फर्रुखाबाद: जिले भर में 1803 होलिकाएं स्थापित की गई हैं। होलिका दहन के दौरान किसी प्रकार का विवाद न हो इसको देखते हुए पुलिस प्रशासन की ओर से सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गए हैं। समस्त थानेदारों को निर्देशित किया गया है कि जहां कहीं विवाद की सूचना मिले उसे बातचीत से सुलझाएं। विवाद करने वालों को चेतावनी दें। फिर भी वह नहीं सुधरता है तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें।
सोमवार देर रात को होलिका दहन के लिए जनपद के लोगों ने पूरी तैयारी कर ली है। करीब 15 दिनों से होलिका जलाने के लिए लकड़ी इकट्ठा किए जा रहे हैं। कही आस-पास से सूखे पेड़ काटकर होलिका बनायी गयी है तो कही सामूहिक चंदे से होलिका स्थापित की गयी है| जनपद के प्रत्येक थाना क्षेत्रों में सौ से अधिक होलिकाएं स्थापित की गई हैं। सर्वाधिक होली मोहम्मदाबाद कोतवाली क्षेत्र में कुल 187 होलिका स्थापित है| जिसको अच्छी तरह से जलाने के लिए तकरीबन दो सप्ताह से लोग उसमें लकड़ी डालने के लिए जुट जाते हैं। कोई चंदा लगाकर लकड़ी की खरीदारी करता है तो कोई इधर-उधर से लकड़ी आदि की व्यवस्था कर जमा करता है। होली की पूर्व संध्या पर होलिका को जलाया जाये है। दूसरे दिन रंगों का त्योहार होली मनाया जाता है।
इसलिए होता है होलिका दहन
होली की पूर्व संध्या पर होलिका दहन किया जाता है। इसके पीछे एक प्राचीन कथा है कि असुर हिरण कश्यप भगवान विष्णु से घोर शत्रुता रखता था। इससे अपनी शक्ति के घमंड में आकर स्वयं को ईश्वर कहना शुरू कर दिया था। घोषणा कर दी कि राज्य में केवल उसी की पूजा की जाएगी। उसने अपने राज्य में यज्ञ और आहुति बंद करवा दी और भगवान के भक्तों को सताना शुरू कर दिया। हिरण्य कश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। पिता के लाख कहने के बावजूद प्रहलाद विष्णु की भक्ति करता रहा। असुराधिपति हिरण्य कश्यप ने अपने पुत्र को मारने की भी कई बार कोशिश की परंतु भगवान स्वयं उसकी रक्षा करते रहे। उसका बाल भी बांका नहीं हुआ। असुर राजा की बहन होलिका को भगवान शंकर ने ऐसी चादर मिली थी कि जिसे ओढ़ने पर अग्नि उसे जला नहीं सकती थी। होलिका उस चादर को ओढ़कर प्रहलाद को गोद में लेकर चिता पर बैठ गई। दैवयोग से वह चादर उड़कर प्रहलाद के ऊपर आ गई। जिससे प्रहलाद की जान बच गई और होलिका जल गई। होलिका दहन के दिन होली जलाकर होलिका नामक दुर्भावना का अंत और भगवान द्वारा भक्त की रक्षा का जश्न मनाया जाता है।
होलिका दहन का महत्व
होली हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है और इसका धार्मिक महत्व भी बहुत ज्यादा है। होली से एक दिन पहले किए जाने वाले होलिका दहन की महत्ता भी सर्वाधिक है। होलिका दहन की अग्नि को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है। होलिका दहन की राख को लोग अपने शरीर और माथे पर लगाते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से कोई बुरा साया आसपास भी नहीं फटकता है। होलिका दहन इस बात का भी प्रतीक है कि अगर मजबूत इच्छाशक्ति हो तो कोई बुराई आपको छू भी नहीं सकती। जैसे भक्त प्रह्लाद अपनी भक्ति और इच्छाशक्ति की वजह से अपने पिता की बुरी मंशा से हर बार बच निकले। होलिका दहन बताता है कि बुराई कितनी भी ताकतवर क्यों न हो, वो अच्छाई के सामने टिक नहीं सकती और उसे घुटने टेकने ही पड़ते हैं।
होलिका दहन की पूजन सामग्री
एक लोटा जल, गोबर से बनीं होलिका और प्रह्लाद की प्रतिमाएं, माला, रोली, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, गुलाल, नारियल, पांच प्रकार के अनाज, गुजिया, मिठाई और फल।