फर्रुखाबाद:(दीपक-शुक्ला) अत्याधुनिक युग में परंपराओं को ग्रहण लगा है। धीरे-धीरे शादी समारोहों से बाबुल की दुआओं भरे गीतों के बोल और शहनाई की गूंज डीजे और बैण्डबाजों की धुनों में गुम हो गई है। अब हॉट सॉग्स की चहुंओर धूम मची है। महिला संगीत का क्रेज भी धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है। एक जमाना था जब शहनाई को परम्परा का हिस्सा मानते थे| लेकिन आधुनिकता के आगे शाहनाई की सुरीली आवाज धीमी होती जा रही है| जनपद में महज दो शहनाई बजाने वाले उस्ताद है| लेकिन बढती उम्र व महगाई ने उनकी कमर तोड़ दी| हालत यह है की दूसरों के घर खुशी का माहौल बनाने वाले उनके परिवार गरीबी और समाज व सरकार की अनदेखी के शिकार है|
गुजरे जमाने की बात हुई जब शादी विवाह एवं अन्य समारोहों में शहनाई सुनाई पड़ती थी और शुभ घड़ी में इसे शुभ भी माना जाता था। ऐसा नहीं कि शहनाई शुभ अवसरों पर ही अनूठा वातावरण उत्पन्न करती थी, बल्कि मातम में भी शहनाई की धुन माहौल को गमगीन बना देती थी। शुभ अवसरों पर बजने वाली शहनाई की धुन को डीजे की तेज ध्वनि ने दबा दिया है। यदाकदा ही कहीं शहनाई के स्वर सुनने को मिलते हैं। राग-रागिनी के स्वरों को तालबद्ध करके शहनाईवादक कहीं भी किसी भी उत्सव व समारोह में संगीत का एक अनूठा वातावरण उत्पन्न कर देते थे, लेकिन बदलते परिवेश में सात सुरों के साथ अनोखा तारतम्य बिठाने वाली शहनाई आज तेज संगीत के प्रवाह में लुप्त प्राय: हो चुकी है। यदा-कदा ही कहीं शहनाई की धुन सुनने को मिल जाती है। वर्तमान समय में शहनाई महज रसूख वालों के समारोहों की शोभा बढ़ाने के लिए रह गई है।
शान होती थी शहनाई
पहले राजा-महाराजाओं के दरबार में शहनाई शान समझी जाती थी। प्राय: लुप्त होती जा रही शहनाई की धुन के पीछे पश्चिमी संगीत के प्रति लोगों का बढ़ता रुझान और तेजी से होता इसका प्रचार-प्रसार है। शास्त्रीय संगीत से ताल्लुक रखने वाली शहनाई युवा पीढ़ी के लिए रास नहीं आ रही है। तेज स्वरों से बजता डीजे ही युवाओं को रास आ रहा है। आर्केस्ट्रा की धुन पर थिरकने वाले युवाओं के लिए शहनाई का कोई महत्व नहीं है।
बुजुर्ग भी नहीं समझाते महत्व
बुजुर्ग भी युवा पीढ़ी को शास्त्रीय संगीत से जुड़ी शहनाई की किदवंतियां नहीं सुनाते और न ही उन्हें शहनाई के महत्व को समझाते हैं। आधुनिकता की चकाचौंध और पश्चिमी संगीत का बढ़ता प्रचलन शहनाई के स्वरों का अस्तित्व खत्म करता रहा है। 82 वर्षीय बुजुर्ग धर्म सिंह का कहना है कि दरवाजों पर शादी-समारोह के दौरान शहनाई की धुन लोगों के हृदय को छूती थी। विदाई समारोह के दौरान शहनाई की धुन सुनते ही लड़की पक्ष के लोगों की आंखें स्वत:ही नम हो जाती थीं।
शहनाई बजाने वाले दो उस्ताद आज खस्ताहाल
मऊदरवाजा क्षेत्र के मोहल्ला भीकमपुरा निवासी पुत्तु मास्टर का शहनाई बजाने वालो में नाम था| जब जेएनआई टीम ने उनके घर पंहुचकर उनका दर्द सुना| वह घर पर नही मिले| उनकी पत्नी रुकसाना ने बताया कि विवाह से पूर्व ही उनके पति शहनाई बजाते थे लेकिन आज के दौर में उनका यह हुनर समाज के किसी काम का नही है| सरकार भी इसके लिये कोई लाभ नही दे रही| इस लिये बेटों को इससे दूर रखा| बेटे चाँद भांगड़ा बजाते है| वही 60 वर्षीय भोलू मास्टर वह भी इसी मोहल्ले में रहते है| लेकिन उम्र अधिक होने से अब आँखों से दिखाई नही देता| उन्होंने बताया कि उन्हें शहनाई के हुनर से कई पुरुस्कार भी मिले| लेकिन उनसे पेट नही भरता| पूर्व मंत्री नरेन्द्र सिंह यादव की पुत्री मोना यादव के विवाह में शहनाई बजायी थी| तो नरेन्द्र सिंह ने सहयोग करके साँस्कृतिक विभाग लखनऊ से 2000 हजार रूपये पेंशन मंजूर करा दी थी| लेकिन आज तो वह पेंशन भी साल- भर से पहले नही मिलती| भोलू के चार बेटी है| उनका कहना है कि जिस शहनाई से ना जाने कितनो की बेटियों को चार चांद लगाया| आज जब खुद की चार बेटीयाँ विवाह योग्य हुई तो आर्थिक टंगी पीछे पड़ी है|
देखने वाली बात यह है कि आज जनपद में एक दो लोग ही शहनाई को बजाने वाले बचे है| युवा पीढ़ी उसे बजाना नही चाहती| यही चला तो जनपद में शाहनाई केबल किताबों में ही देखेंगे| (सहयोगी प्रमोद द्विवेदी)
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