लोहाई रोड के जिस मकान के बाहर ब्रह्मदत्त द्विवेदी की हत्या हुई थी वहाँ हर साल 10 फरवरी को उनकी याद में पुष्पांजलि और मशाल जलती है| अपने दोस्त रामजी अग्रवाल के भतीजे के तिलक में शामिल होने के लिए द्विवेदी पहुचे थे| एक गनर ब्रजकिशोर मिश्र और ड्राइवर के साथ| लगभग 11.30 से 12 बजे के बीच का समय था| सर्दी की रात में कार्यक्रम समापन की और हो चला था| द्विवेदी जी वापस घर जाने के लिए निकले ऊँचे मकान की सीड़ियो से उतरने के बाद अपनी कार तक पहुचे| खिड़की खोल कर बैठ गए| कार के शीशे खुले हुए थे| रामजी अग्रवाल उनका भतीजा और परिवार के अन्य सदस्य अपने मकान के गेट तक उन्हें छोड़ने के लिए आये थे और उनकी गाड़ी के रवाना होने का इन्तजार कर रहे थे| गनर गाड़ी के बाहर खड़ा था| तभी उनकी कार के चारो और से घेर कर फायरिंग होने लगी| लाबड़तोड़ गोलियां चली| ब्रह्मदत्त द्विवेदी और गनर बृजकिशोर सहित ड्राईवर और रामजी अग्रवाल के भतीजे के भी गोली लगी| बताते है कि दरवाजे पर खड़े लोग अपनी जान बचाने को घर में छुप गए| सड़क पर सन्नाटा हो गया| ऊपरी मंजिल की बालकनी या छत पर खड़े मनोज अग्रवाल ने अपनी पिस्तौल निकाल गोली चलाई| ऊंचाई और दूरी के कारण शायद पिस्तौल स्वचालित हथियारो के आगे नाकाम साबित हो रही थी| मगर फिर भी हिम्मत की गयी| मगर सब बेकार गया| दुर्दांत हत्यारे अपने मकसद में कामयाब हो गए| लगभग 20 से 25 मिनट तक पूरे लोहाई रोड सन्नाटा|घटना के कुछ समय बीत जाने के बाद आखिर फिर हिम्मत जुटाकर वापस लोग जुटे और रामजी अग्रवाल के भतीजे की टाटा सूमो में द्विवेदी जी को लिटाकर पहले डॉ० जितेन्द्र कटियार के नर्सिंग होम जो चंद कदमो कि दूरी पर था वहाँ लाया गया| मगर डॉ० जितेन्द्र कटियार का दरवाजा नहीं खुला तो आनन् फानन में बढ़पुर स्थित डॉ एन सी जैन के नर्सिंग होम में लाया गया| जहाँ उन्हें डॉ जैन ने मृत घोषित कर दिया| एक विकास का दिया बुझ चुका था| प्रभुदत्त, सुधांशु, डॉ० हरिदत्त कोई कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था| यकीन नहीं कर पा रहा था कि उनका कोई करीबी इस तरह दुनिया से विदा हो जायेगा| गनेश दुबे, सदानंद शुक्ल, स्व बागीश अग्निहोत्री, राम चन्द्र कुशवाहा, मोती लाल गुप्ता, अजय पाराशर, अयोध्या प्रकाश सिंह जैसे तमाम चेहरे जैन अस्पताल के बाहर मौजूद थे| मोबाइल का जमाना नहीं था| बेसिक फोन से जहाँ तक सूचना पहुचती दो चार को लोग बताते और अस्पताल की ओर दौड़ पड़ते| मंजुल दुनिया से विदा हो चुका था| खामोश चेहरा, बंद आँखे और शांत शरीर जीवन के अंतिम पड़ाव की तस्वीर साफ़ थी मगर यकीन फिर भी नहीं हो रहा था| लोग शव देखने के बाद भी इशारो इशारो में एक दूसरे से पूछ कर पुष्टि कर लेना चाहते थे कि क्या उनका नेता क्या बाकई चला गया!
प्रशासन से लेकर पुलिस तक खामोश थी| जिलाधिकारी अरविन्द कुमार, पुलिस अधीक्षक अखिलेश मल्होत्रा, अपर पुलिस अधीक्षक एसएन सिंह, कोतवाल ओपी शर्मा सब डॉ० जैन के अस्पताल पहुचे| पुलिस अधीक्षक ने डीजीपी और डीआईजी को सूचना दी| जिलाधिकारी ने फोन पर कमिश्नर कानपुर को द्विवेदी जी की हत्या की सूचना दी| लोग पीसीओ खोजने में लगे थे| सूचना देने के लिए बेसिक फोन तलाश किये जा रहे थे| खबरनवीसों में अखबारो के पत्रकार सक्रिय हो चुके थे| तब टीवी का जमाना नहीं था| रेडियो पर समाचार प्रमोद कुदेसिया ने प्रसारित करवाया| सत्यमोहन पाण्डेय अपने कार्यालय में समाचार भेजने में लगे थे| मगर शहर ख़ामोशी से सो रहा था|
घटना स्थल पर स्वर्गीय द्विवेदी की कार खड़ी थी| पुलिस जांच पड़ताल में लगी थी| रात सुबह की और बढ़ रही थी और भाजपा कार्यकर्ता जैन अस्पताल पहुँच रहे थे| द्विवेदी परिवार के सभी सदस्य यहाँ मौजूद थे| ब्रह्मदत्त द्विवेदी की पत्नी स्व प्रभा द्विवेदी और उनके पुत्र मेजर सुनील द्विवेदी सुबह 4/5 बजे के आसपास लखनऊ से फर्रुखाबाद पहुच चुके थे| दोनों लोग उस दिन लखनऊ में ही थे| हर चेहरा उदास और शांत| कोई कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था| यह पहली बार देखा था जब हर कार्यकर्त्ता दिल से दुखी दिखा|
साक्षी महाराज उस दिन अनन्त होटल में थे| साक्षी महाराज ने राम नगरिया के बड़े क्षेत्र में अपना पंडाल लगाकर उसी दिन भागवत कथा शुरू की थी जिस रात यह घटना हुई| साक्षी जी भी जैन अस्पताल पहुंचे थे| हर शख्स की पूरी रात जागते ही कट गयी और शव पोस्टमार्टम के लिए फतेहगढ़ ले जाया गया| अब रिटायर हो चुके कन्हैया ने ही पोस्ट मार्टम किया था| पोस्टमार्टम हाउस का वह मंजर पहली बार दिखा था| जहाँ धर्म, जाति और दलीय सीमाएं टूट गई थीं| ऐसी भीड़ पहली बार देखी गयी थी| पूरे पोस्टमार्टम के दौरान भीड़ बढ़ती रही| जो आ जाता वो रुक जाता था| साक्षी, उर्मिला भी पहुंचे थे| पोस्टमार्टम के बाद शव को पहले ब्रह्मदत्त द्विवेदी के घर पर लाया गया| उसके बाद दिन में लोगों के अंतिम दर्शनार्थ भारतीय पाठशाला ले जाया गया| एफआईआर हो चुकी थी| एक नामजद और 3-4 अज्ञात में मुकदमा कोतवाली में लिखा जा चुका था| सुबह दोपहर की ओर बढ़ रही थी| पूरी भारतीय जनता पार्टी फर्रुखाबाद में पहुच रही थी| पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण अडवाणी, विनय कटियार, प्रेमलता कटियार, लालजी टंडन, कलराज मिश्र से लेकर हर नामी भाजपाई चेहरा फर्रुखाबाद पहुच रहा था| मगर मायावती और कल्याण सिंह नयी आये| आम जनता में सुबह जब लोग घर से निकलते तो खबर मिलती और जिसे जैसा साधन मिलता वो सेनापत स्ट्रीट पहुच रहा था| नेहरू रोड उस जमाने में जाम की स्थिति में पहुच चुका था|
“मौत स्वाभाविक होनी चाहिए| ऐसा नहीं होना चाहिए कि बड़ा भाई बैठा रहे और छोटा भाई चला जाए| द्विवेदी जी की मौत स्वाभाविक नहीं थी| अभी उनकी उम्र ही क्या थी| स्वस्थ शरीर| शांत स्वभाव और दबंग व्यक्तित्व| अभी उन्हें कई मैदान मारने थे| अभी कई लड़ाई जीतनी थी| कई किले फ़तेह करने थे|” बोलते बोलते पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की आँखे नम हो गयी| नगर की जिस सड़क और गलियो में ब्रह्मदत्त द्विवेदी जिंदाबाद के नारे लगते थे एक काली रात में सब कुछ बदल गया| किराना बाजार से लेकर लालगेट तक सड़के इंसानो और इंसानियत से भरी हुई थी और ब्रह्मदत्त द्विवेदी अमर रहे के नारो के सिवा दूसरी न कोई आवाज न कोई शोर…
20 साल पहले 10 फरवरी 1997 को सुबह 9 बजे द्विवेदी जी का शव उनके सेनापति स्ट्रीट स्थित आवास से खुली जिप्सी पर रखकर लोहाई रोड पर भारतीय पाठशाला में अंतिम दर्शनार्थ लाने के लिए लाया गया| प्रेमलता कटियार एक हाथ से बार बार गाड़ी में शांत लेटे द्विवेदी जी का हाथ छू रही थी तो दूसरे हाथ से निरंतर झर रहे नेत्रो को साफ़ कर रही थी| बागीश अग्निहोत्री जिप्सी के आगे रास्ता बना रहे थे| गली के इस ओर से उस छोर तक और सड़क से लेकर छतो और छज्जो पर खड़े होकर जनता द्विवेदी जी को अंतिम विदाई दे रही थी| नगर में पीएसी तैनात कर दी गयी थी| 5 ट्रक पीएसी ने चौक से लालगेट को कब्जे में ले लिया था| मगर न किसी को हटाने की जरुरत थी और न रास्ता साफ़ करने की| सब बात इशारो इशारो में हो रही थी| आधे घंटे में शव सेनापति स्ट्रीट से लोहाई रोड की भारतीय पाठशाला पहुच सका|
भारतीय पाठशाला के प्रांगण के बीचो बीच टेंट की एक छत तानी गयी थी| तखत पर द्विवेदी जी का शव रखा था| पीले गेंदे और लाल गुलाब से ढका हुआ| फूल मालाये ज्यादा हो जाती तो कुछ उतार दी जाती| अंतिम दर्शन के लिए यहीं पर अटल बिहारी बाजपेयी, मुरली मनोहर जोशी और लालकृष्ण अडवाणी एक ही हेलीकाप्टर से आये थे| पुलिस लाइन से भाजपा के तीनो दिग्गज नेता भारतीय पाठशाला पहुचे| सीढ़ियों से पैदल चलते हुए प्रांगण तक पहुचते पहुचते अटल जी की आँखे नम हो चुकी थी| साथ के सुरक्षा कर्मी ने उन्हें रुमाल थमाया| तीनो नेताओ ने पुष्प चक्र द्विवेदी जी को अर्पित किया| कैमरामेन कई कुर्सियों पर खड़े होकर वो अंतिम दृश्य अपने कैमेरे में कैद कर लेना चाहते थे| फोटोग्राफर मुकेश शुक्ल कैमेरे बदल बदल कर फ़ोटो खीच रहे थे| उस ज़माने में रील वाले कैमेरे होते थे| एक कैमेरे की रील ख़त्म हो जाती तब तक सहयोगी दूसरे कैमेरे में रील डाल कर कैमेरा दे देता| लोग अंतिम दर्शन में आते, द्विवेदी जी को प्रणाम करते और हट जाते दूसरो को मौका देने के लिए| कई घंटे तक ये सिलसिला चला और फिर अंतिम यात्रा शुरू हुई|
जब मौत के दरवाजे के आगे से द्विवेदी जी का शवयात्रा गुजारी तो हर एक की निगाह उस स्थान पर एक बार गयी जहाँ द्विवेदी जी को मौत के घाट उतार दिया गया था| उस मकान में सजे हुए गेंदे के फूल द्विवेदी जी के साथ ही मुरझा चुके थे| कल तक जो फूल अपने मेहमानो के स्वागत के लिए सजाये गए थे आज वे अंतिम विदाई दे रहे थे| नाले मच्छरट्टे से चौक और चौक से लालगेट की तरफ केवल एक तरफ ही आवागमन हो रहा था| अंतिम यात्रा में रास्ते एकतरफा हो चले थे| कोई एक आदमी भी सड़को पर दूसरी तरफ से वापस नहीं चल रहा था|
इतिहास में पहली बार था जब सुरक्षा व्यस्था अब प्रदेश के सबसे बड़े पुलिस अधिकारी डीजीपी हरिदास राव खुद सम्भाले हुए थे| क्या कांग्रेसी, क्या बसपाई कोई तो नहीं था जो दिखा न हो उस अंतिम यात्रा में| किस किस का नाम लिखा जाए| कुछ चंद लोगो को छोड़कर| राजनैतिक रूप से विरोध करने वाले भी हैरान थे| व्यापारियो ने बाजार नहीं खोला| बंद दुकाने मनो अपने नेता को श्रद्धांजलि दे रही हो| अनायास हुई हत्या पर स्तब्ध था फर्रुखाबाद| किसने की हत्या? क्यों की हत्या? और कैसे हुई हत्या? इन सभी सवालो का जबाब एक ख़ामोशी थी जो अंतिम यात्रा के रूप में शांत गाड़ी पर लेटी हुई थी…..और रास्ते भर नारे लग रहे थे– जब तक सूरज चांद रहेगा, ब्रह्मदत्त जी का नाम रहेगा….