एमएलए साहब देखो हाल- मैडम गायब, एमडीएम बंद, व्यवस्था चकाचक

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फर्रुखाबाद; नवाबगंज ब्लाक के प्राथमिक विद्यालय में एक माह से मिड डे मील नहीं बना| एक शिक्षा अक्सर गायब रहती है| आरोप है कि इन पर नजर रखने के लिए तैनात अधिकारी घूसखोरी में लिप्त होकर व्यवस्था सुधरने की जगह गड़बड़ी में केवल हिस्सा खाते है| मिड डे मील का जिला समन्वयक भी इसी कारस्तानी का हिस्सा है और इलाके के विधायक केवल उन मासूम बच्चो के माँ बाप से वोट की उम्मीद तो करते है लेकिन व्यवस्था सुधारने में उन्हें भी शायद शर्म आती है|

पहाडपुर के प्रधान रामबाबू पाल प्रधान ने बताया कि विद्द्यालय में तैनात एक शिक्षिका सुनीता कनोजिया कभी सप्ताह में एक बार तो कभी पंद्रह दिन में एक बार आकर हाजिरी रजिस्टर पर दस्खत कर जाती है| इसी बात को विद्द्यालय में तैनात एक शिक्षा मित्र ने भी जेएनआई को फोन पर बताया| विद्द्यालय में इस सत्र से यानि लगभग एक माह से बच्चो को मिड डे मील भी नसीब नहीं हुआ है| यानि बच्चो को न तो शिक्षा ही सुचारू रूप से मिल रही है और न ही दोपहर का भोजन| जबकि दोनों व्यवस्थाओं के लिए सरकार के खजाने से जनता की कमाई का पैसा दनादन खर्च हो रहा है या यूं कहें लुट रहा है| गाँव वालों का आरोप है कि शिक्षिका सुनीता कनोजियाका स्कूल से गायब रहने का रिकॉर्ड बहुत पुराना है| इस स्कूल में तैनाती के बाद वो नियमित कभी नहीं आई| हाँ सरकारी अभिलेखों और बैंक खातो की पड़ताल करें तो उनका न तो कभी वेतन कटा और न ही कोई सजा मिली| जाहिर है इन पर निगाह रखने वाले सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी इस गोलमाल के खेल में मालामाल होते रहे और भ्रष्टाचार की गंगा में गोते लगाते रहे| पहले ये काम सहायक बेसिक अधिकारी नागेन्द्र चौधरी करते रहे अब उनकी जगह आये प्रवीण शुक्ल पर भी यही आरोप लगता नजर आ रहा है वर्ना गाँव वालो की शिकायत के बाद भी अधिकारी शिक्षिका को स्कूल आने के लिए नियमित नहीं कर पाए|

मिड डे मील में तो बेशर्मी की हद हो गयी| जिले में तैनात मिड डे मील समन्वयक नीलू मिश्र क्या नौकरी करती है उसे इस तरह से परखिये| इसी स्कूल में एक माह से खाना नहीं बना ये बात मिड डे मील की वेबसाईट पर दर्ज है| माना की 1700 स्कूल का निरीक्षण नहीं किया जा सकता मगर दफ्तर में बैठ वेब साईट पर खाना न बनाने वाले स्कूलों पर तो निगाह रखना बड़ा ही आसान है| ये सब नीलू नहीं करती| क्यूंकि उनकी नौकरी काम के दम पर नहीं सिफारिश के दम पर चलती है| इनके कामो से प्रतीत होता है कि ये सब जनता का माल लूटने के लिए नौकरी कर रहे है| बच्चो और देश की चिंता इन्हें कतई नहीं है| ये बेशर्म होते कर्मी अपनी नौकरी के लिए नेता मंत्री से सिफारिश कराते है| और वे बेशर्म नेता, मंत्री और उनके चमचे भी आँखों का पानी मार दूसरो का हक लूट्ने के लिए कामचोर और नाकारा लोगो की नौकरी के लिए सिफारिश करते है|

जिन्हें व्यवस्था बनानी थी उन्होंने क्या किया-
इस संबध में जब सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी प्रवीण शुक्ल से बात की गयी तो उनका टका सा जबाब था मैंने पहले भी शिकायत मिलने पर कारवाही की थी| ये पूछे जाने पर कि क्या कारवाही की थी, शुक्ल बोले स्पष्टीकरण माँगा था| मगर वे इस बात का जबाब नहीं दे पाए कि तैनाती के बाबजूद बच्चो के लिए नियमित शिक्षक क्यूँ नहीं उपलब्ध करा पाए| मिड डे मील के सम्बन्ध में प्रधान ने बताया कि हेड टीचर अंजला सचान कोटेदार से सीधे राशन लाती है| कोटेदार और हेड टीचर प्रधान को हिसाब नहीं देते| मांगने पर दलित उत्पीडन का मुकदमा ठोकने की धमकी देते है| बेचारा प्रधान पहली बार चुन कर आया है| लगता है पहले से पैर जमाये भ्रष्टाचारियो से निपटना उसे नहीं आता| ऐसे में जनता कहाँ जाए और किससे उम्मीद करे| जिन्हें वोट दिया था वे कभी लौट कर नहीं आये| गाँव के प्रधानजी, जिला पंचायत के जिला पंचायत सदस्य, स्थानीय विधायक और जिले के सांसद ये चार प्रकार के छोटे बड़े नेता व्यवस्था और सुधार के नाम पर वोट तो ले गए मगर एक भी दुबारा हाल पूछने नहीं आया| लगता है चारो जनता को ठग गए किसी काम के नहीं निकले|

वैसे लोकतंत्र की प्रणाली के अनुसार चुनी हुई सरकार की मंशा के अनुसार अफसरशाही को काम करना होता है| ऐसे में इस बिगड़ी व्यवस्था के लिए क्या माना जाए| क्या सरकार ही ऐसा चाहती है या अफसरों को व्यवस्था सुधारने के लिए कहने का उसका आत्मबल खो चुका है|