छड़ी बाजों के बीच डोले से दरगाह पहुंचे सज्जादानशीन

FARRUKHABAD NEWS

फर्रुखाबाद:(जेएनआई ब्यूरो)  शनिवार को कमालगंज की शेखपुर में स्थित दरगाह मखदूमियां के उर्स का “ले चल पीर ” के बुलन्द नारों और छड़ी बाजों के साथ दरगाह के सज्जादानशीन मौलाना हज़रत गालिब मियां डोले में बेहोशी की हालत में शेखपुर दरगाह पहुंचे। आपको बता दें कि हर साल‌ इस उर्स में लाखों की भीड़ देश के कोने-कोने से आकर दरगाह की जियारत करती थी। लेकिन पिछले दो साल से कोरोना वायरस के चलते उर्स की सिर्फ रस्म अदायगी की जा रही है। हजरत शेख मखदूम बुर्राक लंगर जहां रह०का उर्स व मेला रवायती अंदाज में हर साल इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक 12 जमादिउल आखिर से 18 जमादिउल आखिर तक मनाया जाता है क्योंकि शेख मखदूम अपनी चिल्लागाह भोजपुर में 746 हिजरी सन 1351 में 12 जमादिउल आखिर को बीमार पड़े और 17 जमादिउल आखिर को आपका विसाल हो गया और 18 जमादिउल आखिर को आपको आपकी वसीयत के मुताबिक शेखपुर में सुपुर्द-ए-खाक किया गया ,जहां इस वक़्त आपकी आलीशान बेहतरीन दरगाह बनी है। इस उर्स को छड़ियों वाला मेला भी कहा जाता है। तारीख बताती है कि हज़रत शेख मखदूम ने अपने विसाल से पहले एक वसीयत की थी , कि जहां पर एक मिट्टी का लोटा पानी से भरा हुआ मिले और एक रीठे का पेड़ हो व एक भीगा हुआ कपड़ा मिले उसी जगह पर मुझे दफ़न करना। वसीयत के मुताबिक जब वह जगह तलाश की गई तो शेखपुर में मिली शेखपुर उस वक्त बांसों का एक घना जंगल था उस मुकाम को जहां आपको दफ़न होना था जब वहां बांस के पेड़ काटकर साफ किया गया तो उन बासों से मुरीदों ने उनकी छड़ियां बनाई और दौड़ते हुए भोजपुर पहुंचे।  भोजपुर में आशिकाने मखदूम हज़रत मखदूम को भोजपुर में ही दफ़न करना चाहते थे लेकिन दिगर मुरीद और आपके बेटे आपको वसीयत के मुताबिक शेखपुर में दफ़न करना चाहते थे ।इसी बात को लेकर दोनों पक्षों में टकराव हो गया और लाठियां खींच गई इसी बीच आपका लाशा मुबा़रक परवाज कर गया और आवाज़ आयी “ले चल पीर” और दोनों पक्ष लाशें मुबारक के पीछे पीछे दौड़ पड़े आपका लाशा मुबारक जिन ऊंचे नीचे उबड़ खाबड़ रास्तों से होकर बघार नाला पार करता हुआ शेखपुर पहुंचा वह रास्ता आज भी कायम है । चाहें बघार नाला सूखा हो या पानी से उफान मार रहा हो आज भी शेख जी का डोला और उनके मुरीद उसी रास्ते से छड़ी लेकर डोले के पीछे पीछे दौड़ते चले आते हैं| शेख मखदूम का जन्म सन् 1181 में बगदाद में हुआ था आपने सन् 1260 में सीस्तान मुल्क की बादशाहत को ठोकर मार दी,और रूहानी दुनिया में निकल पड़े और बहुत सी जगह का भ्रमण करने के बाद सन् 1350 में गंगा नदी के किनारे भोजपुर तशरीफ लाए।  दरगाह मखदूमियां शेखपुर में बादशाह जलालुद्दीन अकबर ,औरंगजेब एवं कई बादशाहों ने अपने-अपने दौर में दरगाह पर हाज़िरी दी। और 24 सितंबर 1958 में तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट एलएन आचार्य ने दरगाह को मिलने वाली पेंशन को निरन्तर जारी रखा था लेकिन अब वो पेंशन दरगाह की कई सालों से बंद हो गई है। शेखपुर दरगाह कौमी एकता गंगा जमुनी तहजीब का संगम है तथा सभी धर्मों के लोग इस दरगाह पर हाजिरी लगाने आते हैं और लाखों लोगों की संख्या में सभी धर्म के लोग दरगाह पर आते हैं और अपनी अपनी दुआओं को मांगते हैं दरगाह पर आने वाले लोग सभी धर्मों से होते हैं यहां इस उर्स की कमेटी अध्यक्ष भी एक हिन्दू धर्म से हैं, और मेला कमेटी के बहुत से सदस्य भी हिन्दू धर्म के हैं और सभी लोग बड़ी जिम्मेदारी से उर्स की व्यवस्था देखते हैं और उर्स में आने वाले किसी भी इंसान को किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं होनी देती है उर्स कमेटी इस मेले का तबर्रुक सेव के लड्डू है जिन्हें शेखपुर लड्डुओं के नाम से भी जाना जाता है एक बार हजरत शेख मखदूम हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगा़ह पर जिस वक्त पहुंचे वहां महफिले सिमा का दौर जारी था। और हज़रत कुतुब बख्तियार काफी रहमतुल्लाह आलैह की रुबाई पढ़ी जा रही थी जिसको सुनते ही हज़रत मखदूम बेहोश हो गए आपको हज़रत निजामुद्दीन औलिया ने हज़रत मोहम्मद रसूलल्लाह सल्लल्लाह अलैह बसल्लम का पाकीज़ा लिवास खिरका़ शरीफ़ पहना दिया और कुछ देर बाद शेख मखदूम जब होश में आए तो हज़रत निजामुद्दीन औलिया ने आपको मुबारकबाद देते हुए कहा कि मखदूम आप बड़े खुशनसीब हैं कि अब यह खिरका शरीफ़ आपके पास हमेशा रहेगा। और अब यह खिरका शरीफ़ हमेशा आप की नस्लों में रहेगा। जो आज भी सज्जादानशीन के पास महफूज है जिसको उर्स के मौके पर 18 जमादिउल आखिर को सज्जादानशीन जेबतन फरमाते हैं और यह जेबतन फरमाते ही सज्जादानशीन पर वज्द तारी हो जाता है और उन्हें आलमें बेहोशी में ही मुरीद अपनी छडि़यों की हिफाज़त में “ले चल पीर” की बुलन्द सदाओं के बीच भोजपुर की चिल्लागाह से पालकी डोले में लेकर दरगाहे मखदूमियां शेखपुर लाते हैं और उसके बाद दरगाहे मखदूमियां पर बाद नमाजे़ असर फातिहाख्वानी और कुल शरीफ़ हुआ।
(तौसिफ अली कमालगंज की रिपोर्ट)