फर्रुखाबाद:(दीपक-शुक्ला) लॉकडाउन ने रिश्तों की डोर को काफी मजबूत कर दिया है। यह लॉकडाउन के दौरान कई स्टडी से साबित हुआ है। भागदौड़ भरी जिंदगी बेशक अब ठहर सी गई है, लेकिन यह ठहराव समाज और रिश्तों को नई मजबूती देगा। कोरोना वायरस ने एक ओर लोगों की रोजी-रोटी छीन ली है। उन्हें घरों में कैद कर दिया है तो दूसरी ओर यह कुछ अच्छे परिणाम भी लेकर आया है। परदेस से घर लौटने वालों के कारण गांव गुलजार है। बच्चों को उनके दादा-दादियों से कहानियां सुनने का मौका मिल रहा है। बच्चों को घर में पाकर दादा-दादी की खुशियों का ठिकाना नहीं है। उनकी धमाचौकड़ी बुजुर्गो को बहुत पसंद आ रही है। साथ ही साथ बूढी आँखों के सामने परदेश से वर्षों बाद वापस आये बेटे और पोतो के साथ बैठकर एक साथ भोजन करने का असीम आनन्द की अनुभूति भी हो रही है|
अभी लॉकडाउन चल रहा है। घर और बाहर हर तरह से बंदिशें हैं। कोरोना के कहर से ऐसे हालात से सब जूझ रहे हैं। मगर, समाज, परिवार और देश के लिए ये जरूरी है। घरों के अंदर लोगों की दिनचर्या कैसी गुजर रही है, जेएनआई टीम नें जब कुछ लोगों के आंगन में जाकर देखा तो जो चित्र दिखा वह आपके सामने है| अमृतपुर के गाँव कुंडरा निवासी वृद्ध रामादेवी की आँखों में ख़ुशी के आंसू दिखे| वह लॉक डाउन से पूर्व अपने गाँव के घर में अकेले रहती थी| बेटा राजपाल अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहता था| रामादेवी को उम्मींद नही की थी उनके बेटे के साथ इतना लम्बा समय गुजारने का मौका मिलेगा| आज बेटा, पुत्रबधू और पौत्र एक साथ भोजन करते है और एक दूसरे पर परिवार की परिभाषा को समझा रहे हैं|
वही ग्राम पिथनापुर निवासी रवि ने बताया कि वह अपने परिवार के साथ समय गुजार रहे है| उन्हें लॉक डाउन में अपने परिवार के साथ एक लम्बा समय गुजारने का मौका मिला | रवि ने बताया कि जब वह हरियाणा में था तो उसको अपने गाँव की बहुत याद आती थी| लेकिन उसके बाद भी काम के बोझ के कारण माँ सरिता को समय नही दे पाया था| लेकिन अब उनके साथ लम्बे समय तक रहने का मौका मिला है| जिससे वह भी खुश हैं| परिवार के साथ रहने से रिश्तों की डोर मजबूत हुई है|
(ब्रजकान्त दीक्षित प्रतिनिधि अमृतपुर)