उत्तर प्रदेश के “दबंग” पुलिस अफसर सिकेरा की वापसी

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यूपी पुलिस के वरिष्ठ और “दबंग” अधिकारी नवनीत सिकेरा पांच साल के वनवास के बाद वापस आ चुके हैं। 36 वर्षीय नवनीत सिकेरा को उत्तर प्रदेश के ‘दया नायक’ के रूप में जाना जाता है। हमेशा सुर्खियों में रहने वाले सिकेरा का काम, व्यवहार और अपराधियों से निपटने का अंदाज़ बिल्कुल अलग है।

मुलायम सिंह यादव से उनकी नज़दीकियों के कारण सिकेरा को मायावती सरकार में हाशिये पर डाल दिया गया था। अब, समाजवादी पार्टी सरकार की वापसी के साथ ही सिकेरा को एक बार फिर नया दम मिला है। उन्हें मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का मुख्य सुरक्षा सलाहकार बनाया गया है|

कौन है नवनीत सिकेरा-

नवनीत सिकेरा एक ऐसा नाम है जिसे उन ज़िलों का कार्यभार सौंपा गया था जहां अपराध का बोलबाला था। सिकेरा के नाम भर से अपराधी ज़िला छोड़ कर दुम दमा कर भाग निकलते थे। सिकेरा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी कप्तानी के दौरान यह साबित किया है कि उनके रहते अपराध सिर उठा कर नहीं बोल सकता।

अपराध का गढ़ माना जाने वाला प. उ.प्र. सिकेरा के नाम भर से थर-थर कांपता था। एकदम फिल्मी अंदाज़ में एक साल में 56 एनकाउंटर कर सिकेरा ने साबित कर दिया था कि पुलिसिया पलड़ा हमेशा ही गुनाह के पलड़े से भारी होता है।

हर वक्त चौकन्ना रहने वाले सिकेरा को वाराणसी में हार का मुहं देखना पड़ा। उनकी कप्तानी के दौरान वर्ष 2006 में गंगा के पावन घाट पर हुए बम धमाकों ने प्रशासन को झकझोर कर रख दिया। वहां से तुरंत तबादले के बाद सिकेरा को मेरठ भेज दिया गया। मेरठ में भी सिकेरा का खौफ जारी रहा।

अपमान से प्रेरित हो बने आईपीएस

आगरा में जन्मे सिकेरा ने एटा में अपनी उच्च विद्यालय शिक्षा को प्राप्त किया और फिर आईआईटी रुड़की में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। एक साहसी पुलिस एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के रूप में प्रतिष्ठित सिकेरा ने कंप्यूटर के की-बोर्ड से बंदूक तक का सफ़र खेलते-खेलते तय किया है।

अपमान से प्रेरित हुए सिकेरा के आईपीएस बनने की कहानी भी दिलचस्प है। अपनी खोई गरिमा को वापस लाने की ललक से सिकेरा ने पुलिस विभाग को अपनी मंजिल मान ली। आईआईटी से सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले सिकेरा को एक नौकरी की तलाश थी लेकिन उनके साथ ऐसी घटना घटी की उन्होंने पुलिस बल में शामिल होने की ठान ली।

एक घटना ने कैरियर के प्लान को बदल डाला। जब इंजीनियरिंग की पढ़ाई ख़त्म कर नौकरी की तलाश कर रहे सिकेरा एक बार अपने पिताजी के साथ पुलिस स्टेशन किसी मदद की उम्मीद से गए थे क्योंकि उनके पिता को धमकी भरे फोन कॉल की शिकायत पर पुलिस के दुर्व्यवहार से दुखी सिकेरा ने मन में यह ठान लिया कि वे इस अपमान का बोझ उतारकर ही रहेंगे।

वे पुलिस व्यवस्था में बदलाव चाहते थे, ताक़ि किसी और ज़रूरतमंद का पुलिस पर से भरोसा ना उठे। सिकेरा ने जो ठाना वो कर दिखाया। एक बेहतर आईपीएस के रूप में उन्होंने ख़ुद को स्थापित किया। उन्होंने अपने तकनीकी जानकारी से पुलिस शैली को अलग दिखाने का प्रयास भी किया|