फर्रुखाबाद:(कमालगंज संवाददाता) वहीं थोड़ी दूर है घर मेरा मेरे घर में है मेरी बूढ़ी माँ मेरी माँ के पैरों को छू के तू उसे उसके बेटे का नाम दे ऐ गुजरने वाली हवा ज़रा मेरे दोस्तों मेरी दिलरुबा मेरी माँ को मेरा पयाम दे! यह चंद लाइनें उस समय याद आ गयी जब जेएनआई टीम शौर्य पदक विजेता आलोक दुबे के घर पंहुची तो उनकी माँ की आँखे बेटे की बहादुरी की गाथा
सुन खुशी के आंसुओ से भर आयीं|
कमालगंज के भटपूरा के मूल निवासी आलोक दुबे को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से शौर्य चक्र उनकी बहादुरी को लेकर दिया| उन्हें शौर्य चक्र मिलने के बाद जेएनआई टीम उनके पैत्रक गाँव पंहुची| जहाँ हर तरफ जश्न का माहौल था| गाँव की हर गली हर चौराहे पर जांबाज हबलदार आलोक दुबे की बहादुरी की चर्चा हो रही थी| उनके घर पर वृद्ध माँ आशा देवी अपने बहादुर बेटे का दीदार करनें को बेचैन दिखीं| उनकी आँखों से अनायास ही खुशी के आंसू निकल पड़े|
आशा देवी में पांच पुत्र है| चार निजी कार्य करते है और आलोक सेना में हबलदार हैं| उनकी 15 बीघे खेती अन्य भाई देखते है| आलोक की माँ नें उनके कुछ बचपन की यादों को भी साझा किया|
25 को जनपद की सरजमी पर पंहुच रहे आलोक
शौर्य चक्र मिलने के बाद वह पहली बार अपने जनपद में 25 नवंबर को आ रहे है| उनके स्वागत ले लिए लोगों ने तैयारी तेज कर दी है|