फर्रुखाबाद: अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर चारों और उन महिलाओं की ही चर्चा हो रही है जिन्होंने अपनी जिन्दगी में कोई मुकाम हासिल कर लिया है| परन्तु उन महिलाओं के वारे में कोई बात नहीं कर रहा है जो जिन्दगी में दो जून की रोटी जुटाने की जंग अभी तक लड़ रही है|
उनके पास भी वह काविलियत है लेकिन हालातों से मजवूर होकर वे कुछ कर नहीं सकती सिवाय मन मसोस कर रह जाने के| ऐसी ही एक महिला है विमला, विमला तुलसी की माँ है जो बजरिया सब्जी मंडी में सब्जी की दुकान लगाकर अपने परिवार का पेट पाल रही है| भगवान् की कृपा से विमला को भरा पूरा परिवार मिला परिवार में पति के अलावा ४ बेटे और २ बेटियां थी| परन्तु एक बेटी शादी के कुछ समय बाद चल बसी और बड़े २ बेटों ने शादी के वाद अपनी अलग गृहस्थी वसा ली|
विमला के पति लालाराम दमे की वीमारी के मरीज हो गए ऐसे में पूरे परिवार की जिम्मेदारी विमला के कन्धों के ऊपर आ गई| विमला ने अपने परिवार के भरण पोषण के लिए सब्जी वेंचाने का रास्ता निकाला और तब से बजरिया मंडी में सब्जी वेंचने लगी| विमला के इस काम में उसकी 13 वर्षीय वेटी तुलसी भी सहायता करती है|
विमला ने वताया कि सब्जी मंडी बजरिया से हट जाने के कारण उसे वाहर से सब्जी लानी पड़ती है जिसमे अधिक भाडा देना पड़ता है| इस लिए वचत बहुत कम हो पाती है जिससे परिवार को चलाना वहुत कठिन हो गया है विमला चाहती है कि कही से दो पैसों का इंतजाम हो जाये तो वह अपनी बेटी के हाँथ पीले कर दे|
विमला की वेटी तुलसी कनोडिया बालिका विद्यालय की 7वीं कक्षा की छात्रा है और वह अभी आगे पढ़ना चाहती है परन्तु आर्थिक तंगी के कारण मजवूर है| तुलसी कहती है कि उसे आगे बहुत पढने का मन है लेकिन स्कूल से फ़ार्म भरने के बावजूद भी 2 सालों से वजीफा नहीं मिला है| और माँ कापी कितावों का खर्चा भी नहीं उठा सकती|
शादी के सवाल पर तुलसी ने वताया कि अभी उसे शादी करने की कोई इच्छा नहीं है परन्तु पिता जी की वीमारी और माँ की मजवूरी के आगे हम मजवूर है| ये कहानी अकेली विमला और तुलसी की नहीं है बल्कि शहर में ऐसी अनेकों तुलसियन और विमला है जो इनसे भी अधिक दयनीय स्थिति में जीवन यापन कर रही है परन्तु उनके ऊपर किसी की भी नजरे नहीं जाती| ये तो ये भी नहीं जानती की आज महिला दिवस है और ये महिला दिवस क्यूँ मनाया जाता है|