यूपी के चुनावी अखाड़े में कांग्रेस और सपा की नूरा कुश्ती का मंजर

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उत्तर प्रदेश में चुनवी अखाड़े की जमीन तैयार है। विभिन्न राजनैतिक दलों ने रैलियों, यात्राओं व मोर्चों के माध्यमस से अपनी अपनी ताकत का एहसास कराना शुरू कर दिया है। राजनैतिक दलों के बीच गठबंधनों का सिलसिला भी शुरू हो गया है। इसके अलावा पर्दे के पीछे की राजनीति व चुनाव बाद गंठबंधन के संकेत भी मिलने लगे हैं। सपा व कांग्रेस के बीच इसी प्रकार के फ्रैंडली मैच या नूरा कुश्ती का मंजर भी अब साफ होने लगा है। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को काला झंडा दिखाने पर अलीगढ़ के दिनेश के निष्कासन के बहाने सपा ने पूरी पार्टी को संदेश दे दिए कि राहुल कुछ भी कहें, करें उनका विरोध नहीं करना है। संकेत कांग्रेस और राहुल की ओर से भी है। मुलायम की जमीन पर राहुल ने मुलायम से ज्यादा तीखे वार बसपा शासन और मायावती पर किए। राजनीति के गलियारों में सपा की इस पहल को मुलायम और कांग्रेस के अघोषित तालमेल की पृष्ठभूमि का पहला चरण माना जा रहा है।

कांग्रेस विरोध के नारे के साथ वजूद में आई सपा करीब दो दशक तक कांग्रेस व भाजपा से समान दूरी की नीति पर ही काम कर रही सपा की सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री न बन पाने में सबसे अहम भूमिका रही। हाल ही में मुलायम सिंह ने मंजूर भी किया कि न्यूक्लियर डील मसले पर कांग्रेस सरकार को समर्थन देना उनकी सबसे बड़ी राजनीतिक भूल थी। पर यह भी सच है कि वह बिन मांगे मनमोहन सरकार को समर्थन दे रही है। तर्क है कि भाजपा को रोकने के लिए उसने ऐसा फैसला किया।

रीता बहुगुणा जोशी के खिलाफ अपेक्षाकृत कमजोर प्रत्याशी को टिकट देकर तथा विधानमंडल दल के नेता प्रमोद तिवारी के खिलाफ अभी तक प्रत्याशी न उतार कर सपा नेतृत्व ने कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व को भरोसे में लेने की कोशिश की है। वजह साफ है, चुनाव बाद सपा अलग-थलग नहीं रहना चाहती है। दरअसल सपा प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बाद की तसवीर आंक कर कदम उठा रही है। दावे कुछ भी करे, पर उसे मालूम है कि वह अधिकतम किस सीमा तक जा सकती है।

उसको पूरा अहसास है कि कांग्रेस और लोकदल के तालमेल के बाद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वह कहां ठहर रही है। अपनी सियासी जमीन का लंबे समय तक आधार रहे 20 फीसदी आबादी वाले मुसलिम वोट बैंक की बदली हुई भाव भंगिमाओं पर भी वह गौर कर रहा है। सपा के राहुल प्रेम के पीछे चुनाव बाद तालमेल बनाने का विकल्प खुला रखना माना जा रहा है। पहल करने पर कांग्रेस गर्मजोशी से हाथ मिलाए, इसके लिए सपा किसी कीमत पर कांग्रेस के युवराज को नाराज नहीं करना चाहती है। वैसे भी अतीत कहता है कि अपने तमाम परस्पर विरोध के बावजूद कांग्रेस व समाजवादी पार्टी सरकार बनाने के नाम पर दिल्ली से लखनऊ तक एक दूसरे को सपोर्ट करते रहे हैं।