फर्रुखाबाद:(ब्यूरो) सनातनी परंपरा के तीन ऋणों में पितृ ऋण प्रमुख माना जाता है। पितरों को समर्पित आश्विन मास का कृष्ण पक्ष पितृ पक्ष कहा जाता है। पितृ पक्ष आगमन के प्रथम दिन गंगा घाटों पर दूरदराज से पहुंचे श्रद्धालुओं ने स्नान किया और गंगा पूजन के बाद पितरों को तर्पण कर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। ब्राह्मणों को भोजन कराया और जरूतमंदों को दान किया। 28 सितंबर को पितृ विसर्जन अमावस्या होगी।
नगर के पांचाल घाट पर श्राद्ध पक्ष के प्रथम दिन शनिवार को गंगा घाट पहुंचे श्रद्धालुओं ने गंगा में डुबकी लगाई। गंगा स्नान के बाद माता गंगा का पूजन किया। बालू से घाट पर भगवान शंकर की शिवलिग बनाई और जलाभिषेक किया। कुश के साथ पितरों को तर्पण किया। मान्यता है कि पितृ पक्ष में विधिविधान पूर्वक तर्पण करने से पूर्वजों के मुक्ति मिलती है। पितृ पक्ष के समय जो भी अर्पण किया जाता है वह पितृगणों तक पहुंचता है। घरों में श्राद्ध किए गए। ब्राह्मणों को भोजन कराया गया। जरूतमंदों को दान दिया गया।
प्राचीन ग्रंथों तथा पुराणों में वर्णन
श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है उसे श्राद्ध कहते हैं। श्राद्ध के महत्व के बारे में कई प्राचीन ग्रंथों तथा पुराणों में वर्णन मिलता है। श्राद्ध का पितरों के साथ बहुत ही घनिष्ठ संबंध है। पितरों को आहार और अपनी श्रद्धा पहुंचाने का एकमात्र साधन श्राद्ध है। मृतक के लिए श्रद्धा से किया गया तर्पण, पिंड और दान ही श्राद्ध कहा जाता है।