नई दिल्ली: कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या दुनिया भर में दस लाख को पार कर चुकी है। पूरी दुनिया के वैज्ञानिक इसका इलाज और इसकी सटीक दवा बनाने में जुटे हैं। इस वायरस का सबसे पहला शिकार बना चीन भी इसकी दवा को बनाने में जुटा हुआ है वहीं उसका सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी अमेरिका भी इस काम में पूरी ताकत से जुटा है। दोनों की इसको लेकर काफी बराबरी पर हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिका ने इसकी दवा बनाने का दावा कर 17 मार्च को इसका इंसान पर ट्रायल शुरू कर दिया था। वहीं कोरोना वायरस से परेशान चीन ने भी 17 मार्च को ही इसके इलाज के लिए बनाई गई वैक्सीन का क्लीनिकल ट्रायल शुरू किया था। यही वजह है कि ये दोनों इस वक्त काफी बराबरी पर हैं। गौरतलब है कि दिसंबर से लेकर अब तक कोरोना वायरस का कहर पूरी दुनिया पर टूटा है। आज कोई देश ऐसा नहीं है जहां पर इसका कोई मरीज न हो। बीते तीन माह में इसकी वजह से पूरी दुनिया खतरे में आ गई है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन लगातार इसको लेकर चेतावनी दे रहा है। इतना ही नहीं संगठन लगातार इस बात को कह रहा है कि जब तक इसकी वैक्सीन बाजार में नहीं आ जाती है तब तक लोगों को बचाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले प्रोटेक्टिव इक्यूपमेंट्स को तेजी से और ज्यादा संख्या में बनाया जाए। इस काम में भी पूरी दुनिया लगी हुई है। कुछ जगहों पर तो सभी जरूरी काम छोड़कर मास्क समेत दूसरी चीजों को बनाने में कारिगरों को लगाया गया है। हर किसी को इंतजार है उस वक्त का जब इस बीमारी की दवा उनके देश, शहर और कस्बों तक पहुंच जाएगी। हालांकि ये भी साफ है कि इसमें अभी वक्त लगेगा।
खुद अमेरिका इस बात को कह चुका है कि उसके यहां पर कोरोना वायरस पर काबू पाने में दो माह का समय और लग सकता है। इतना ही नहीं दवा को लेकर अमेरिका ने कहा है कि जो परीक्षण इंसानों पर शुरू किया गया है यदि वो सफल भी होता है तो उसको बाजार में लाने में करीब डेढ़ वर्ष का समय लग सकता है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि क्लिनिकल ट्रायल की रिपोर्ट अमेरिका में अब तक सामने नहीं आई है। वहीं दूसरी तरफ चीन के क्लीनिकल ट्रायल के नतीजों को लेकर काफी कुछ कहा जा रहा है।
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो चीन में बनाई गई दवा के सभी टेस्ट वुहान में ही किए गए थे। इन रिपोर्ट्स में यहां तक कहा गया है कि जिन लोगों पर ये परीक्षण किए गए थे उन लोगों को 14 दिनों के बाद घर भेज दिया गया था। इसके बाद भी वो न सिर्फ सेहतमंद थे बल्कि पूरी तरह से रोगमुक्त भी थे। हालांकि ये सभी लोग अभी तक घर पर रहने के बावजूद डॉक्टरों की की निगरानी में हैं।
चीन के अखबार चाइना डेली ने अकादमी ऑफ मिलिट्री सांइस के सदस्य और शोधकर्ता चेन वी के हवाले से लिखा है कि यदि चीन में क्लीनिकल ट्रायल सही रहता है तो इसको उन देशों में भी टेस्ट किया जाएगा जो इसकी ज्यादा चपेट में हैं। आपको बता दें कि चीन ने जो दवा तैयार की है उसको मिलिट्री अकादमी और चाइनीज अकादमी ऑफ इंजीनियर ने मिलकर बनाया है। इसको फिलहाल Ad5-nCoV नाम दिया गया है। इसके क्लीनिकल ट्रायल के लिए करीब 108 वोलेंटियर्स की मदद ली गई है। जिनको वुहान के तोंग्जी अस्पताल में ही रखा गया था। चेन के मुताबिक ये सभी लोग 18 साल से लेकर 60 साल तक की उम्र के थे। इन सभी लोगों को तीन समूहों में बांटा गया था और दवा की अलग-अलग मात्रा दी गई थी।
आपको ये भी बता दें कि इनमें से कुछ को ही अभी घर भेजा गया है जबकि कुछ अब भी डॉक्टरों की निगरानी में अस्पताल में ही हैं। जिन 14 लोगों को घर भेजा गया है उन्हें भी छह माह तक डॉक्टरों मेडिकल निगरानी में रखा जाएगा। इनका हर मेडिकल टेस्ट होगा और इनके शरीर में हो रहे बदलावों पर ध्यान रखा जाएगा। डॉक्टरों को उम्मीद है कि ये दवा शरीर में इस वायरस से लड़ने की क्षमता को विकसित करेगी और उनके शरीर में एंटीबॉडी का निर्माण करेगी। यदि सब कुछ ठीक रहा तो इसके बाद इस वैक्सीन को बाजार में उतार दिया जाएगा। चेन वी की मानें तो वह शुरुआत में मिली सफलता से काफी उत्साहित हैं।