लखनऊ: चीन से विश्व भर में फैले तथा दुनिया में महामारी का सबब बने कोविड-19 यानी कोरोना वायरस साबुन के झाग के आगे बेहाल है। इसको महज 20 सेकंड साबुन से हाथ धोकर इस वायरस को मौत के घाट उतारा जा सकता है।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) ने इसको रोकने का प्रावधान सामने ला दिया है। आइसीएमआर दिल्ली के वायरोलॉजिस्ट डॉ. देब प्रसाद चट्टोपाध्याय ने बताया कि कोविड-19 यानी कोरोना वायरस कोई लिविंग सेल नहीं है। यानी शरीर के बाहर यह जीवित अवस्था में नहीं रहता। इसे जीवन के लिए मानव शरीर में घुसने की जरूरत पड़ती है। ऐसे में यदि यह हमारे हाथ में लगा हो और हम साबुन से 20 सेकंड तक हाथ धो लें तो इसका विनाश हो जाता है। यही वजह है कि कोरोना वायरस से जंग में हाथ धोने को एक महत्वपूर्ण हथियार माना जा रहा है।
डॉ. चट्टोपाध्याय बताते हैं कि कोरोना वायरस की ऊपरी सतह लाइकोप्रोटीन व फैट की बनी होती है। साबुन में यह गुण होता है कि वह किसी भी फैट या वसा को काट देता है। ऐसे में जब हम हाथ में साबुन के झाग बनाते हैं तो यह वायरस की छुट्टी कर देता है। उनका कहना है कि फैट अल्कोहल से भी धुल जाता है। इसी कारण अल्कोहल आधारित सैनिटाइजर की रिकमेंडेशन की गई है। आजकल जैसे हालात बने हैं, ऐसे में सैनिटाइजर हर एक के पास उपलब्ध होना मुश्किल है। साबुन हर अमीर- गरीब के पास आसानी से उपलब्ध रहता है।
तीन हफ्ते के लॉकडाउन से कोरोना को परास्त करने की जंग
कई लोग यह जानना चाहते हैं कि तीन हफ्ते का लॉक डाउन कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाने में हमारी किस तरह मदद कर सकता है। डॉ. चट्टोपाध्याय बताते हैं कि किसी भी वायरस को जीवित रहने के लिए होस्ट की जरूरत होती है। यानी वह उस पर निर्भर रहकर अपना जीवन बढ़ा सके। ऐसे में यदि हम सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करेंगे तो वायरस को होस्ट उपलब्ध नहीं होगा।
आंख-नाक के रास्ते शरीर में पहुंचता है वायरस|
बीते तीन दशकों से विभिन्न वायरस पर अध्ययन कर रहे डॉ. देब प्रसाद बताते हैं कि कोरोना वायरस मानव शरीर के बाहर मृत अवस्था में रहता है। यह हमारे शरीर में आंख और नाक के रास्ते पहुंचता है। सबसे आसान रास्ता नाक है। नाक से श्वसन तंत्र में पहुंचकर यह अपना घर बनाता है। आंख के जरिए भी यह हमारे शरीर में पहुंच सकता है।
तीन तरह से हो रहा संक्रमण
कोरोना का संक्रमण तीन तरह से हो रहा है। एक उससे जो व्यक्ति संक्रमित हो, दूसरा वह जो संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आया हो या तीसरा जिनमें यह दोनों ही न हों। यानी वह किसी संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में न आया हो या उसने कोई यात्रा न की हो फिर भी उसे संक्रमण हो जाए। इसी को हम कम्युनिटी संक्रमण कहते हैं। हमें इसी से बचना है। भाग्यवश आइसीएमआर की सलाह पर सरकार के कदमों से अभी हम कम्युनिटी संक्रमण यानी तीसरी स्टेज से दूर हैं। डॉ. देब प्रसाद कहते हैं कि हम सचेत और सतर्क थे जिसके चलते हमने अपनी तैयारियों को बगैर देर किए शुरू कर दिया। इटली व अमेरिका जैसे देश इस चीज को नहीं समझ सके।