फर्रुखाबाद: हालाँकि ये बात कहना बेईमानी है कि प्रशासन फर्रुखाबाद के बाढ़ से ग्रस्त होने वाले ग्रामो के प्रति चिंतित रहा है, फिर भी किसान यूनियन की पहल पर जिलाधिकारी के निर्देश हुए और राजेपुर के कई गाँव में संभावित नदियो के कटान पर सरकारी अफसर दौरा करने पहुचे| मौके पर पहुचे एस डी एम रविन्द्र कुमार और अपर जिलाधिकारी ने रामगंगा नदी की जद में बसे खंडौली, निसवी, सीड़े चकरपुर, नौसेरा, विलालपुर तुर्कहाटा, नगला घाघ, नया गाँव और उजरामऊ के बारे में अपनी राय व्यक्त की और ये माना कि यदि रामगंगा नदी की धारा पुरानी धारा से मिल गयी और नदियों में पिछले वर्ष की भांति पानी आया तो इन 13 गाँव का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है|
दोनों अधिकारिओ ने नदियो की धारा और बहाव को मौके पर जाकर देखा| ग्रामीणों से सुझाव मांगे और ग्रामीणों को भरोसा दिलाया कि वे अपनी रिपोर्ट जिलाधिकारी को देंगे| सूचना कार्यालय द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक जिलाधिकारी के माध्यम से इन गाँव से सटे नदी के तट पर बंधा बनाने के लिए शासन को प्रस्ताव भी भेजा जायेगा|
प्रशासन जनता के प्रति क्या वाकई संजीदा है?
बाढ़ आने में केवल 15-20 दिन बचे हैं और प्रशासन किसान यूनियन के ज्ञापन के बाद चेता है ये कोई बड़ी बात है| क्यूंकि आपकी याद दिला दे कि वर्तमान अपर जिलाधिकारी सुशील चन्द्र श्रीवास्तव पिछले साल इन्ही दिनों फर्रुखाबाद तबादले पर आये थे उस वक़्त फर्रुखाबाद में भीषण बाढ़ थी| जेएनआई खुद बाढ़ राहत केंद्र चला रहा था और उस समय सुशील चन्द्र श्रीवास्तव से जनपद में बाढ़ में डूब रहे ग्रामीणों की मदद के लिए हर दिन दो से तीन बार फोन पर बात होती थी| एसडीएम रविन्द्र कुमार कमालगंज क्षेत्र में बाढ़ राहत का काम संभाले थे| दोनों अधिकारिओ को जिले में बाढ़ की चप्पे चप्पे की जानकारी थी| तत्कालीन जिलाधिकारी के धनलक्ष्मी हवा हवाई दौरा कर रही थी| उनके हर दौरे पर सूचना कार्यालय का कैमरा फोटो खींज कर मीडिया में भेज रहा था| मगर सूचना कार्यालय ने एक भी ऐसी फोटो नहीं खीची जिससे बाढ़ की हकीकत अधिकारी देख सके और मदद का इंतजाम कर सके| उस समय प्रशासन में दो खेमे थे| एक खेमा इमानदार अधिकारिओ का दूसरा कम इमानदार अधिकारिओ का| चापलूस किस्म के तत्कालीन मुख्य विकास अधिकारी सी पी त्रिपाठी का तत्कालीन जिलाधिकारी के धनलक्ष्मी को सिर्फ वही तस्वीर दिखाते थे जो वो देखना चाहती थी| एसडीएम रविन्द्र कुमार जनता से जुड़ उनकी मदद मौके पर जाकर कर रहे थे, मीडिया में उनकी तस्वीरे छपना उस वक़्त की जिलाधिकारी और चन्द्र प्रकाश त्रिपाठी को सुहा नहीं रहा था| खैर बात बाढ़ की हो रही थी| एसडीएम रविन्द्र कुमार चुपचाप काम करते रहे और काम के बदले तिरस्कार मिलने से बैकफूट पर आ गए| मगर अपर जिलाधिकारी तो सब जानते थे| कहाँ नुकसान हुआ कैसे हुआ और कितना हुआ| अगले साल फिर होगा ये जानते हुए भी बाढ़ के बाद फिर एक नयी बाढ़ का इन्तजार क्यूँ हुआ? क्या अब तक नदियों में बांध नहीं बन जाने चाहिए थे| या फिर एक बार फिर बाढ़ के आंकलन की फिल्म बनेगी जिसमे बाढ़ में काम करने वाले अधिकारिओं की फोटो लगायी जाएगी उसमे जो चहेते अफसर नहीं होंगे उनके काम करने के बाबजूद फोटो काटी जाएगी| मगर इस पूरे प्रकरण में बेचारा ग्रामीण गायब हो जायेगा और बाढ़ में सरकारी बाढ़ राहत केंद्र के फ़ोन (जिसका नम्बर बहुत कम लोग जानते है) से निराश होकर बाढ़ के समय चौवीस घंटे खुलने वाले जेएनआई दफ्तर में फोन लगाकर प्रशासन के लिए गुहार लगाएगा- नाव भेजो, खाना भेजो| और उस वक़्त बेचारा जे एन आई प्रशासन से यही जबाब सुनेगा- दीक्षित जी कोई नाव खाली नहीं…..
सवाल वहीँ खड़ा है जब ग्रामीणों को गाँव में खाना पहुचने के लिए नाव नहीं थी तो प्रशासन के लंगरों में बना खाना ग्रामीणों को गाँव गाँव कैसे पहुच गया? कहीं बेशर्म वाही सरकारी मशीनरी जो बाढ़ राहत की चेके खा गए उस वक़्त कागजो में खाना बना खुद हजम तो नहीं कर रहे थे|