हाथ में पान थमाते हुए पानवाले ने जुमला छोड़ ही दिया- चाचा डीएम को वेतन की क्या जरुरत है, जब घर में नोट गिनने के लिए सीबीआई को मशीन मंगानी पड़ी मैं थोडा सा चौका था| ये पानवाला सुबह 7 बजे से पान की दुकान पर बैठा है और इसे भी पता है कि आज बुलंदशहर के डीएम के यहाँ सीबीआई का छापा पड़ा है और उसके यहाँ से 48 लाख रुपये नगद मिले है| फिर समझ में आया कि आज दौर इन्टरनेट मीडिया का है| सुबह ही जेएनआई पर डीएम बुलंदशहर के यहाँ सीबीआई के छापे के पड़ते ही खबर प्रकाशित हो गयी थी|और ये अपने मोबाइल पर लगातार ऐसी खबरों पर नजर बनाये हुए है| सोच रहा था 30 साल में क्या इज्जत रह गयी इन अफसरों की?
फ्लैशबैक-
सत्तर साल की आज़ादी के बाद ऐसा विकास हुआ कि देखते देखते बहुत सी तस्वीर बदल गयी| 30 साल पहले जब मैं छात्र था तब कम्पटीशन की तैयारी के लिए कम्पटीशन मास्टर और कम्पटीशन सक्सेस जैसी पत्रिकाए खरीद कर पढ़ा करता था| घर पर अंग्रेजी का एक अख़बार अपनी गुल्लक के पैसे से मंगाता था| और याद है मुझे जब आई ए एस का परिणाम निकालता तब आई ए एस टोपर के इंटरव्यू वाला अंक महगा मिलता था| मगर फिर भी खरीदता और पढ़ता था| हालात कुछ ऐसे थे कि पढ़ने लिखने का शौक रखने के बाबजूद आईएएस बन नहीं पाया और बाबू बनना नहीं चाहता था लिहाजा अपना स्वतंत्रता के साथ खोमचा (खुद का कारोबार करना उचित लगा) कर बैठा| मगर आज तीस साल बाद जब आईएएस की इज्जत उतरते देखता हूँ तो सोचता हूँ कि ऊपर वाला जो करता है ठीक ही करता है|
जब आईएएस टोपर भ्रष्टाचार में जेल गया-
कभी 80 के दशक में आईएएस टोपर रहे प्रदीप शुक्ल को मायावती सरकार में सीबीआई ने NRHM घोटाले में जेल की सलाखों के पीछे भेज दिया और उनके बच्चो को दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर मुह छिपाकर अमेरिका जाना पड़ा तब आईएएस न बन पाने का मलाल बिलकुल दिमाग से निकल गया| उनके आईएएस टोपर होने पर जो इंटरव्यू प्रकाशित हुआ था वो कम्पटीशन मास्टर की पत्रिका आज भी हमारे पास बक्से में सुरक्षित है| बड़ा प्रभावित होते थे तब| मगर आज एक छोटी सी दुकान वाले ने हकीकत बयान करके मुझे लिखने पर मजबूर कर दिया|
डीएम के पद पर रहे बुलंदशहर के डीएम पहले आईएएस अफसर नहीं है जिनके यहाँ से नगदी और अवैध कमाई बरामद हुई है, सैकड़ो नाम है ऐसे| के धनलक्ष्मी, सतेन्द्र सिंह ये फर्रुखाबाद की जनता के जाने पहचाने नाम है| सोशल मीडिया पर सुबह शाम नयी नयी डीपी शेयर करने वाली बी चंद्रकला भी उसी खनन सीरीज की आईएएस है जिसमे बुलंदशहर के वर्तमान डीएम अभय सिंह सहित विवेक सिंह के यहाँ भी नगदी बरामद हुई है| 6 महीने पहले एक एसडीएम् के यहाँ भी उसके ड्राईवर ने 32 लाख नगद चुरा लिए थे| बकाया याद आ रहा होगा| वे पुलिस ने बरामद कर इनकम टैक्स के हवाले कर दिए अब उन्हें साबित ये करना कि वो नगदी उनकी है| बड़ा मुश्किल है| मामले की जाँच उस जनपद का इनकम टैक्स विभाग कर रहा है जहाँ से उनका पैन कार्ड है| खैर पिछले 20 सालो से ऐसे मामले खूब सुर्खियों में आये है| मंत्रीजी तो ट्रांसफर पोस्टिंग की मलाई मार के चले गए और सब हजम कर गए| उनके यहाँ तो डेरी है और उसमे जो गाय भैंस है वो अकूत दूध देती है वे तो रईसी दिखा देंगे आप कहाँ से दिखाओगे, आप का तो वेतनमान है जो फिक्स है|
एक पान वाले का यह कह देना कि डीएम को वेतन की क्या जरुरत है काफी नहीं है इस बात के लिए कि सभी बेईमान है| मगर समाज में आईएएस के लिए घटती इज्जत चिंता का विषय जरुर है| एक समय था जब जनपद में कोई सामाजिक गतिविधि होती थी लोग डीएम, एस पी और जिला जज को मुख्य अतिथि बनाने के लिए आतुर रहते थे| आज जनता द्वारा आयोजित कितने कार्यक्रमों में ये मुख्य अतिथि होते है| 10-15 साल पहले दुकान का उद्घाटन हो या मेधावी बच्चो को वजीफा बाटने जैसे सामाजिक कार्यक्रम लोग आईएएस और आईपीएस को बुलाना पहली वरीयता देते थे| डॉग शो, महिलाओ से जुड़े बेस्ट रसोई कार्यक्रम, बेस्ट किचेन गार्डन अवार्ड प्रोग्राम| ये सब जनता के बीच होते थे| अफसर जनता के बीच होते उनसे चर्चा करते| अफसर और जनता के बीच की दूरी वैसे ही बढ़ रही है जैसे अफसर के कमरे में पड़ी मेज की चौडाई| 5 फुट दूर से खड़े होकर फरियादी स्टाइल में रहो…..
आज कितने ऐसे कार्यक्रम सुर्खियों में आते है|अब जनता से जुड़ने के लिए सरकारी आदेश आते है आज| रात्री प्रवास| कितना रात्रि प्रवास होता है इन अफसरों का| फोटो खिचा कर वापस बंगले पर लौट जाना| और उस दौरान भी इतने भारी भरकम सरकारी कर्मचारियों की फ़ौज से घिरे रहते है कि कोई नयी बात न कह दे| पहले से तय स्क्रिप्ट के अलावा जनता से कोई मेल मिलाप नहीं| क्या ये अपना चेहरा खुद छिपा रहे है? सरकारी अफसरों की बैठक सिर्फ उन्ही सरकारी अफसरों के बीच होती है जो एक दूसरे की सारी पोल पट्टी जानते है| जनता के बीच आयेंगे भी तो आगे पीछे फ्लाइंग स्कॉट गाडी लगाकर| किसके लिए भेजे गए हो जिले में?
दिसम्बर की सर्द आधी रात में चौराहे पर चाय पीने क्यों निकलते थे अफसर-
मुझे कई आईपीएस और आईएएस इस जिले के याद है जो किसी न किसी रात नगर में किसी न किसी के खुद गाडी चलाकर चाय पर चले जाते थे| तब उनके साथ कोई अमला न होता| एक रात लालगेट बस अड्डे पर मुझे जिले के कप्तान एक छोटी सी दुकान पर चाय पीते मिल गए| वे सादा कपड़ो में थे| उनके साथ अर्दली भी सादा कपड़ो में था| रात के 12 बज चुके थे और मैंने उन्हें पहचान लिया| फोटो लेने के लिए कैमरा निकाला तो हाथ पकड़ कर बैठा लिया बोले खीचोगे तो मानोगे नहीं छाप दोगे| पब्लिसिटी नहीं| मैं मान गया| उन्होंने बताया कि वे अक्सर रात में किसी न किसी जगह चौराहे तिराहे पर चाय पीने निकल लेते है| दिसम्बर 2004 का बाकया है ये| लोग खुल कर अपनी बात कहते है| लोग हमारे बारे में क्या सोचते है यहाँ असल तस्वीर निकलती है| अब तो वो बाते नहीं है| अब तो छापे की बाते है|
मन में डर है क्या?
अब अफसर इतने मिलनसार क्यों नहीं है| दिन भर की थकान मिटाने को शराब पीकर जब मजदूर खरी खरी बोलने लगता है तो उसे सुनने की क्षमता नहीं होती शायद? या फिर खुद को सर्वश्रेष्ठ मान भ्रम से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं होती| क्या नेता और क्या ये अफसर दोनों में कोई अंतर नजर नहीं आता| महसूस करो स्व ब्रह्मदत्त द्विवेदी और मेजर सुनील द्विवेदी में| वातानुकूलित बंद गाड़ी के आगे पीछे दो चार स्कोर्ट गाड़ी में चलने से सच नहीं छुपता| पद जाने के बाद नेताजी को और रिटायर होने के बाद अफसर को इसी समाज में वापस आना है| आंख बंद करने से न अँधेरा होगा और कान बंद करने से न लोगो की आवाज बंद हो जाएगी| जनता जानती सब है कि जो छापो में नगदी मिलती है वो कैसे बटोरी जाती है|
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