फर्रुखाबाद में बहुकोणीय नहीं, सीधे-सीधे होंगे मुकाबले -1

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फर्रुखाबाद: जनपद न पिछड़ा है और न ही गैर जागरूक है| उत्तर प्रदेश के महानगरो को छोड़ यदि छोटे जिलों की बात करें तो ये जिला राजनैतिक रूक से सर्वाधिक जागरूक है| यहाँ का मतदाता भी जागरूक है और नेता भी| शायद इसीलिए यहाँ अब पिछले 20 वर्षो से किसी नेता का गढ़ नहीं रहा| नेता प्रयोग करते है तो जनता भी कमतर नहीं| एक बार जीतने के बाद दुबारा या तो नेता चुनाव नहीं लड़ता और लड़ता भी है तो उसकी जीत अधर में ही रहती है| आधी से ज्यादा जनता अपना फैसला विरोध में वोट डाल कर करती है| जनता की जागरूकता का सबसे बड़ा पैमाना ये है कि फर्रुखाबाद जैसे छोटे जिलें में पूरे भारत में अन्य किसी भी जिले के मुकाबले आबादी के अनुपात से सबसे ज्यादा अखबार बिकता है और इंटरनेट और अन्य मीडिया का सबसे बड़ा पाठक है|

बात बड़े चुनाव से शुरू करते है| ये फर्रुखाबाद है जहाँ कोई लहर काम नहीं करती| 1980 में पूरे हिन्दुस्तान में कांग्रेस की लहर थी| भाजपा के केवल दो सांसद संसद पहुचे थे| उनमे से एक फर्रुखाबाद से दयाराम शाक्य थे जो सलमान खुर्शीद के पिता खुर्शीद आलम खान को हरा कर जीते थे| फिर खुर्शीद आलम खान जीते| 1991 में वीपी सिंह की लहर में बड़े पत्रकार दिल्ली से आकार चुनाव लड़ गए और तूफ़ान की तरह आये और आंधी की जनता से पाच साल दूर रहकर तरह ख़त्म हो गए| दुबारा चुनावी मैदान में आने की हिम्मत न जुटा सके| नयी पीड़ी के बच्चे उनका नाम तक नहीं जानते| फिर दौर सच्चिदानंद हरी साक्षी का आया| भगवा कपडे ओढ़े पिछड़ी जाति का ये व्यक्ति आश्रमों और धर्मशालाओ की जमीनों को हथियाने और संसद निधि में कमीशन से लेकर पैसा लेकर सवाल पूछने जैसे घिनौने कृत्यों को करता रहा और जैसे जैसे जनता में इसका असली चेहरा आया नकार दिए गए| हालत ये हुई कि यूपी की विधानसभा के 2007 के चुनाव में अपने चेले चपाटे सहित अपनी भी जमानत जब्त करा बैठे| फर्रुखाबाद की जनता ने पलटी खायी और खानदानी विरासत की राजनीति करने वाले छत्रिय नेता चन्द्रभूषण सिंह मुन्नू बाबू को जनता ने टेस्ट किया| पांच साल तक ठसक भरी राजनीति और जनता के बीच न जाने की सजा इन्हें भी मिली| दरअसल ये नेता जनसेवक कम जमीदारी अंदाज के कारन नकारे गए| 65 साल की आजादी के बाद बहुत कुछ बदल गया है मगर बुजुर्ग हो रहे नेता अपनी सोच को बदलने को तैयार नहीं| उन्हें लगता है कि पांच साल भी वे जब जनता के पास जाये जनता खटिया छोड़ खड़ी हो जाए और कहे माई-बाप बताओ इस बार मुहर कहाँ लगानी है क्यूंकि हर बार पार्टी के साथ चुनाव चिन्ह भी बदल जाता रहा| न कोई सवाल पूछे और न कोई शिकवा शिकायत करे| वक़्त बदल गया है अब अदब की वजह से जनता इन बुजुर्ग नेताओ से सवाल भले ही न करती हो मगर बैलट की ताकत का एहसास का जरुर करा देती है| पांच साल की जमीदारी स्टाइल सांसदी को जनता ने फिर नकार दिया और चुनाव में बहुत गिडगिडाने पर सलमान खुर्शीद को मौका दे दिया| लुईस खुर्शीद एक बार जीती तो दो बार हार गयी| एक सांसदी का चुनाव तो दूसरा लोकसभा का| सलमान एक बार जीते तो दूसरी बार संसद सदस्य में पहुचने के लिए उन्हें 14 साल का इन्तजार करना पड़ा इस बीच चार बार लोकसभा चुनाव हो गए| तीन बार वे हारे तो एक बार उनकी पत्नी| तो ये है कहानी है फर्रुखाबाद की नेता और जनता की| नेता हर बार जाति का ही गणित लगाते रहे और फर्रुखाबाद में बहुतायत जाति वाले भी चारो खाने चित्त होते रहे|

बात अब छोटे चुनाव की करते हैं| बात अमृतपुर विधानसभा से शुरू करते है| विधायकी के लिए गढ़ और खानदानी राजनीति करने वाले नेता समाजवादी पार्टी से विधायक नरेन्द्र सिंह यादव को भी पिछले पंचायत चुनाव में करेला खाना पड़ा था| उनके बेटे को भी जनता ने नकार दिया था| अब परसीमन के बाद खानदानी राजनीति की सारी जड़े विखर चुकी है| नए विधानसभा में लोग भी जागरूक है और सोचने की ताकत भी रखते है| नेताजी विधायक बने तो और अमीर हो गए| जनता के पैसे से ही जनता को 10 हजार का हैंडपंप दिया तो 20 लाख अपने स्कूल में लगा बैठे| गैरकानूनी काम वो भी डंके की चोट पर उस पर भी ये जुमला कि जनता का जाने? मतलब कि जनता चुप रहे और विधायक जी को कुछ भी करने दे| अपनी बेटी की शादी हुई तो सरकारी पैसे से गाँव की सड़के मेहमानों को रुकने के लिए वातानुकूलित गेस्ट हॉउस सब जनता के पैसे से बना और जब जनता का हैन्डपम्प लगने की बारी आई तो अपने प्रतिनिधि से प्रति हैन्डपम्प का 2000 रुपया जनता से वसूलवा लिए| उस पर भी तुर्रा ये कि जो मिला है वो फ़ोकट का है चुपचाप रहो| बेचारी गाँव की जनता चंदा करके रिश्वत प्रतिनिधि को देती रही| जैसा बोया अब काटो| हालत ये है कि अमृत पुर की जनता उन्हें नकारने की कगार पर है और नेताजी और उनके बेटे बस पूछो मत…| मुकाबला एक बेहद ही इमानदार रहे स्व सांसद दयाराम शाक्य के बेटे सुशील शाक्य और जन क्रांति पार्टी के डॉ जितेन्द्र के बीच है| खुद की जीत के लिए अपनी पार्टी के दुसरे प्रत्याशी को हारने के फार्मूले पर सुशील को दो चुनाव हारने की सजा मिल चुकी है और डॉ जीतेन्द्र पहली बार युवा छवि को लेकर चुनाव मैदान में है| जनता उन्हें भूल सुधारने का मौका दे सकती है| डॉ जीतेन्द्र को राजनीति का चस्का बिहार के बाहुबली नेता पप्पू यादव से रिश्तेदारी में मिला है| पप्पू यादव डॉ जीतेन्द्र यादव के साले हैं| चौथे प्रत्याशी कांग्रेस की टिकेट पर चुनाव लड़ रहे कुलदीप गंगवार है| कुलदीप वर्तमान में बसपा कि टिकेट पर विधायक कायमगंज से बने थे| परसीमन में इज्जत बच गयी कायमगंज सुरक्षित हो गयी| और चुनाव आते आते टिकेट भी बसपा से कट गयी| कौशलेन्द्र यादव की पैरवी और लुईस खुर्शीद को कुर्मी वोट दिलाने का लालच कुलदीप के लिए कांग्रेस में टिकेट का इंतजाम कर गया| मगर अपने विधानसभा क्षेत्र से ही कुर्मियो की एक मासूम बेटी “तान्या” के बलात्कार और हत्याकांड में फसे बसपाइयो को बचाने के आरोप ने उन्हें कुर्मियो का भी विश्वास पात्र नहीं रखा| नेताजी शायद ये भूल गए| नेताजी ये भी भूल गए कि कुर्मियो में साक्षरता बहुत अच्छी है उनके पास ये आंकड़े भी है कि उनके विधायक ने पहली बार विधायक बनते ही जनता की गाढ़ी कमाई की आधे से ज्यादा विधायक निधि एक बड़ा कमीशन लेकर उन स्कूलों को बेच दी जो कभी भी उस निधि का सही इस्तेमाल प्रमाणित नहीं कर पाएंगे| जब भी जाँच होगी सलाखों के पीछे ही नजर आयेगे| देर है अंधेर नहीं| जनता कैसे वोट दे और किस बात? न जात के सगे रहे है न गैर जात के| केवल धन के सगे रहे| यानि वर्तमान विधयक कुलदीप गंगवार और नरेन्द्र सिंह यादव की जनता के बीच पिछले पांच सालो के कारनामो का इनाम मिलना है और डॉ जीतेन्द्र और भाजपा के सुशील शाक्य को मौका| कौन किस पर भारी रहेगा ये मतदाताओ के वोट प्रतिशत पर निर्भर करेगा| वोटर युवा ज्यादा होगा या परिपक्व? अगड़ी जाति का ज्यादा निकलेगा या पिछड़ी और दलित जाति का| हाँ एक प्रत्याशी और है बसपा के महावीर राजपूत| न कोई विधायक बन्ने लायक सोच न विचार| न कोई योजना और न ही कोई काबिलियत| बस 25 लाख की जुगाड़ करके टिकेट हो गयी और किसान दलित जाति के सहारे उतर गए मैदान में| आखिरी तक बसपा के टिकेट वितरण के दलाल चूस गए सो अलग से| वो बेचारा तो वर्तमान विधायक अनंत कुमार मिश्र की बेरुखी और चालाकी का खामियाजा भुगतेगा|

अगले अंक में पढ़िये सदर विधानसभा फर्रुखाबाद के मुकाबले-

नोट- इस लेख में मेरी निजी राय और अनुभव का संकलन है| ये जरुरी नहीं कि आप यानि पाठक इससे इत्तेफाक रखे| आप अपनी प्रतिक्रिया बड़ी ही शालीनता और अच्छी भाषा में कडुआ भी देने तो हम प्रकाशित करेंगे मगर प्रतिक्रिया के साथ उसके विस्तृत कारण भी जरुर लिखे| अभद्रता पूर्वक भाषा की टिप्पणी कूड़े के ढेर में फेकना हमारी मजबूरी होगी|