फर्रुखाबाद: चार साल में एक ही बैठक हुई| क्षेत्र पंचायत सदस्यों को कौन पूछता? प्रशिक्षण का 4 साल बाद होने का फायदा क्या? नवाबगंज में क्षेत्र पंचायत सदस्यों का प्रशिक्षण या प्रशिक्षण में 80 प्रतिशत सदस्य नहीं आये| ये कुछ खबर की हैडलाइन हो सकती थी| मगर इन सबसे ज्यादा मुफीद हैडलाइन लगी ” 1 पारले बिस्कुट और आधार नंबर का माँगना”| मामला त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था के तहत क्षेत्र के विकास के लिए चुने गए क्षेत्र पंचायत सदस्यों के प्रशिक्षण का है जो उनके चुने जाने के चार साल बाद हो रहा है| अब कार्यकाल 1 साल ही बचा है| वैसे भी ये प्रशिक्षण केवल सरकारी धन की बर्बादी और उससे होने वाली कमीशन की कमाई भर के लिए है जिसमे शायद प्रमुख को कोई मतलब नहीं| राजे रजवाड़े के जामने से परंपरा चली आ रही है प्रमुख लोग छोटे शिकार नहीं करते वे कारिंदों के लिए छोड़ दिए जाते है|
अब आते है खबर की बात पर| जनपद फर्रुखाबाद में इन दिनों खंड विकास कार्यालयों पर क्षेत्र पंचायत सदस्यों का प्रशिक्षण चल रहा है| वैसे देश में लोकतंत्र के हर पायदान पर चुने गए सदस्यों को प्रशिक्षण दिए जाने की नियमावली है| नए पुराने सभी संसद सदस्यों को भी हर संसदीय कार्यकाल में चुने जाने के बाद प्रशिक्षण लेना होता है| विधानसभाओ में भी यही नियम है और त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था में भी| इस प्रशिक्षण का मकसद होता है कि जो सदस्य जिस सदन के लिए चुने कर आये है उन्हें अपने काम और अपने अधिकार उस सदन के प्रति क्या है इसकी जानकारी हो जाए| प्रशिक्षण में सदन चलाने के तरीके और सभी नियमो के बारे में बताया जाता है| बैठक हर माह कौन सी आवश्यक है और तीन माह पर कौन सी बगैरह बगैरह…| मगर अफ़सोस उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत सदनों में अधिकांश सदस्य 50 हजार से 2 लाख में ये अधिकार उसी दिन अधिकांश सदस्य बेच देते है जिस दिन वे ब्लाक प्रमुखों को चुने जाने के लिए वोट करते है|नोट के बदले वोट| फिर काहे का प्रशिक्षण और काहे का सदस्य?
सोमवार 17 जून को अन्य ब्लाक की तरह नवाबगंज ब्लाक में प्रशिक्षण शुरू हुआ तो इस सदन के 81 सदस्यों में से मात्र 20 सदस्य ही उपस्थित हुए| प्रशिक्षण के लिए चयनित संस्था के ट्रेनर्स निशांत शुक्ला, मोहित गुप्ता के मुताबिक उन्होंने सभी को काल कराया था| सचिवो के माध्यम से सन्देश भी भेजे गए थे जो सभी को प्राप्त भी हुए मगर फिर भी नहीं आये| इन सभी को आने जाने का मानदेय भी मिलेगा जो शायद 1000 प्रति दिन होता है| फिर भी नहीं आये|
आखिर आधार नंबर और 5 रुपये के पारले बिस्कुट के बीच का सम्बन्ध क्या है?
कुछ सदस्यों ने बताया कि उनका आधार नंबर लिया गया है और इसे आवश्यक बताया गया| अब आधार नंबर जब मोदी सरकार ने अनिवार्य नहीं रखा है तो फिर आधार नंबर क्यों माँगा गया? ये सवाल खड़ा हुआ| मगर जब पूरा नियम पढ़ा तब समझ में आया कि चूँकि सदस्यों को दोपहर के लंच में 1 गिलास पेप्सी और 1 पारले बिस्कुट का पैकेट दिया गया जो सरकारी कोष/सहायता राशि है इसलिए आधार नंबर लिया गया होगा| क्योंकि सरकारी सहायता जैसे राशन में, पेंशन मे या वजीफा लेने के लिए आधार अनिवार्यता को सुप्रीम कोर्ट ने भी मान्यता दी है वैसे ही सरकारी पैसे से प्रशिक्षण के लिए आये लोंतान्त्रिक सदस्यों को लंच में 1 पैकेट बिस्कुट दिया गया है लिहाजा आधार लिया गया होगा| देर रात तक अफसरों के नम्बरों पर घंटी के करने के बाबजूद कोई जबाब देने को तैयार नहीं हुआ| वैसे अभी भी कोई जबाब हो तो कमेंट में नीचे लिख दे प्रकाशित कर देंगे| ये न कह पाए हमारा पक्ष नहीं लिया|
बात आगे बढ़ाते है| कुल 81 सदस्यों में से 20 ही क्यों आये जबकि सूचना सबके पास थी| सदन के एक सदस्य ने नाम न छपने की शर्त पर बताया कि क्या करते आकर| चार साल में 1 बैठक की ब्लाक प्रमुख ने| वो भी स्वागत समारोह की| बाकी घर पर रजिस्टर जाता है और ब्लाक प्रमुखी चलती रहती है| क्या करे आकर| विरोध या प्रस्ताव का कोई मतलब नहीं होता| समर्थक सदस्यों को ठेकेदारी मिलती है वे रजिस्टर पर दस्खत कर देते है| काहे का प्रशिक्षण? अब देखना ये होगा कि लंच के रूप में बाते गए 20 पैकेट पारले बिस्कुट, 20 समोसे और 2 लीटर पेप्सी का भुगतान कितना निकाला जायेगा| कोई रखेगा नजर तो भविष्य में JNI NEWS को जरुर बता दे….. हाँ जानकारी के लिए बता दे यहाँ डॉ जितेन्द्र यादव की पत्नी अनीता यादव ब्लाक प्रमुख है|