फर्रुखाबाद: वित्त वर्ष २०१०-११ समाप्त होने को है और ग्रामीण स्वास्थ्य एवं स्वच्छता समितियों का अभी गठन तक नहीं हो पाया है| वित्तीय वर्ष के अंत में उत्तर प्रदेश के अफसर साल भर के काम का बजट १० दिन में खर्च करने में जुट गए है| जाहिर है इतने कम समय में करोडो के सरकारी धन के सदुपयोग की सम्भावना न के बराबर है और होली पर जनता के धन को बंदरबाट करने का बेहतरीन मौका है|
“सबसे बुरा हाल ग्रामीण विकास पर खर्च होने वाले बजट का है| शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग में इस माह लखनऊ से आने वाले बजट के हर पत्र के साथ एक लाइन लिखी आ रही है-“इस बजट का उपभोग 31 मार्च 2011 से पहले कर ले और उपभोग प्रमाण पत्र भेज दें| जाहिर है मंशा काम कराने की कम और बजट हड़प करने की ज्यादा है वर्ना ये भी तो हो सकता है कि काम देख परख कर अप्रैल में करा लें या फिर काम न हो सके तो पैसा वापिस भिजवा दें|”
बात करते हैं ग्रामीण स्वास्थ्य एवं स्वच्छता समितियों की इन समितियों का मुख्य कार्य गाँव के लोगों के स्वास्थ्य ग्रामीण स्वच्छता एवं शुद्ध पेय जल के ध्यान रखने का है| इस कार्य को करने के लिए प्रति वर्ष प्रति आबाद गाँव के हिसाव से १० हजार रुपये राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की और से आवंटित किये जाते है|
डाक्टर राममनोहर लोहिया अस्पताल ने रास्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की और से परिवार कल्याण विभाग द्वारा आयोजित ग्राम प्रधान सम्मलेन में इस बात का खुलासा हुआ| अधिकतर ग्राम पंचायतों के प्रधानो को ग्राम स्वास्थ्य एवं स्वच्छता समिति के विषय में जानकारी ही नहीं थी| गाँव में इन समितियो के माध्यम से ही स्वच्छता एवं शुद्ध पेय जल, स्कूल के बच्चो के स्वस्थ्य सम्बन्धी कार्य और परिवार कल्याण की योजनाओं का संचालन होता है| सम्मेलन में प्रधानो को ही बुलाकर सरकार ग्राम समितिओं को बलशाली बनाने का दावा करती है| हकीकत ये है कि इन समितिओं में अन्य सदस्यों का कोई योगदान ही नहीं हो पाता| कार्यक्रम में बताया गया कि समितियां गाँव में मिलकर योजना बनाएगी और बजट खर्च करेंगी| मगर जब प्रधान के अलावा समितिओं के अन्य सामान्य ग्रामीण सदस्यों को इस बात की जानकारी ही नहीं होगी तो कैसे सरकार की मंशा कामयाब होगी| हकीकत ये है कि प्रधान इन समितिओं को कोई तब्बजो नहीं देते और सरकारी नुमयांदे भी बंदरबाट ने रायता न फैले इस मकसद से समितिओं को कागजो में ही सीमित रखना चाहते है|
इस विषय पर मुख्यचिकित्सा अधिकारी डाँ पीके पोरवाल ने बताया कि वित्त वर्ष २०१०-११ के प्रारंभ में ग्राम स्वास्थ्य एवं स्वच्छता समितियों का गठन किया गया था परन्तु वर्ष के बीच में ही पंचायत चुनाव हो जाने के कारण अधिकतर ग्राम प्रधान बदल गए है तथा इसके बाद प्रधानों एवं अधिकारियों के व्यस्तताओं के कारण दोवारा समितियों का गठन नहीं हो सका है|
उन्होंने कहा कि प्रधानो को ६ पंचायत सदस्यों, एनम, अध्यापकों तथा आशा वहुओं को मिलाकर तत्काल समिति के गठन का कार्य पूरा कर लेना चाहिए ताकि ग्राम स्वास्थ्य एवं स्वच्छता समिति के खाते में पडी धनराशि का प्रयोग ग्रामीण हितों के लिए किया जा सके|