नई दिल्ली। भारत में मनाए जाने वाले सभी पर्व चंद्र कैलेंडर पर आधारित होते हैं लेकिन मकर संक्रांति एकमात्र ऐसा पर्व है जो सौर कैलेंडर पर आधारित है। यही वजह है कि इस पर्व की तारीख नहीं बदलती और हर साल यह 14 जनवरी को मनाया जाता है।
संस्कृत और कर्मकांड के विद्वान डॉ रविनाथ शुक्ला ने अयोध्या से बताया कि चंद्रमा की तुलना में सूर्य की गति लगभग स्थिर जैसी होती है और मकर संक्राति सौर कैलेंडर पर आधारित पर्व है इसलिए इसकी तारीख नहीं बदलती। उन्होंने बताया कि देश में मनाए जाने वाले अन्य पर्वो की तारीख बदलती रहती है क्योंकि वह चंद्र कैलेंडर पर आधारित होते हैं और चंद्रमा की गति सूर्य की तुलना में अधिक होती है। उन्होंने बताया कि संक्राति संस्कृत का शब्द है जो सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश बताता है। हिंदू ज्योतिष के अनुसार, कुल बारह राशिया होती हैं। इस प्रकार संक्राति भी 12 हुईं। लेकिन मकर संक्राति तब मनाई जाती है जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है।
पृथ्वी को कर्क और मकर रेखाएं काटती हैं। जब सूर्य कर्क रेखा को पार करता है तो पृथ्वी के आबादी वाले हिस्से में उसका प्रकाश कम आता है। इसी दौरान धनु में सूर्य का संचार होने पर सर्दी अधिक होती है जबकि मकर में सूर्य का संचार होने पर सर्दी कम होने लगती है। मकर संक्रंाति से गर्मी तेज होने लगती है और हवाएं चलने लगती हैं। बसंत पंचमी से ये हवाएं गर्म होने लगती हैं जिसकी वजह से रक्त संचार बढ़ जाता है और लोगों को बसंत में स्फूर्ति का अहसास होता है। पेड़ों पर नए पत्ते आने के साथ साथ फसल पकने की प्रक्रिया भी गर्म हवा लगने से शुरू हो जाती है। इसलिए कृषि के नजरिए से मकर संक्रांति अहम पर्व होता है। मकर संक्राति पर्व भारत के अलग अलग प्रदेशों में अलग अलग नामों से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इसे तिलगुल कहा जाता है।
महाराष्ट्र में मकर संक्राति पर लोग सुबह पानी में तिल के कुछ दाने डाल कर नहाते हैं। महिलाएं रंगोली सजाती हैं और पूजा की जाती है। पूजा की थाली में तिल जरूर रखा जाता है। इसी थाली से सुहागन महिलाएं एक दूसरे को कुमकुम, हल्दी और तिल का टीका लगाती हैं। इस दिन तिल के विशेष पकवान भी पकाए जाते हैं। हल्दी कुमकुम का सिलसिला करीब 15 दिन चलता है।
सिख मकर संक्राति को माघी कहते हैं। इस दिन उन 40 सिखों के सम्मान में सिख गुरूद्वारे जाते हैं जिन्होंने दसवें गुरू गोविंद सिंह को शाही सेना के हाथों पकड़े जाने से बचाने के लिए कुर्बानी दी थी। इस दिन हमारे यहा खीर जरूर बनती है। उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद, वाराणसी और हरिद्वार में गंगा के घाटों पर तड़के ही श्रद्धालु पहुंच कर स्नान करते हैं। फिर पूजा की जाती है। उत्तराखड में इस पर्व की खास धूम होती है। इस दिन गुड़, आटे और घी के पकवान बनाए जाते हैं और इनका कुछ हिस्सा पक्षियों के लिए रखा जाता है।
बिहार में 14 जनवरी को संक्राति मनाई जाती है। इस दिन लोग सुबह सवेरे स्नान के बाद पूजा करते हैं तथा मौसमी फल और तिल के पकवान भगवान को अर्पित करते हैं और दही चूड़ा खाया जाता है। इसके अगले दिन यहा मकरात मनाई जाती है जिस दिन खिचड़ी का सेवन किया जाता है।
गुजरात में यह पर्व दो दिन मनाया जाता है। 14 जनवरी को उत्तरायण और 15 जनवरी को वासी उत्तरायण। दोनों दिन पतंग उड़ाई जाती है। घरों में तिल की चिक्की और जाड़े के मौसम की सब्जियों को मिला कर एक तरह का पकवान उंधियू बनाया जाता है।
मकर संक्राति को कर्नाटक में सुग्गी कहा जाता है। इस दिन यहा लोग स्नान के बाद संक्राति देवी की पूजा करते हैं जिसमें सफेद तिल खास तौर पर चढ़ाए जाते हैं। पूजा के बाद ये तिल लोग एक दूसरे को भेंट करते हैं।
केरल के सबरीमाला में मकर संक्राति के दिन मकर ज्योति प्रज्ज्वलित कर मकर विलाकू का आयोजन होता है। यह 40 दिन का अनुष्ठान होता है जिसके समापन पर भगवान अयप्पा की पूजा की जाती है। उड़ीसा में मकर संक्राति को मकर चौला और पश्चिम बंगाल में पौष संक्राति कहा जाता है। असम में यह पर्व बीहू कहलाता है। यहा इस दिन महिलाएं और पुरूष नए कपड़े पहन कर पूजा करते हैं और ईश्वर से धनधान्य से परिपूर्णता का आशीर्वाद मागते हैं। गोवा में इस दिन वर्षा के लिए इंद्र देवता की पूजा की जाती है ताकि फसल अच्छी हो।
तमिलनाडु में यह पर्व पोंगल कहलाता है। इस दिन से तमिलों के थाई माह की शुरूआत होती है। इस दिन तमिल सूर्य की पूजा करते हैं और उनसे अच्छी फसल के लिए आशीर्वाद मागते हैं। यह पर्व राज्य में चार दिन मनाया जाता है।
आध्रप्रदेश में भी यह पर्व चार दिन मनाया जाता है। पहले दिन भोगी दूसरे दिन पेड्डा पाडुगा [मकर संक्राति] तीसरे दिन कनुमा और चौथे दिन मुक्कानुमा मनाया जाता है। तमिलनाडु और आध्रप्रदेश में भोगी के दिन घर का पुराना और अनुपयोगी सामान निकाला जाता है और शाम को उसे जलाया जाता है।