फर्रुखाबाद:(जेएनआई ब्यूरो) जिले की विरासत में दर्ज है खुदागंज की सराय यह सराय मुगल काल में बनाई गई थी सराय के 200 मीटर आसपास का इसका एक अपना दायरा था इस सराय का अपना एक इतिहास रहा है। और फर्रुखाबाद की विरासत की जब बात की जाए तो उसमें खुदागंज की सराय का नाम भी आता है ।खुदागंज आज भी जनपद फर्रुखाबाद की और जनपद कन्नौज की सीमा है सीमा पर काली नदी का पुल भी है इस खुदागंज गंगा के किनारे अंग्रेजो के खिलाफ किए गए सशस्त्र संघर्ष में सैकड़ों हजारों के नरसंहार की घटनाएं हुई यहां की मिट्टी और यहां के मनुष्यों की खून की विरासत है।
1858 में अंग्रेजों से हुआ खुदागंज युद्ध
खुदागंज में अंग्रेजों से युद्ध 2 जनवरी 1858 के युद्ध में अंग्रेजी सेना ने जब काली नदी पार करना चाही तो क्रांतिकारियों ने पुल को तोड़ दिया, टूटे हुए पुल के अवशेष आज भी नदी के किनारे मौजूद हैं। जिससे अंग्रेजी सेना भाग ना पाए अंग्रेजी शासक कोलीन कैंपबेल ने खुदागंज के निकट नवाब के क्रांति सैनिकों से संघर्ष किया आसपास के ग्रामवासी क्रांतिकारियों ने यहां भीषण संघर्ष किया जिसे जो अस्त्र मिला अंग्रेजों के विरुद्ध उसका जमकर प्रयोग किया गया गंगा एवं काली नदी के मध्य ढूंढ वारी भूभाग में फैली अंग्रेजी सेना की टुकड़ियां ग्रामीण क्रांतिकारियों द्वारा मार डाली गई, परंतु खुदागंज में अंग्रेजी सेना का वेग ना रोका जा सका क्रांति सैनिकों को पीछे हटना पड़ा शहजादा खुशाक सुल्तान तथा शहजादा फिरोज शाह अंग्रेजी सेना के खुदागंज से फतेहगढ़ आने तक रुके रहे। खुदागंज में अंग्रेजी सेना से पराजित हो जाने पर नवाब को फतेहगढ़ छोड़ना पड़ा वह फर्रुखाबाद पहुंच गया।
खुदागंज का एतिहासिक पुल
जब नदी को पार करने के लिये रोड पुल नहीं था तब रेलवे पुल ही बना हुआ था और उसी पुल से बसों का आना-जाना होता था आज वर्तमान समय में खुदागंज के दो अलग-अलग पुल है रेलवे पुल अलग बना हुआ है और रोड पुल अलग है पहले सिर्फ रेलवे पुल से ही नदी को पार करने का रास्ता था।
नवाब मोहम्मद खां बंगश की पत्नी बीबी साहिबा उर्फ राबिया बेगम भी खुदागंज गोपनीय तरीके से रुकी
जब दिल्ली में सफदरजंग की हुकूमत के समय कन्नौज राजा नवलराय के क्षेत्र में था नवाब मोहम्मद खां बंगश की पत्नी बीबी साहिबा उर्फ़ राबिया बेगम से समझौता करने के लिए राजा नवलराय ने बीबी साहिबा को कन्नौज में बुलाया, बीबी साहिबा भी समझौते के लिए कन्नौज पहुंची, तब धोखे से राजा नवलराय ने बीबी साहिबा को नजरबंद कर दिया। तब इनके साथ फर्रुखाबाद से गए लोगों में से एक भाव सिंह लोधी भी थे भाव सिंह लोधी ने राजा नवलराय की सेना से मिलकर किसी तरह से रात में बीबी साहिबा को उनके कब्ज़े से निकाल कर बैलगाड़ी से निकाला बैलगाड़ी टूटने के बाद बीबी साहिबा खुदागंज किसी गोपनीय स्थान पर रातभर ठहरीं तब बीबी साहिबा ने भाव सिंह लोधी के कार्य से खुश होकर फर्रुखाबाद में एक स्थान का नाम भाव टोला रख दिया जो आज भी उसी नाम से जाना जाता है।
खुदागंज सराय का महसूल घर (चुंगी घर)
खुदागंज के पूर्व में गांव समाप्त होते ही सड़क से दक्षिणी तरफ एक महसूल घर पड़ता है जिसे हम चुंगीघर कहते हैं जहां आने जाने वाले लोगों से गाड़ियों तथा उनके सामान का चुंगी कर लिया जाता था महसूल घर की इमारत बहुत ही मजबूत थी वह इमारत अंग्रेजों के शासनकाल में बनी थी।
खुदागंज सराय के आसपास के ऐतिहासिक गाँव
1- श्रंगीरामपुर – इस गाँव में ॠषि श्रंगी रहे उनके नाम से ही इस गाँव का नाम श्रंगीरामपुर पड़ा इस गाँव में ग्वालियर के राजा और उनका परिवार आता रहा और इस गाँव में बहुत सी इमारतों का निर्माण भी ग्वालियर के राजा ने कराया जो आज फर्रुखाबाद का बहुत बड़ा धार्मिक स्थल है इस गाँव की धार्मिक स्थल की जमीनों को नवाब मोहम्मद बंगश ने ग्वालियर के राजा को दान में दी थीं । राजा नवाब बंगश को ग्वालियर के राजा इसके बदले में ग्वालियर की जमीनें देने का प्रस्ताव दिया लेकिन नवाब बंगश ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और धार्मिक स्थल के नाम से ज़मीनों को दान स्वरुप दिया उन ज़मीनों की आज भी देखरेख के लिए एक स्थानीय परिवार की नियुक्ति राजा के कार्यकाल के राजा के द्वारा की गयी वही परिवार आज भी उन ज़मीनों की देखरेख में है।
2- चियासर गाँव- इस गाँव में ॠषि च्यवन रहे।
3- परीछितपुर-इस गाँव में ॠषि परीछित रहे।
4- जहाँगीरपुर- इस गाँव में आरुणि उद्दालक ॠषि रहे इस गाँव में आज भी इनका मन्दिर बना है।
वर्तमान समय में खुदागंज की सराय अब पुरातत्व विभाग में दर्ज है
जब हमने वहाँ के स्थानीय लोगों से बात की और सराय के बारे में जाना तो लोगों ने बताया कि सराय अब पुरातत्व विभाग में दर्ज है, और इस सराय में लगभग 20 वर्ष पहले विभाग द्वारा मरम्मत का कार्य कराया गया था। लोगों ने यह भी बताया कि सराय की इमारत क्षतिग्रस्त हो चुकी है और उसमें स्थानीय लोगों के द्वारा अलग-अलग जगह पर कब्जा कर रखा है और जो सराय की जमीन या इमारत है उसमें भी लोग कब्जा किये हुए हैं ,और कुछ लोग कब्ज़ा करने हेतु प्रयासरत हैं ।स्थानीय लोगों ने यह भी बताया की पुरातत्व विभाग कन्नौज के द्वारा कुछ लोगों को कब्ज़ा हटाने हेतु नोटिस भी दिए जा चुके हैं लेकिन विभाग द्वारा आजतक कोई कार्यवाही नहीं की गयी है।
जिसने बसाया खुदागंज उसकी सराय के लिए रास्ता भी नहीं
एक बहुत पुरानी मिसाल है कि चिराग तले अंधेरा ऐसा ही कुछ हमें खुदागंज की सराय में देखने को मिला जिसकी जमीन पर लगभग पूरा खुदागंज बसा हुआ है। उस सराय के लिए कोई ठीक सा रास्ता भी अब निकलने के लिए नहीं बचा जब हम सराय को देखने के लिए पहुंचे तो एक बहुत पतली सी लगभग 3 फीट की रास्ता से निकलना पड़ा वहां के लोगों ने सराय की जमीन पर जो कब्जा किया है, वह इस हद तक किया है की सराय में आने जाने वाले लोगों के लिए रास्ता तक नहीं छोड़ा इस पतली से गली से लोगों का सराय में आना जाना लगा रहता है, और उसी जगह पर सराय की एक मस्जिद भी मुग़लकाल में ही तामीर की गयी है यहां लोग आज भी नमाज अदा करते हैं।
पुरातत्व विभाग के द्वारा की जा रही सराय की अनदेखी
पुरातत्व विभाग का कन्नौज कार्यालय है वहां से एक कर्मचारी साल 2 साल बाद आता है और वहां पर सराय की सफाई कराकर चला जाता है और कभी 2 या 4 साल में विभाग द्वारा सराय की देखरेख के लिए कर्मचारी भी भेज दिया जाता था जो वहां पर कुछ दिनों लगातार रहता था उसके बाद वह भी चला जाता था । अब कई वर्षों से विभाग द्वारा कोई देख रेख के लिए कर्मचारी भी नहीं आता है सराय की इमारत क्षतिग्रस्त है, और वहां पर अवैध कब्जे भी लोगों ने कर रखे हैं, कहीं तो सराय की इमारत में भूसा भरा है, और कोई तो वहां पर मीट बेचने की दूकान रखे है कुछ लोग वहां पर झोपड़ी डालकर रहते हैंAलोगों ने बताया कि सराय की जमीन में खुदागंज बसा हुआ है और खुदागंज की पूरी मार्केट सराय की जमीन में है जिससे कई वर्ष पूर्व तक जिला परिषद विभाग किराया वसूल करता रहा और सराय की जमीन में एक बाजार भी लगता है उससे भी जिला परिषद ठेका देकर पैसा वसूली करता रहा सराय के ही भवन में जिला परिषद् द्वारा बेडारास भी चलाया जाता रहा अब किसी तरीके से मार्केट या सराय की जमीन से जिला परिषद् द्वारा कोई ठेका नहीं होता है।
सराय में बनी खूबसूरत मस्जिद
सराय के अन्दर एक खूबसूरत मस्जिद भी तामीर है लोगों ने बताया की सराय के अंदर एक मस्जिद भी है जब हम वहां पर मस्जिद देखने पहुंचे तो मस्जिद में देखा की पूरी मस्जिद और सराय की इमारत ककईया ईंट से बनी हुई है मस्जिद की इमारत बहुत ही मजबूत है और खूबसूरत भी है लेकिन विभाग द्वारा मरम्मत न कराने के कारण मस्जिद की छत में पानी मरने से छत टपकने लगती है लोगों ने बताया इस मस्जिद में हम लोग अपने पैसे से इमाम भी रखे हैं जो नमाज के साथ-साथ बच्चों को भी पढ़ाते हैं और मस्जिद की पूरी देखभाल भी करते हैं।
सराय को लेकर क्षेत्रीय लोगों की मांग
जब हमने वहां के क्षेत्रीय लोगों से कहा कि आप सराय को लेकर क्या मांग रखते हैं तो लोगों ने कहा कि हम पुरातत्व विभाग से और अपने फर्रुखाबाद के जिलाधिकारी से मांग करते हैं और उम्मीद करते हैं कि वह सराय और सराय के अंतर्गत आने वाली मस्जिद की विभाग द्वारा मरम्मत कार्य कराएं और सराय में जो लोग अवैध कब्जा कर रखे है। ऐसे लोगों को बेदखल कर सराय की जमीन को सुरक्षित रखा जाए और विभाग द्वारा सराय की देखरेख के लिए एक कर्मचारी को तैनात किया जाए, जिससे हमारी विरासत सुरक्षित रह सके सराय को पर्यटक आवास गृह के रूप में पुनः स्थापित किया जाये वहां के लोगों ने यह भी सुझाव दिया कि सराय में लोगों के ठहरने के लिए बनाई जाती थी, अब इस सराय को फर्रुखाबाद की विरासत के रूप में बचाने का तरीका उसको पुनः स्थापित करके पर्यटक आवास गृह के रूप में बनाया जाये अगर सरकार चाहे तो इसे ऐतिहासिक विरासत के रूप में सराय को पुनः स्थापित कर सकती है क्योंकि खुदागंज फर्रुखाबाद कन्नौज की सीमा भी है और खुदागंज के आसपास के गांव भी पर्यटक स्थल के रूप में जाने जाते हैं, इन स्थानों पर दूर-दूर से लोग आते हैं इसमें श्रंगीरामपुर एक महत्वपूर्ण धार्मिक बड़ा स्थल के रूप में विख्यात है वहां पर दूर-दूर से आने वाले लोगों को जो रुकने की समस्या है वह इस सराय को पर्यटक आवास गृह के रूप में बदलने से खत्म हो जायेगी, और हमारी विरासत भी पुनः स्थापित हो जायेगी ऐसा क्षेत्रीय लोगों का कहना तथा शासन प्रशासन से उनकी ये मांग है।
(तौसीफ अली की रिपोर्ट)