फर्रुखाबाद:(दीपक-शुक्ला) देश आज कारगिल विजय दिवस की सालगिरह मना रहा है। विजय दिवस की 21वीं वर्षगांठ पर पूरा देश भारत के वीर सपूतों के अदम्य साहस और कुर्बानी को याद कर रहा है। आज हम 1999 में हमारे देश की रक्षा करने वाले सशस्त्र बलों के साहस और दृढ़ संकल्प को याद करते हैं। उनकी वीरता पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी। कारगिल की विजय दिलाने वाले सेना के जवानों की शहादत सदैव हम सबके लिए प्रेरणा के स्रोत के रूप में काम करेगी। उन्ही में से हमारे जनपद के जांबाज बेटे मिलेटरी सिंह भी शहीद हुए थे| जिस पर पूरे देश को नाज है| लेकिन परिवार को सरकार से शिकायत भी!
जब कारगिल युद्ध छिड़ा, उसके बाद सेना के जवान मिलेटरी सिंह बुलावा आने पर घर-परिवार की चिंता छोड़ युद्ध भूमि की ओर निकल पड़े। इसके बाद तो तिरंगे में लिपटा शव ही घर पहुंचा। कारगिल का युद्ध हुए 21 वर्ष गुजर गये| लेकिन शहिद का परिवार आज भी सरकार से सबाल करता है कि क्या हुआ तेरा वादा|
शहीद की शहादत के वक्त सरकार द्वारा किए गए वायदों के पूरे नहीं हाेने का उन्हें मलाल है। लेकिन वहीं गर्व भी कि उनकी मांग का सिंदूर देश के लिए काम आया|
शहर के सेंट्रल जेल चौराहा नारायनपुर निवासी मिलेटरी सिंह 13 फरवरी 1999 को कारगिल युद्ध में “आपरेशन रक्षक” के दौरान शहीद होकर वीरगति को प्राप्त हो गये थे| मिलेटरी सिंह नें तो देश सेवा करते हुए अपने प्राणों की आहुति देकर देश सैनिक की जिम्मेदारी का निर्वहन किया| वही दूसरी तरह उनकी पत्नी वीरनारी गीता देवी ने 21 वर्षों से अपनी संतानो को पिता की वीरगाथा की कहानी सुनाकर परवरिश कर परिवार की जिम्मेदारी भी किसी सैनिक से कम नही निभायी|
कारगिल विजय दिवस पर जेएनआई टीम को वीर नारी गीता देवी नें बताया कि पाक के नाम से आज भी उनका खून खौलने लगता है| उन्होंने पति के शहीद होंने के बाद बड़े बेटे को भी सेना में भेज दिया| दो और बेटे है जिनकों भी वह सेना में भेजकर देशसेवा कराना चाहती है|
उन्होंने बताया कि पति मिलेटरी सिंह की शहादत के बाद केंद्र सरकार ने लंबी-चौड़ी घोषणाएं कीं। तमाम आश्वासन मिले, लेकिन सब कागजों में ही हैं। आज तक धोषणा में शामिल पेट्रोल पम्प नही मिल सका| पति की शहादत के वक्त सरकार द्वारा किए गए वायदों के पूरे नहीं हाेने का उन्हें मलाल है।