उत्तर प्रदेश के चार भागों में विभाजन के मायावती सरकार के प्रस्ताव को केंद्र सरकार ने बैरंग वापस कर दिया है। राज्य सरकार द्वारा ऐन चुनाव से पहले किए गए निर्णय और भेजे गए प्रस्ताव को गृह मंत्रालय ने अधूरा बताया है। विभाजन के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए मंत्रालय ने राज्य सरकार से आठ सवालों के जवाब मांगे हैं। इन सवालों में प्रस्तावित राज्यों की सीमाओं के निर्धारण, ऋण व राजस्व के साथ-साथ आइपीएस व आइएएस अधिकारियों के बंटवारे जैसे मुद्दे शामिल हैं। कांग्रेस ने गृह मंत्रालय के फैसले का समर्थन करते हुए साफ कर दिया है कि सिर्फ सियासी लाभ के लिए राज्य के बंटवारे जैसा बड़ा फैसला नहीं लिया जा सकता है।
राज्य विभाजन की जटिल प्रक्रिया का उल्लेख करते हुए गृह मंत्रालय ने उप्र सरकार द्वारा भेजे गए चार पंक्तियों के प्रस्ताव पर अचरज जताया है। राज्य सरकार को साफ कर दिया है कि विभाजन के प्रस्ताव पर तभी विचार किया जा सकता है, जब वह आठ मुद्दों को स्पष्ट कर दे। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि राज्य सरकार के प्रस्ताव में नए राज्यों की सीमाओं का जिक्र तक नहीं है, जो किसी नए राज्य को बनाने के लिए पहली जरूरत है। गृह मंत्रालय ने राज्य सरकार से पूछा है कि प्रस्ताव भेजने से पहले नए राज्यों के औचित्य का कोई अध्ययन कराया था या नहीं। आखिर राज्य सरकार के विभाजन के प्रस्ताव का आधार क्या है। गृह मंत्रालय जानना चाहता है कि प्रदेश के मौजूदा कर्जो और राजस्व का नए राज्यों के बीच बंटवारा कैसे किया जाएगा। राज्य में अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों (आइएएस व आइपीएस) का नए राज्यों के बीच बांटे जाने का फार्मूला क्या होगा। जाहिर है गृह मंत्रालय की आपत्तियों के बाद उत्तर प्रदेश के विभाजन की राह मुश्किल हो गई है। कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि राज्यों का निर्माण विकास और आम जनता की भलाई को ध्यान में रखते हुए किया जा सकता है।