गुप्त की रचनाओं में दिखती है संस्कृति की झलक

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फर्रुखाबाद: मैथिली शरण गुप्त भारत के ऐसे अकेले कवि थे जिन्होंने संपूर्ण भारतवर्ष की सांस्कृतिक और भौगोलिक एकता की बात की। ¨हदी की व्यापकता के लिए उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की पूरे भारत वर्ष में हिंदी की गूंज हो| राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त की जयंती पर काव्य गोष्ठी में कही गयी|
अभिव्यंजना संस्था की प्रमुख डॉ० रजनी सरीन के आवास पर मैथिली शरण गुप्त की जयंती का शुभारम्भ दीप प्रज्वलन व सरस्वती वन्दना के साथ हुआ| गोष्ठी  में कहा गया कि साकेत, उर्मिला आदि महाकाव्यों के महान रचियता तथा स्वतंत्रता आंदोलन के प्रखर सेनानी राष्ट्र कवि मैथिली शरण गुप्त मातृभूमि भारत और राष्ट्र भाषा भारती के अनन्य सेवक और उन्नायक थे। काव्य में ब्रज भाषा के प्रबल-प्रभाव से निकल कर एक नवीन स्वरूप वाली भाषा में काव्य की रोमांचकारी कल्पनाएं भरने का स्तुत्य कार्य कर गुप्त ने आगे आने वाले कवियों का मार्ग सदा के लिए प्रशस्त कर दिया। उनकी रचनाओं में राष्ट्र-भाव, नैतिकता का उच्च आदर्श और भारत की सांस्कृतिक विशेषता अपने संपूर्ण विकास के साथ प्रकट होती है।
‘भारत भारती’ के प्रकाशन से लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचे मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रीय कवि की उपाधि से सम्मानित किया गया था| मुख्य अतिथि शशि किरण सिंह राही, अध्यक्षता “आचार्य ओम प्रकाश मिश्रा कंचन नें की| कार्यक्रम का संचालन प्रीति पवन तिवारी  व उपकार मणि ने संयुक्त रूप से किया| महेश चन्द्र उपकारी, कृष्णकान्त अक्षर, अनिल मिश्रा, दिलीप कश्यप, निमिष टंडन आदि ने काव्य पाठ किया|