फर्रुखाबाद: शहर क्षेत्र के पंडित अखिलेश दीक्षित ने जानकारी देते हुए बताया कि सनातन परंपरा में विश्वकर्मा जयंती पूरे धूमधाम से मनाई जाती है। खासकर औद्योगिक क्षेत्रों, फैक्ट्रियों, लोहे, मशीनों तथा औजारों से सम्बंधित कार्य करने वाले, वाहन शोरूम, सर्विस सेंटर आदि में पूजा होती है।
इस मौके पर मशीनों, औजारों की सफाई एवं रंगरोगन किया जाता है। इस दिन ज्यादातर कल-कारखाने बंद रहते हैं और लोग हर्षोल्लास के साथ भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में जितनी राजधानियां थी, प्राय: सभी विश्वकर्मा की ही बनाई कही जाती हैं। यहां तक कि सतयुग का ‘स्वर्ग लोक’, त्रेता युग की ‘लंका’, द्वापर की ‘द्वारिका’ और कलयुग का ‘हस्तिनापुर’ आदि विश्वकर्मा द्वारा ही रचित हैं।
‘सुदामापुरी’ की तत्क्षण रचना के बारे में भी यह कहा जाता है कि उसके निर्माता विश्वकर्मा ही थे। और इसके आलावा जितने भी पुरातन सिद्ध स्थान है, जो भी मंदिर, देवालय है जिनका उल्लेख, शास्त्रों और पुरानो में है उनके निर्माण का भी श्रेय विश्वकर्मा को ही जाता है। इससे यह आशय लगाया जाता है कि धन-धान्य और सुख-समृद्धि की अभिलाषा रखने वाले पुरुषों को विश्वकर्मा की पूजा करना आवश्यक और मंगलदायी है। विश्वकर्मा जी देवताओ के शिल्पी थे।