फर्रुखाबाद : चिकचिक तो अब भी है लेकिन मुद्दा बदल गया है। चाय की चुस्कियां लेते हुए अब मैडम पतिदेव के साथ अखबार की सुर्खियां शेयर करने लगी है। दाल-सब्जी और महंगाई तो साल भर चलने वाला इश्यू है, अब जिरह इस बात पर है कि आपकी पार्टी मेरी पार्टी से खास कैसे? मै किसे वोट दूंगी, किसे नही.. मेरी मर्जी। पतिदेव अपनी मर्जी नही थोप सकते।
यही है आधी आबादी का चुनावी रुख। सामाजिक दायरा बढ़ाने के साथ महिलाओ ने राजनीति मे भी रुचि लेनी शुरू कर दी है। महिलाएं किटी के दौरान हर पार्टी का आकलन अपने स्तर से कर रही है। कौन कितने पानी मे है, किसने प्रदेश के लिए कितना काम किया, इसका गणित लगाया जा रहा है। उन्हे इस बात से कोई सरोकार नही कि उनके परिजन किसे वोट देगे। आवास विकास निवासी भावना शर्मा का कहना है कि सालो से उनके श्वसुर एक ही पार्टी को वोट देते आ रहे है जबकि पति दूसरी पार्टी को। इस बात पर दोनो मे आए दिन जिरह होती है। भावना कहती है कि मैने भी पतिदेव से कह दिया कि आपको जिसे वोट देना है दीजिए, इस मामले मे हम आपके साथ नही है। भावना के घर मे वोट देने वाले तीन सदस्य है और तीनो ही अलग पार्टी को वोट देते है। वही स्वेता कहती है कि उनका वोट भी उनका अपना है। वह अपने पति को भी इस बारे मे नही बताती। वह कहती है कि सुबह साढ़े छह बजे पोलिंग बूथ पहुंच जाती है और पिछले कई बार से वह अपने बूथ की पहली वोटर बनी है। इन्ही विचारो से इतफाक रखती है दीपिका बताती है कि विस चुनावो मे पिछली बार पति और उन्होने अलग-अलग प्रत्याशी को वोट दिया था। दीपिका का महिलाओ से कहना है कि वे पति की जिंदगी भर सुनती है लेकिन चुनाव के दौरान सिर्फ अपने मन की सुने और उसी प्रत्याशी को वोट दे जिसके लिए उनका मन गवाही दे।
सीमा गोयल कहती है कि शादी के बाद जब वे पहली बार मतदान करने गईं थी तो पति ने बताया था कि किस प्रत्याशी को वोट देना है। घर आकर सीमा को इस बात का अहसास हुआ कि उन्हे पति की बातो मे आने के बजाय अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए था। तब से वह अपने मन से वोट देकर आ रही है। इस बार भी उनमे और उनके व्यापारी पति के बीच दो पार्टियो को लेकर तर्को के तीर चल रहे है। सीमा अपनी पसंदीदा पार्टी को वोट देना चाहती है जबकि उनके पति नोटबंदी की चोट से अब तक नही उबरे है।