बकरीद के दिन क्यों दी जाती है बकरे की कुर्बानी?

FARRUKHABAD NEWS FEATURED धार्मिक सामाजिक

फर्रुखाबाद: इस्लाम धर्म में हर साल दो ईद मनाई जाती है। एक ‘ईद-उल-फितर’ और दसूरी ‘ईद-उल-जुहा’ यानी ‘बकरीद’। ईद-उल-फितर में लोग अपने घर में सिवाईयां बनाते हैं वहीं बकरीद पर मुस्लिम लोग बकरे की कुर्बानी देते हैं। बकरीद, ईद-उल-फितर के 70 दिन बाद आती है। बकरीद के दिन मुसलमान बकरे, भैंस या कहीं कहीं ऊट की भी कुर्बानी देते हैं। ज्यादातर लोग बकरीद पर बकरे की कुर्बानी ही देते हैं।

बकरीद से कुछ दिन पहले ही लोग बकरे को खरीदकर अपने घर ले आते हैं उसे पालते पोस्ते हैं और फिर बकरीद वाले दिन उसे जिबे यानी कुर्बान करते हैं। इस दिन लोग अपनी आय के मुताबिक जकात और फितरा भी करते हैं। इस्लाम में कहा गया है कि कोई भी त्योहार मनाते हुए यह ध्यान रखा जाना जरूरी है कि उनके पड़ोसी घर में भी उतनी ही खुशी के साथ त्योहार मन रहा हो।

इस्लाम के मुताबिक, अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेने के लिए उन्हें अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देने का हुक्म दिया था. हजरत इब्राहिम को लगा कि उन्हें सबसे प्यारा तो उनका बेटा है इसलिए उन्होंने अपने बेटे की ही बलि देने का फैसला किया। हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी। लेकिन जब कुर्बानी देने के बाद उन्होंने अपनी आंखों पर से पट्टी हटाई तो देखा कि उनका बेटा जिंदा है और उनके सामने जिंदा खड़ा है। उन्होंने देखा कि बेटे की जगह दुम्बा (साउदी में पाया जाने वाला भेंड़ जैसा जानवर) पड़ा हुआ था, तभी से इस मौके पर कुर्बानी देने की प्रथा है।