फर्रुखाबाद:(जेएनआई ब्यूरो)दीपावली को लेकर कुम्हार मिट्टी के दीप बनाने में जी जान से जूट गए हैं । साथ हीं कुम्हारों ने चाइनीज लाइट का जबाब मिट्टी के दीप से देने का फैसला भी किया है| दीपावली नजदीक आते ही कुम्हारों के चाक घूमने लगे हैं। बड़ी संख्या में मिट्टी के दीये बनाने का कार्य कुम्हारों ने शुरू कर दिया है। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से त्योहारों पर स्थानीय उत्पादों की खरीदारी किए जाने के आह्वान से इस बार कुम्हारों में ज्यादा बिक्री होने की उम्मीद जगी है। चीनी सामानों का बहिष्कार भी इनकी खुशहाली में चार चांद लगाने के लिए तैयार है|
दीपावली आगामी 14 नवंबर को मनाई जाएगी। इस अवसर पर दीपों से अपने घर-आंगन को सजाने की तैयारी लोगों ने शुरू कर दी है। बदलते ट्रेंड के साथ लोग डिजाइनर दीये भी खूब पसंद करने लगे हैं। वहीं चाइनीज दीयों से मोहभंग के चलते मिट्टी के दीयों की मांग बढ़ी है। भारतवर्ष में दीपावली को बड़े पर्व के रूप में मान्यता दी जाती है। दीपावली के समय कुम्हारों के चेहरे खिल जाते हैं क्योंकि दीया, कुल्लड़ और मिट्टी की घरिया और खेल-खिलौने बनाने का काम विश्वकर्मा पूजा से कुम्हारों के बीच शुरू हो जाता है। अबकी दीवाली कुम्हारों के लिए इसलिए खास लग रही है क्योंकि इस बार चीनी सामानों के विरोध के चलते फिर से बाजार में मिट्टी के दीये व खेल-खिलौनों की डिमांड बढ़ गई है।
दीपक बनाने को चाक ने पकड़ी रफ्तार
दीपावली पर धन लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए मिट्टी के दीपक बनाने वाले कुम्हारों के चाक ने रफ्तार पकड़ ली है। उन्हें इस बार अच्छी बिक्री की उम्मीद है। मिट्टी के दीपक, मटकी आदि बनाने के लिए माता-पिता के साथ उनके बच्चे भी हाथ बंटा रहे हैं। कोई मिट्टी गूंथने में लगा है तो किसी के हाथ चाक पर मिट्टी के बर्तनों को आकार दे रहे हैं।
बिक्री बढऩे की उम्मीद
शहर के नई बस्ती निवासी सतीश प्रजापति नें बताया कि इस बार उम्मीद है कि कुछ ज्यादा दीपक की बिक्री होगी क्योंकि चाइना के बने सामना की खरीदारी का खूब विरोध हुआ है| पिछले साल करीब तीस हजार दीपक व मिट्टी के अन्य सामग्री बेची थी। इस बार उम्मीद है कि पचास हजार से साठ हजार तक दीपकों की बिक्री होगी।
चाक से बनती है कई चीजें
हाथ का चाक से फटाफट दीपक व अन्य सामान तैयार किया जाता है। इस पर दीपक, घड़ा, करवा, गमला, गुल्लक, गगरी, मटकी, बच्चों की चक्की समेत अन्य उपकरण भी बनाए जाते हैं।
कुम्हारों को ईंधन पड़ता है महंगा
मिट्टी चाक पर चढऩे के बाद एक रूप दे देते हैं पर उसको पक्का करने के लिए मिट्टी को पकाया जाता है। पहले ईंधन इतना महंगा नहीं था पर अब ईंधन ने भी कुम्हारों का पसीने छुड़ा देता है। कुम्हारों को एक पल की भी फुर्सत नहीं मिल पाती है। इस बार गणेश लक्ष्मी की मूर्तियों से लेकर दीए तक की मांग चल रही है।
50-60 रूपये सैकड़ा बिकते हैं दीये
कुम्हार बिक्री के लिए दीये की अलग-अलग वैरायटी बनाने लगे हैं। कुम्हारों ने बताया कि 50 रुपए सैकड़ा में दीये बेचे जाते हैं लेकिन दीया बनाना ही परेशानी का सबब नहीं बल्कि बिक्री करने में भी काफी दिक्कतें होती है। धनतेरस से लेकर दीपावली के दिन तक दीये की बिक्री करते हैं। ऐसे में बाजार में जिस किसी भी दुकान के सामने फुटपाथ पर दीये की बिक्री करते हैं, उसका किराया देना पड़ता है। मिट्टी लाने व दीये बनाने से लेकर पकाने में जो खर्च होता है। उसके हिसाब से लाभ नहीं हो पाता। कहा कि कुम्हारों को सरकारी मदद दी जानी चाहिए जिससे मिट्टी गढऩे की कला बची रहे।
बोले युवा, मिट्टी की दीपक ही जलाएंगे
प्राचीन संस्कृति के लिहाज से मिट्टी के दीपकों का ही दीपावली में महत्व होता है। इसे बच्चे व युवा खूब अच्छे से जान रहे हैं। यही वजह है कि अब चाइना के उत्पादों को छोड़कर देशी दीपकों की मांग बढ़ रही है। युवा गोपाल मिश्रा, प्रांशु दुबे, रामजी मिश्रा, रानू दीक्षित, अंकुर दुबे, राजा दुबे आदि नें बताया की वे कुम्हारों से बने मिट्टी की दीपक ही जलाएंगे। साथ ही अन्य लोगों को जागरूक भी कर रहे हैं।