लखनऊ: गंभीर वित्तीय संकट से जूझ रहे पावर कारपोरेशन प्रबंधन को उबारने के लिए एक बार फिर उपभोक्ता को पीड़ा उठानी पड़ेगी। पावर कारपोरेशन प्रबंधन को बिजली की प्रस्तावित नई दरों से अपनी माली हालत में सुधार की बड़ी उम्मीद है।
ऐसे मेें प्रबंधन जहां उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग पर जल्द टैरिफ आर्डर जारी करने का दबाव बढ़ाए हुए है, वहीं आयोग भी जन्माष्टमी से लेकर रविवार तक की छुट्टी में दफ्तर खोलकर नई बिजली दरों को अंतिम रूप देने में जुटा है। प्रबंधन के दबाव व आयोग की तैयारियों को देखते तय माना जा रहा है कि सितंबर के पहले पखवाड़े से ही बिजली महंगी हो जाएगी। ऊर्जा विभाग ने बिजली की दरों को बढ़ाये जाने को लेकर नियामक आयोग का दरवाजे पर दस्तक दी है। ऊर्जा विभाग आर्थिक तंगी को दूर करने के लिए बिजली की दरें बढ़ा रहा है।
पावर कारपोरेशन ने 14 जून को आयोग में नई दरों का प्रस्ताव दाखिल किया था। प्रस्तावित दरों पर सभी वितरण कंपनियों में सार्वजनिक सुनवाई पूरी होने के बाद आयोग अब कागजी कार्रवाई पूरी करने में जुटा है। नियमत: आयोग के पास दाखिल प्रस्ताव से नई दरें घोषित करने के लिए 120 दिन यानी चार महीने का समय होता है लेकिन, लडख़ड़ाती वित्तीय स्थिति को देखते पावर कारपोरेशन के दबाव पर आयोग लगभग 90 दिनों में ही नई दरों का एलान करने की तैयारी में जुटा है।
आयोग द्वारा दरों की घोषणा के बाद पावर कारपोरेशन उसे एक हफ्ते बाद ही लागू कर सकता है इसलिए आयोग सितंबर के पहले हफ्ते तक दरें घोषित कर सकता है। उल्लेखनीय है कि कारपोरेशन ने आयोग को घरेलू बिजली 6.20 से 7.50 रुपये और व्यावसायिक श्रेणी की दरें 8.85 रुपये प्रति यूनिट तक करने का प्रस्ताव दिया है। इसी तरह उद्योगों की बिजली 10 से 15 फीसद तक महंगी करने के साथ बीपीएल, ग्रामीण अनमीटर्ड व निजी नलकूपों की दरें बढ़ाने का भी प्रस्ताव दिया गया है।
क्या है प्रस्ताव
उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन ने नए टैरिफ में घरेलू बिजली 6.20 रुपया प्रति यूनिट से बढ़ा कर 7.50 रुपया करने का प्रस्ताव भेजा है। इसके साथ ही कॉमर्शियल बिजली 8.85 रुपया करने का प्रस्ताव सौंपा है। अब उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत नियामक आयोग अब इस पर जल्द फैसला लेगा।
हड़बड़ी में दरें न बढ़ाए आयोग
पावर कारपोरेशन के दबाव और नियामक आयोग की तेजी देख उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने नई बिजली दरें तय करने में हड़बड़ी न करने की मांग की है। परिषद अध्यक्ष ने बिजली दरें बढ़ाने के विरोध में दाखिल आपत्तियों का परीक्षण करने के बाद ही निर्णय लेने की जरूरत बताई है।
बड़े बकायेदारों पर आज से अभियान
उत्तर प्रदेश में बिजली बिल के बड़े बकायेदारों पर कार्यवाइ का अभियान आज से शुरू हो गया है। माना जा रहा है कि राजधानी लखनऊ में ही दस हजार से ज्यादा बिजली बकायेदारों का कनेक्शन कटेगा। हर खण्ड को 250 लोगों की लिस्ट दी गई। बिजली विभाग अपनी आर्थिक तंगी दूर करने के लिए बकाएदारों की बिजली गुल करेगा। प्रमुख सचिव ऊर्जा आलोक कुमार के सख्त निर्देश पर अभियान शुरू हुआ है। अभूतपूर्व वित्तीय संकट से गुजर रहा पावर कारपोरेशन अपनी हालत सुधारने के लिए बड़े बकायेदारों पर कड़ा शिकंजा कसने जा रहा है। बिजली खरीद और वेतन भुगतान का पैसा न होने पर कारपोरेशन ने बकायेदारों से वसूली के लिए रविवार को प्रदेशभर में युद्ध स्तर पर अभियान चलाने के निर्देश सभी वितरण निगमों के प्रबंध निदेशकों को दिए हैैं। आर्थिक तंगी को देखते हुए प्रमुख सचिव ऊर्जा और पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष आलोक कुमार ने 10 हजार रुपये से अधिक के बकायेदारों से वसूली के निर्देश दिए हैैं।
प्रत्येक खंड में कम से कम 250 बकायेदारों से वसूली का लक्ष्य दिया गया है। विच्छेदन गैैंग को बड़े बकायेदारों की सूची उपलब्ध कराई गई है। रविवार को वृहद अभियान में संविदाकर्मी और मीटर रीडर भी शामिल रहेंगे। बिजली टीमों के सहयोग के लिए पुलिस प्रवर्तन दल भी उपलब्ध रहेंगे। अभियान के दौरान स्मार्ट मीटर वाले बकायेदार उपभोक्ताओं के भी कनेक्शन काटे जाएंगे। काटे गए सभी कनेक्शनों की ऑनलाइन फीडिंग करने के भी निर्देश दिए गए हैैं। कटे कनेक्शनों की निगरानी का जिम्मा भी कर्मचारियों को सौंपा जाएगा और कनेक्शन चलता मिलने पर कार्रवाई की जाएगी। कनेक्शन कटने के बाद भी बिल जमा न करने वाले बड़े बकायेदारों के नाम प्रकाशित कराने के भी निर्देश दिए गए हैैं।
बकाया मिलने पर ही बेहतर व्यवस्था संभव
प्रमुख सचिव ऊर्जा व पावर कारपोरेशन अध्यक्ष आलोक कुमार का स्पष्ट कहना है कि बिजली के बिल का बकाया मिलने पर ही विद्युत व्यवस्था में सुधार संभव है। उन्होंने बताया कि प्रदेशवासियों को पर्याप्त बिजली आपूर्ति के लिए प्रति माह लगभग पांच हजार करोड़ रुपये बिजली खरीदने के लिए चाहिए। वेतन व कर्ज के ब्याज आदि के लिए भी पांच सौ करोड़ चाहिए, जबकि बिजली के बिल की वसूली से 3600-3700 करोड़ रुपये ही आ रहे हैैं। लगभग 700 करोड़ रुपये राज्य सरकार से मिलते हैैं। ऐसे में प्रतिमाह एक हजार से 1100 करोड़ रुपये का राजस्व गैप बना हुआ है। चूंकि अब बिजली के लिए नकद भुगतान करना पड़ता है इसलिए विद्युत राजस्व बढ़ाए बिना प्रदेशवासियों को बेहतर बिजली आपूर्ति संभव ही नहीं है।