जागरण छोड़ तफहीम खान जेएनआई के ग्रुप एडिटर बने

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प्रिय पाठको,

दो साल पहले हमने कई सपने देखे थे| मैं हैदराबाद और दिल्ली एनसीआर छोड़ कर भारत के एक छोटे शहर उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद में आकर बस गया| एक नयी मीडिया को जन्म देकर उसे चोटियो तक पहुचाने के लिए प्रयास शुरू हुए थे| राहे सघर्षमय थी मगर रास्ते उदीयमान थे| मैंने जेएनआई का गठन ग्रामीण भारत तक परम्परागत मीडिया की आम जनता तक पहुच को बढ़ाने का काम किया| ग्रामीण भारत तक मैं अकेले फर्रुखाबाद जनपद में 72 हजार मोबाइल धारको तक एसएमएस से पंहुचा वहीँ वेबसाइट http://jnilive.com को बनाकर ग्रामीण भारत की आवाज को दुनिया और सांसद तक पहुचाने का लक्ष्य रखा| दो साल के संघर्ष के बाद अब लगता है कि हम नयी दुनिया बसाने में कामयाब हो गए है| जिस वेबसाइट पर सिर्फ एक जिले से सम्बन्धित खबरे हो उसका पाठक 10000 की संख्या को पार कर 30000 से ज्यादा की प्रतिदिन की हिटिंग देता हो तो ऐसे में आप उसे क्या कहेंगे| चंद जिलों की ही खबर वाली वेबसाइट पर हिटिंग प्रतिदिन तीस हजार पार आकर जाए तो इसे उत्तर प्रदेश जैसे पिछड़े प्रदेश के छोटे जनपद से संचालन के रूप में कमतर नहीं आँका जा सकता| ये सब प्रयोग इस बात का संकेत देता है आने वाला वक़्त वेबमेडिया का ही है| आज मेरे वेबसाइट के कुल पाठको में से 22 प्रतिशत लोग अपने मोबाइल पर मेरा वेबसाइट खोल कर समाचार पढ़ते है| और चौकाने वाली बात ये है इनकी लोकेशन ग्रामीण इलाके से आती है जहाँ अख़बार नहीं पहुचता है| वर्ष २०११ में जे एन आई उत्तर प्रदेश के अधिकांश जिलों में शुरू करने का लक्ष्य रखा गया जिसे हमारी नयी टीम बुलंदियों तक पहुचायेगी|

आज १ फरबरी २०१० से हमारी टीम में नए सदस्य जुड़ रहे है| मीडिया जगत और फर्रुखाबाद में उनकी पहचान बताने की जरुरत नहीं है| तफहीम खान हमारे नए सदस्य के रूप में ग्रुप एडिटर की जिम्मेदारी सम्भालेंगे| आशा है आपको जेएनआई की खबरों में नयापन और अपनापन भी महसूस होगा|

शुभकामनाओं सहित
पंकज दीक्षित
सी-इ-ओ
जोइंट न्यूज़ ऑफ़ इंडिया

श्री तफहीम का पत्र

साथियो

विगत लगभग दो वर्षों से मैं दैनिक जागरण में काफी घुटन महसूस कर रहा था। धार और तेवर कुंद पड़ने लगे थे। व्यवस्था के विरुद्ध लिख पाने की स्तंत्रता कहीं दम तोड़ रही थी। अपने साथियों को अपनी विवशता बता पाने में भी शर्म आती थी। परंतु 16 वर्षों का साथ था सो छोड़ने में तनिक झिझक भी हो रही थी। इसी उधेड़बुन में लगभग एक वर्ष का समय लग गया। आखिर निर्णय मैंने ले ही लिय। मुझे आज लगता है कि शायद यह फैसला मुझे कुछ और पहले कर लेना चाहिये था। मेरे कुछ साथियों को मेरे इस निर्णय से तकलीफ भी हुई है, मैं उन सब की भावनाओं का सम्मान करता हूं।

निर्णय से पूर्व इस विषय पर मैंने कई बार अपनी पीड़ा अपने दोस्त पंकज दीक्षित से बांटी। दैनिक जागरण छोड़ने के बाद आगे के सफर के विषय में भी चर्चा हुई। उन्होंने मुझे अपने न्यूज पोर्टल जेएनआई से जुड़ने का आफर दिया। शायद इस तरह मुझे इस निर्णय पर पहुंचने में उन्होंने ने मेरी मदद की।

दोस्तो हम लोग जेएनआई के माध्यम से मिलते रहेंगे। पत्रकारिता के इस सफर में हम आपके साथ थे और आगे भी साथ रहेंगे।

तफहीम खान

तफहीम ने एक पत्र सार्वजनिक भेजा है जो उनकी  भासा में प्रकाशित किया जा रहा-