उमा भारती के प्रदेश की सक्रिय राजनीति में कदम रखने के साथ ही राज्य में भाजपा की प्रदेश इकाई चुनाव के दौर में भी आंतरिक गुटबाजी से जूझ रही है। खासतौर पर स्थापित नेतृत्व अपने को उपेक्षित मानने लगा है। भाजपा के पूर्व अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह के उत्तर प्रदेश की बजाय उत्तराखंड में डेरा डालने की भी यही एक बड़ी वजह माना जा रही है। बीजेपी के वरिष्ठ नेता कलराज मिश्र ने पहले कहा कि उमा भारती उत्तप प्रदेश की नहीं, इस लिए उमा राज्य की मुख्यमंत्री नहीं बन सकतीं। परंतु अब से थोड़ी देर पहले भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कलराज मिश्र ने एक प्रेस वार्ता करके कहा कि उन्होंने कभी भी उमा भारती की खिलाफत नहीं की है। उन्हें प्रदेश के चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी गयी है। उनकी लोकप्रियता और काबलियत पर पार्टी को बिल्कुल भी शक नहीं है। इसलिए उन्हें पहले बिहार और अब यूपी की कमान सौंपी गयी है।
उमा भारती को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी से मिल रही तवज्जो से प्रदेश नेतृत्व नाराज है। माना जा रहा है कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों पर नजर लगाए गडकरी ने प्रदेश में व्याप्त गुटबाजी को खत्म करने के लिए ही उमा भारती को आगे करने का प्रयोग किया है, लेकिन अभी तक की घटनाएं गवाह हैं कि गुटबाजी घटने की बजाए बढ़ रही है। प्रदेश में जनस्वाभिमान यात्रा का नेतृत्व करने वाले एक नेता राजनाथ सिंह तो अब उत्तराखंड में जमे हैं, जबकि दूसरे नेता कलराज मिश्र भी अब अपने चुनाव क्षेत्र लखनऊ तक सीमित होते जा रहे हैं। दूसरी तरफ ओबीसी मतदाताओं पर नजर टिकाए भाजपा उमा भारती को चुनाव मैदान में उतारने के बाद अब उनकी रथयात्रा की तैयारी में जुटी है। पिछड़े वर्ग के नेता विनय कटियार व ओमप्रकाश सिंह भी अपने को उपेक्षित मानने लगे हैं। प्रदेश नेताओं में व्याप्त असंतोष का ही नतीजा है कि राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह को प्रदेश भाजपा में महासचिव बनाते ही तीन नेताओं के इस्तीफे भी सामने आ गए।
उत्तर प्रदेश भाजपा में जितने नेता है उतने ही गुट हैं। डा. मुरली मनोहर जोशी के विरोध के चलते राजनाथ सिंह अपने बेटे को टिकट नहीं दिलवा सके। उमा भारती के सक्रिय होने से पहले तक मुख्यमंत्री पद की दावेदारी को लेकर राजनाथ सिंह और कलराज मिश्र के बीच तनातनी रही है, लेकिन अब राजनाथ के इस दावेदारी से पीछे हटने की वजह भी उनका असंतोष ही माना जा रहा है। गडकरी के प्रयोगों के बाद अब प्रदेश के नेता फिलहाल खामोश तो हैं लेकिन मामला अंदर ही अंदर सुलग रहा है। पार्टी के सवर्ण नेता कह रहे हैं कि कहीं ओबीसी वोट लुभाने के चक्कर में सवर्ण भी भाजपा से दूर न हो जाएं। दूसरी तरफ उमा के समर्थकों का दावा है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा को रसातल में पहुंचाने वाले नेता ही उनके आने से खुश नहीं है, जबकि आम कार्यकर्ता खुश है।