डेस्क: हर वर्ष पितृपक्ष (पितृ विसर्जन) के तुरन्त बाद नवरात्र की शुरुआत हो जाती थी। इसके बाद 9 दिन तक मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा होती थी। हलांकि इस साल ऐसा नहीं है। इस बार पितृपक्ष और शारदीय नवरात्र के बीच एक महीने का अंतर आ गया है। इस साल पितृ विसर्जन के अगले ही दिन से नवरात्र शुरू होने की बजाए एक महीने विलंब से शुरू होगा। पितृ पक्ष और नवरात्र के बीच में एक महीने का अधिमास, पुरुषोत्तम मास, मलमास होगा। अधिमास 17 सितंबर से 16 अक्टूबर तक रहेगा। यह सभी के शुभ और फलदायी रहेगा|
आचार्य सर्वेश शुक्ल ने बताया कि 17 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र की शुरुआत होगी। धर्म शास्त्रों के अनुसार 165 साल बाद यह संयोग बनने जा रहा है। इस बार अधिमास और लीप ईयर एक ही वर्ष में पड़ रहे हैं। इस कारण चातुर्मास जो हर साल चार महीने का रहता है। वो इस बार पांच महीने का होगा। चातुर्मास लगने के कारण इस दौरान शुभ कार्य और मांगलिक कार्य संपन्न नहीं होंगे। इस बार शारदीय नवरात्र की शुरुआत शनिवार,17 अक्टूबर से होगी। जबकि 24 अक्टूबर को नवमी मनाई जाएगी। 25 अक्टूबर को विजयादशमी और देवउठनी एकादशी भी होगी। देवोत्थान एकादशी का पर्व 25 अक्टूबर बुधवार को मनाया जायेगा।
एक ही दिन होगी विजया दशमी और देवोत्थान एकादशी
देवोत्थान एकादशी का पर्व 25 अक्टूबर के दिन 1:11 बजे से आरंभ होगा और इसका समापन अगले दिन 26 अक्टूबर को 3:18 बजे शाम में होगा। जिसके साथ ही चातुर्मास समाप्त होंगे। इसके बाद ही विवाह, मुंडन आदि मंगल कार्य शुरू होंगे।
क्या है अधिक मास
आचार्य सर्वेश शुक्ल ने बताया कि हिन्दू पंचांग में बारह मास होते हैं। यह सूर्य की संक्रांति और चन्द्रमा की गड़ना पर आधारित होते हैं। हर वर्ष सूर्य और चन्द्र की युति के कारण मास में लगभग 11 दिनों का अंतर आ जाता है। तीन वर्ष में यह अंतर लगभग एक माह का हो जाता है। इसलिए हर तीसरे वर्ष अधिक मास आ जाता है। इसको लोकाचार में मलमास भी कहा जाता है।