फर्रुखाबाद:(अमृतपुर संवाददाता) विभागीय उदासीनता के चलते क्षेत्र के मबेशी खुरपका-मुंहपका के शिकार होनें लगे है| दर्जनों की संख्या में पालतू मवेशी इसकी चपेट में है| महीनों से मबेशियों के वैक्सीनेशन नही किया गया| अब बीमार का प्रकोप बढने से विभाग में खलबली मची है| लेकिन मबेशियों को लगानें के लिए खुरपका की वैक्सीन उपलब्ध नही है| अब विभाग बगलें झाँकने के अलावा कुछ भी नही कर रहा है| दरअसल हरसिंहपुर गहलबार में तकरीबन एक दर्जन से जादा खुरपका बीमारी से मबेशी पीड़ित हो गये है| जानवरों के खुरों में घाव से हो गये है| जिससे वह खड़े भी नही हो पा रहे है| इसके साथ ही मुंह में छाले भी हो रहें है| जिससे वह चारा भी नही खा पा रहे है| ग्रामीण सोनू दीक्षित, रामगोपाल, शंभू दयाल व प्रशांत आदि नें बताया कि महीनों से मबेशियो के खुरपका-मुंहपका की वैक्सीन नही लगी है| ग्रामीणों नें जब बीमारी के लक्षण देख चिकित्सक को सूचना दी| जिसके बाद पशु चिकित्सक प्रभात ने मौके आकर जब पशुओं को देखा तो उन्होंने खुरपका-मुंहपका की पुष्टि की| लेकिन वैक्सीन ना होनें पर विधिवत उपचार नही हो पाया| उन्होंने छालों को फिटकरी से साफ करने की सलाह दी|
डॉ० प्रभात ने बताया है कि वायरस फैला हुआ है| लेकिन सरकारी भंडारण में वैक्सीन नहीं है| फिलहाल डिमांड भेज दी गई है| वैक्सीन मिलते ही टीकाकरण करा दिया जाएगा|
क्या है रोग
खुरपका-मुंहपका रोग कीड़े से होता है, जिसे आंखें नहीं देख पाती हैं। इसे विषाणु कहते हैं। यह रोग किसी भी उम्र की गाय व भैंस में हो सकता है। हालांकि, यह रोग किसी भी मौसम में हो सकता है। इसके चपेट में आने से पशु सूख जाता है। उसकी कार्य व उत्पादन क्षमता कम हो जाती है। टीकाकरण से ही रोग की रोकथाम की जा सकती है।
रोग के लक्षण
इस रोग की चपेट में आने पर पशु को तेज बुखार आता है। पशु के मुंह, मसूड़े, जीभ के ऊपर, होंठ के अंदर व खुरों के बीच छोटे-छोटे दाने उभर आते हैं। दाने आपस में मिलकर बड़ा छाला बनाते हैं। छाला फटने पर वहां जख्म हो जाता है। पशु जुगाली बंद कर देते हैं। मुंह से लार गिरने लगती है। वह सुस्त होकर खाना पीना तक छोड़ देता है। खुर में जख्म होने पर वह लंगड़ाकर चलता है। खुरों में कीचड़ लगने पर कीड़े पड़ जाते हैं और कभी-कभी मौत का कारण भी बनता है।
रोग का फैलना
बीमार पशु से यह रोग धीरे-धीरे स्वस्थ पशुओं में भी फैलने लगता है। क्योंकि सभी पशु एक साथ चारा खाते हैं। इससे वह भी इस रोग की चपेट में आ जाते हैं। इतना ही नहीं यह हवा से दूसरे स्वस्थ पशुओं में फैलता है।
रोग के लक्षण मिलने पर उठाएं कदम
-बीमार पशु को तत्काल स्वस्थ्य पशुओं से दूर रखें, उनका दाना पानी भी अलग दें।
-पशु को बांधकर रखें और उन्हें घूमने फिरने न दें।
-पशु को सूखे स्थान पर ही बांधे, कीचड़, गीली मिट्टी व गंदगी से दूर रखें।
-बीमार पशु को कतई न बेचें और नहीं बीमार पशु को खरीदें।
-जहां पशु की लार गिरती है, वहां पर कपड़े धोने का सोडा व चूने का छिड़काव करें।
-फिनाइल का प्रयोग भी बीमारी की रोकथाम में सहायक होता है।
-मृत पशु को तत्काल पूरी तरह जला दें, संभव न हो तो उसे गहरे गड्ढे में गाड़ दें।
-समय-समय पर पशुओं में खुरपका मुंहपका के टीके अवश्य लगवाएं।
-रोक फैलने पर तत्काल नजदीकी पशु चिकित्सक को इसकी सूचना दें।