फर्रुखाबाद:(दीपक-शुक्ला) प्रवासी मजदूरों को एकांतवास के बाद रोजगार का संकट सताने लगा है। वे काम ढूंढ रहे हैं, ताकि परिवार के सदस्यों के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ हो सके। लेकिन, उन्हें रोजगार नहीं मिल रहा है। कोरोना काल में लॉकडाउन से काम और कमाई छिन जाने से हजारों प्रवासी मजदूर अपने गांव लौट आए हैं। यहां भी उनके लिए रोजी और रोटी सबसे बड़ी समस्या बनी है। वर्षों से अफसरों व पंचायत प्रतिनिधियों की कमाई का जरिया बनी मनरेगा पर ही उनकी उम्मीदें टिकी हैं। जिसमें सख्ती के बावजूद अधिकांश पंचायतों में कागजी पेंच फंसने से प्रवासी मजदूरों को मनरेगा में भी काम नही मिल पा रहा है| जिससे उनके सामने परिवार के पेट पालने की समस्या हो गयी है|
लॉकडाउन से पूर्व महानगरों में रहकर जीवन यापन करने वाले करीब हजारों प्रवासी मजदूर जिले में अपने गांव लौट आए हैं। यहां आकर उन्हें भले ही राहत मिल गई हो, लेकिन अभी उनकी मुश्किलें कम नहीं होने वाली हैं। दरअसल उनके सामने अब रोटी के लिए काम व कमाई की चिंता विकराल है। यहां भी उनकी मुश्किलें तब तक कम नहीं होने वाली हैं, जब तक उनको काम से कमाई का रास्ता नहीं मिल जाता है। गांव में पहले ही काम न होने से पलायन किया था अब फिर उसी गांव में अपने घर में लौट आए मजदूरों को यहां कब तक कौन सा काम मिलेगा, परिवार का पेट कैसे पलेगा, ये उनके लिए सबसे बड़ी चिंता है। ऐसे में गांव में ही काम दिलाने वाली महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) योजना पर मजदूरों की उम्मीद टिकी है। हालांकि मनरेगा का बजट बढ़ाकर गांव में मनरेगा के तहत काम शुरू कराए गए हैं| लेकिन अभी भी सैकड़ों की संख्या में मजदूर है जिन्हें मनरेगा के तहत रोजगार नही मिला है|
गृह जनपद पहुंचे प्रवासी मजदूरों के सामने रोजगार का संकट पैदा हो गया है। इतने लोगों को रोजगार मुहैया कराना प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है। हालांकि, शासन गांव में रोजगार के लिए मनरेगा पर जोर दे रहा है, लेकिन धरातल पर इसका असर दिखाई देने में समय लगेगा। कई ऐसे मजदूर हैं, जिन्होंने 14 दिनों का होम क्वारंटीन पूरा कर लिया है, लेकिन बेरोजगार बैठे हैं।राजेपुर विकास खंड के गाँव गाजीपुर चैनगंज निवासी धीरज पुत्र राजाराम नें बताया कि वह अहमदाबाद में नौकरी करते थे| देवेंद्र पुत्र शिव कुमार राजस्थान में कपड़ा रंगाई का काम करते थे| वह लगभग गाँव के 35 लोग लॉक डाउन में वापस आये है| उन्हें अभी तक मनरेगा का कार्य नही मिला| उनका जॉब कार्ड भी नही बना है|
अम्बरपुर गाँव के मनीराम पुत्र राजाराम ने बताया कि उनके साथ परिवार के 20 लोग दिल्ली में रहकर परिवार पाल रहे थे| लेकिन लॉक डाउन में वह सभी गाँव आ गये| सरकार के आदेश के बाद भी उन्हें मनरेगा में अभी तक काम नही दिया गया|
गाँव बरुआ में भी लगभग आधा सैकड़ा लोग प्रवासी मजदूर है| लेकिन उन्हें कई सप्ताह का समय गुजर जाने के बाद भी मनरेगा में काम नही दिया गया| जिससे उनके ऊपर परिवार को पालने की समस्या है| प्रधानों का कहना है काम देनें का प्रयास किया जा रहा है|लेकिन जब जेब में पैसा नही होता तो एक दिन काटना मुश्किल होता है यह बात भी समझने की जरूरत है|
(राजेपुर प्रतिनिधि शिवा दुबे )