अंग्रेजो ने नवाब के किले को ढहाकर उसके ऊपर ही नगर में टाउन हाल बनवा दिया ताकि ये स्थान सबसे ऊँचा रहे और अंग्रेज हर हिन्दुस्तानी पर निगाह रख सके| ये बात सन 1858 की है जब पूरे भारत में स्वतंत्रता आन्दोलन की आग लगी हुई थी| अंग्रेज सेना हर उस स्थान पर कब्ज़ा करना चाहते थे तो हिन्दुस्तानियो की आन बान शान बढाती हो| बात नगर के टाउन हाल की है जहाँ वर्तमान में नगरपालिका का कार्यालय है, उसी अंग्रेजो के ज़माने की बनायीं बिल्डिंग में आज भी पालिका का मजबूरी वश दरबार साल में बजट पास कराने के नाटक में लगता है| बिना बहस और जनता में अजेंडा सार्वजनिक किये 5 मिनट में 72 प्रस्ताव पास करने वाली बैठक को नाटक से ज्यादा कुछ नहीं कहा जा सकता| सारे बजट की कारवाही पालिका अध्यक्ष के घर पर तैयार होती है इसमें क्या मनोज अग्रवाल और क्या दयमन्ती सिंह दोनों के दौर में कोई ज्यादा अंतर नहीं दिखा|
बात उस ऊँचे टीले की है जहाँ से पूरे नगर की तस्वीर दिखती है मगर नगरपालिका के प्रशासको और पालिका अध्यक्षों को इस ऊँचे स्थान पर बैठने के बाद भी या तो कुछ दिखता नहीं या फिर ये अंधे होने का नाटक करते रहे| पेश है धारावाहिक नगरपालिका के चीरहरण के लिए संघर्ष करते जनसेवक भाग 3-
सन 1868 में टाउन हाल के भवन का निर्माण शुरू हुआ| तब अंग्रेजो का कब्ज़ा था उसके बाद अंग्रेजी हकूमत में ही 1936 में मुनिसिपल बोर्ड बना| वर्ष 1946 /47 में इसे नगरपालिका का दर्जा मिला और पहले अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने का पहला सौभाग्य असगर अली खान को मिला उसके उनके साहबजादे अमजद अली खान भी गद्दीनशी हुए| फर्रुखाबाद की नगरपालिका में अध्यक्षी कार्यकाल को दो भागो में बाटा जा सकता है| एक कार्यकाल 1946 से 1971 तक तथा दूसरा दौर वर्ष 1989 से आज तक का| पालिका के कार्यकाल को दो दौर में बाटने के पीछे मकसद ये है कि वर्ष 1971 से वर्ष 1988 तक पालिका में कोई चुनाव नहीं हुए और इस दौर में 18 साल तक प्रशासक पालिका की सत्ता सम्भालते रहे| पहले दौर में पालिका अध्यक्षों की कुर्सियों पर मुरारी लाल तिवारी, डॉ रवीश दत्त शर्मा, डॉ राम लाल वर्मा, डॉ वी एन सरीन आदि जनसेवक बैठे| दूसरे दौर में सत्यमोहन पाण्डेय, फुरफुर मियां, दयमन्ती सिंह और मनोज अग्रवाल बैठे| खास बात ये कि दयमन्ती सिंह के कार्यकाल से ही जनता को अध्यक्ष चुनने का अधिकार मिला उससे पहले सभासद ही अध्यक्ष को चुनते थे|
पढ़े लिखे अध्यक्षों ने भी भ्रष्टाचार और घोटालो के आलावा फर्रुखाबाद की नगरपालिका में कोई एतिहासिक बदलाव नहीं किया| जब नए जमाने में सब कुछ कंप्यूटर पर होने जा रहा है नगरपालिका में अभी भी मुंशी मुढ़िया (कहावत) लिख रहे है| पेश है कुछ उदहारण-
*सन1971 के बाद नगरपालिका की गलियों में प्रकाश व्यवस्था विद्युत से हो गयी, उसके पहले गलिओं में प्रकाश लैम्प पोस्ट से होता था| उन लैम्प पोस्ट को जलाने के लिए नगपलिका में लैम्प लाईटर (अंग्रेजी हकुमत के जमाने का नाम) का पद हुआ करता था| ये लैम्प लाईटर गली गली घूम घूम कर लैम्प पोस्ट पर लगी लालटेनो में नियमित तेल डाल कर उन्हें जलाते और सुबह होने पर बुझाते थे| 1971 में लैम्प पोस्ट बंद हो गए और खम्भों पर बिजली के बल्ब टिमटिमाने लगे| मगर 40 साल के बाद भी आज भी नगरपालिका में लैम्प लाईटर का पद जिन्दा है| जमाना कहाँ से कहाँ चला गया है अब जबकि देश की अधिकांश नगपलिकाओं में स्ट्रीट लाइट सोलर स्विच से जलती बुझती है फर्रुखाबाद में आज भी कई दर्जन लैम्प लाईटर के पद पर रुपया खर्च होता है| जो काम मात्र पचास हजार के चार सोलर स्विच लगाकर चल सकता है उसके लिए फर्रुखाबाद की नगरपालिका लाखो रुपये कहाँ और कैसे खर्च करती है इसका कोई जबाब कम से कम आसानी से नहीं मिल सकता| राजाबाबू को शायद ही कोई जागरूक नागरिक नहीं जानता हो| ज्यादातर लोग इनके मशहूर होने के पीछे नगरपालिका के अधिकासी कुर्सी पर बैठने और उतरने से रूबरू होंगे, वास्तव में राजाबाबू ही इस नगर के प्रकाश अधीक्षक है| किसी गली में अँधेरा हो तो इनका मोबाइल नंबर खोज कर बात कर लीजियेगा, हो सकता है आपकी गली में उजाला हो जाए| वैसे उजाला तो पहले नाले पर होता था आजकल चौक पर हो रहा है, निकट भविष्य में ये उजाला कहाँ होगा अगले दो तीन महीने में पता चल जायेगा|
*इसी तरह पूरे प्रदेश में चुंगी समाप्त हुए लगभग 20 साल हो गए है मगर आज भी चुंगी मुहर्रिर पद जिन्दा है, ये और बात है कि इस पद पर कोई नई भरती नहीं हुई है|
*पहले नगरपालिका क्षेत्र में मोहल्लो के नुक्कड़ पर मोहल्ले के नाम वाले पत्थर लगाये जाते थे ताकि कोई बाहरी रिश्तेदार, कोई अजनबी, पोस्टमेन वगैरह को मोहल्ला और घर पता करने में दिक्कत न हो| दयमन्ती सिंह के दो कार्यकाल और मनोज अग्रवाल के कार्यकाल में पत्थर तो लगे वो भी कीमती ग्रेनाईट के मगर उन पर मोहल्लो के नाम खोज लेना बढ़ी बात होगी| अगर मोहल्लो के नाम लिखे भी होंगे तो नेता जी के बड़े अक्षरों में लिखे नाम के आगे मोहल्ले का नाम कद्दू के नीचे छिपे अंगूर सा लगता है| जब कभी अखबारों में माला पहने इन नेताओ की उदघाटन की फोटो छपे साथ में छपी पत्थर की फोटो देख लेना लिखा होगा- “रामसागर के घर से दीनानाथ तक नाली कार्य” उदघाटन करता “फलां माननीय” अधिकाशी अधिकारी- फलां, ठेकेदार- फलां और कभी कभी जिलाधिकारी का भी नाम मिल जायेगा|
अलबत्ता इनमे से माननीयो नाम वाले कई पत्थर तो टूट कर नाली में लटक गए है जिसकी आड़ लेकर विषम परिस्थियो में फसा आदमी अपना प्रेसर जरूर कम कर लेता है क्यूंकि नगर में कहीं भी सार्वजनिक पेशाव घर तो दिखाई नहीं पड़ते हैं||
पाठको से अनुरोध है कि अगर आपके पास भी है कोई पालिका से सम्बन्धित जानकारी तो जेएनआई के माध्यम से उसे प्रकाश में जरुर लाये|
पढ़ते रहिये- नगरपालिका के चीरहरण के लिए संघर्ष करते जनसेवक- क्रमश: जारी