लखनऊ: समृद्धि के प्रतीक सूर्य देव के पूजन का पर्व छठ को लेकर राजधानी में भी तैयारियां शुरू हो गई हैं। 36 घंटे निर्जला व्रत के इस महापर्व की शुरुआत एक नवंबर को छोटी छठ (खरना) से होगी, लेकिन घरों में आयोजन 31 अक्टूबर से शुरू हो जाएंगे।
लक्ष्मण मेला स्थल पर होने वाला मुख्य आयोजन दो और तीन नवंबर को होगा। मेला स्थल पर घाट पर सुसुबिता (छठ मइया का प्रतीक) को रंगने का कार्य पूरा हो गया है। अखिल भारतीय भोजपुरी समाज के अध्यक्ष प्रभुनाथ राय ने बताया कि इस बार यहां आने वाले भोजपुरी समाज के पुरुषों से भगवा रंग का कुर्ता और पीले रंग की धोती पहन कर आने को कहा गया है। सूर्य देव के प्रतीक इन रंगों के वस्त्र धारण कर सभी पुरुष सूर्य देव को अर्घ्य देंगे। 150 से अधिक गायक यहां छठ गीतों का गुलदस्ता पेश करेंगे। मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा उप मुख्यमंत्री डॉ.दिनेश शर्मा व महापौर संयुक्ता भाटिया समेत कई मंत्री व सांसद छह उत्सव में शामिल होंगे।
वहीं, महंत देव्यागिरि ने बतायास कि छठ उत्सव को लेकर तैयारियां शुरू हो गई हैं। सामाजिक समरसता के इस कार्यक्रम में पूर्वांचल के साथ ही यहां के लोग भी हिस्सा लेंगे। वहीं मनकामेश्वर उपवन,कृष्णानगर के मानसनगर स्थित संकट मोचन हनुमान मंदिर (नई पानी की टंकी पार्क) पीएसी महानगर, मवैया व शिव मंदिर घाट समेत कई स्थानों पर पूजन होगा।31 को नहाय खाय से होगी शुरुआत
31 अक्टूबर को नहाय खाय से व्रत की शुरुआत होगी। एक नवंबर को व्रत की सामग्री की साफ सफाई के साथ ही महिलाएं दिनभर व्रत रखती हैं। दो नवंबर को कार्तिक मास की छठी मुख्य पर्व होगा। शाम को पुरुष सदस्य सिर पर टोकरी में पूजन सामग्री रखकर घाट तक जाते हैं और व्रती महिलाओं छठी मइया के गीत रास्तेभर गाती हैं। कलावती ने बताया कि सूर्य अस्त होने से पहले सुसुबिता की पूजा करने के साथ ही महिलाएं पानी में खड़ी होकर सूर्य देव को अर्घ्य देती हैं। डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही घाटों पर आतिशबाजी भी होती है। तीन नवंबर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण होता है।
ऐसे होती है पूजा
लौकी की खीर खाकर महिलाएं व्रत शुरू करती हैं। बेटा या पति बांस की टोकरी में मौसमी फल व सब्जियों को छह, 12 व 24 की संख्या में लेकर नदी या तालाबों के किनारे जाते हैं। छठ गीत गाती व्रती महिलाओं के संग अन्य महिलाएं घाट तक जाती हैं। मिट्टी की सुसुबिता (छठ मइया का प्रतीक) बनाकर पुरोहितों के सानिध्य में पूजा होती है। गन्ने के साथ ही दूध व गंगा जल से डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। दूसरे दिन उगते सूर्य की उपासना और अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाता है।
इसलिए होता है व्रत
नदी व सरोवरों के किनारे मिट्टी की बनी सुसुबिता (छठी मइया का प्रतीक) की विधि विधान से पूजा की जाती है। स्नानकर महिलाएं पानी में खड़े होकर डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देकर संतान की सुख की कामना करती हैं। छठी मइया के गीतों के साथ पति या बेटा सिर पर बास की टोकरी में सभी मौसमी फल रखकर घाट तक जाते हैं और महिलाएं सूप में जलते दीपक और गंगाजल के साथ छठ गीतों के संग पीछे-पीछे चलती हैं।
पूजन में विशेष
छठ पर्व पर परिवार में जितने पुरुष होते हैं उतने सूप से पूजा की जाती है। गाय का दूध, गन्ना, सिंघाड़ा, संतरा, सेब, मूली, नींबू, कच्ची हल्दी व चावल का बना लड्डू और रक्षा सूत्र के पुरोहित व पूज्यनीय विधि विधान से पूजन कराते हैं। महिलाएं ऐसी साड़ी या धोती पहनती हैं, जिसमे काले रंग का प्रयोग न हो।
महापर्व का पहला दिन
मानसनगर की रंजना सिंह का कहना है कि कार्तिक मास की चतुर्थी को नहाय खाय से व्रत की शुरुआत होती है। लौकी-भात (अरवा चावल) व दाल बनाई जाती है। इन दिन रसोई को पूरी तरह साफ करके व्रती महिलाएं अलग चूल्हे पर इसे पकाती हैं। दिनभर व्रत रखने के साथ ही देर शाम इसका सेवन करती हैं। परिवार का कोई भी सदस्य तब तक भोजन नहीं करता है जब तक व्रती महिलाएं भोजन कर लें।
व्रत का दूसरा दिन छोटी छठ
व्रत रखने वाली कलावती बताती हैं कि कार्तिक मास की पंचमी को दूसरे दिन व्रती महिलाएं व्रत की सामग्री की साफ सफाई के साथ ही दिनभर व्रत रखती हैं। शाम को देशी घी रसियाव (गुड़-अरवा चावल की बनी खीर) का केले के पत्ते पर सेवन करके व्रत की शुरुआत करती हैं। इसी दिन ठेकुआ के साथ ही पूजन में लगने वाली सामग्री का निर्माण भी किया जाता है। इसके बाद से इनका 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है। कुछ महिलाएं इस दिन घाट पर जाकर सुसुबिता की पूजा-अर्चना कर डूबते सूर्य को अर्घ्य देती हैं।
तीसरे दिन होती है मुख्य पूजा
मानसनगर के उदय सिंह ने बताया कि कार्तिक मास की छठी मुख्य पर्व होता है। शाम को पुरुष सदस्य सिर पर टोकरी में पूजन सामग्री रखकर घाट तक जाते हैं और व्रती महिलाओं छठी मइया के गीत रास्तेभर गाती हैं। सूर्य अस्त होने से पहले सुसुबिता की पूजा करने के साथ ही महिलाएं पानी में खड़ी होकर सूर्य देव को अर्घ्य देती हैं। बिना चप्पल के नंगे पैर घाट तक जाने की परंपरा भी है। इसके साथ ही संतान सुख और शादी विवाह जैसे शुभ कार्य होने वाले घरों की महिलाएं या पुरुष परिक्रमा करके घाट तक जाते हैं। मनोकामना पूर्ण होने पर कुछ लोग बैंड बाजे ही धुन पर थिरकते हुए घाट तक जाते हैं। डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही घाटों पर आतिशबाजी भी होती है। कुछ लोग घाट पर ही रात बिताते हैं तो कुछ घर वापस आते हैं, लेकिन रातभर छठ मइया के गीत गाते हैं।
सप्तमी को उदयीमान सूर्य को अर्घ्य
किरन पांडेय ने बताया कि दो नवंबर की शाम की भांति एक बार फिर तीन नवंबर की सुबह पुरुष सिर पर टोकरी में पूजन सामग्री के साथ ही घाट तक जाएंगे। महिलाएं पूरब दिशा की तरफ मुंह करके उगते सूर्य को अर्घ्य देती हैं। गन्ने के संग सूर्य को अर्घ्य देकर महिलाएं सभी को प्रसाद देती हैं। प्रसाद वितरण के साथ ही 36 घंटे के व्रत का पारण होता है। केरवा फरेला घवद से ओहे पे सुगा मंडराय…और कांचहि बांस की बहंगिया…जैसे छठ गीतों के संग व्रती घाटों पर जाती हैं।