों की हत्या का खुलासा सामने आया। लोगों को पता चला कि राजकुमारी माया ने तीन वैों की हत्या करवाई। जब हाथी को दोबारा दवा पिलाई गई तो राज्य में हुए कई घोटालों का पर्दाफाश हुआ। इसके बाद तीसरी बार भी कई छिपे हुए रहस्यों का पर्दाफाश होता है। यह बातें जानकर मायागढ़ की प्रजा जागती है और माया का विद्रोह कर देती है प्रजा। प्रजा के विद्रोह करते ही तख्ता पलट हो जाता है और लोगों को राजकुमारी की सत्ता से निजात मिल जाती है।