डेस्क: श्रीनिवास रामानुजन एक महान भारतीय गणितज्ञ थे। इन्हें आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में गिना जाता है। इन्हें गणित में कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं मिल, फिर भी इन्होंने विश्लेषण एवं संख्या सिद्धांत के क्षेत्रों में गहन योगदान दिए। इन्होंने अपने प्रतिभा और लगन से न केवल गणित के क्षेत्र में अद्भुत अविष्कार किए अथवा भारत को अतुलनीय गौरव भी प्रदान किया।अनंत की खोज करने वाले महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की आज 102वीं पुण्यतिथि है। रामानुजन ऐसे महान गणितज्ञ थे जिन्होंने भारत में अंग्रेजी शासन काल के दौरान विश्व में भारत का परचम लहराया था। उन्होंने महज 12 साल की उम्र में ही त्रिकोणमिति में महारत हासिल की थी और 16 वर्ष की उम्र में G.S.Carr. द्वारा कृत “A synopsis of elementary results in pure and applied mathematics” की 5000 से अधिक प्रमेय को प्रमाणित और सिद्ध करके दिखाया था। उन्हें गणित के अलावा किसी अन्य विषय में इंटरेस्ट नहीं था। महान गणितज्ञ के साथ ऐसा भी हुआ था कि 11वीं कक्षा में गणित को छोड़ बाकी सभी विषयों में फेल हो गए थे तो अगले साल प्राइवेट परीक्षा देकर भी वह 12वीं पास नहीं कर पाए।रामानुजन तमिलनाडु के इरोड शहर के निवासी थे। अपनी प्रारंभिक शिक्षा के दौरान रामानुजन अपने मित्रों की गणित की उलझनों को चुटकी में समझा देते थे। सातवीं कक्षा में आते आते रामानुजन ग्रेजुएशन के छात्रो को गणित पढ़ाने लग गये थे। उनकी प्रतिभा से प्रभावित हो उनके विद्यालय के हेडमास्टर ने यह तक कह दिया की विद्यालय में होने वाली परीक्षाओं के पैमाने रामानुजन के लिए लागू नहीं होते थे। परन्तु टीबी जैसी बीमारी का इलाज उन दिनों सही से नहीं हो पाता था जिसके चलते रामानुजन का स्वास्थ्य दिन ब दिन गिरता जा रहा था। 1919 में उन्हें भारत वापस लौटना पड़ा। अब रामानुजन वापस कुंभकोणम में थे। उनका अंतिम समय चारपाई पर ही बीता। इस दौरान भी वे पेट के बल लेटे-लेटे कागज पर तेजी से लिखते रहते थे। काफी उपचार के बावजूद उनके स्वास्थ्य में तेजी से गिरावट आती गई। 26 अप्रैल 1920 को महज 33 साल की उम्र में गणित की कुछ 600 परिणाम वाली नोटबुक के साथ रामानुजन ने सांसार में आखिरी सांस ली।