फर्रुखाबाद: गंगा की रेती पर त्याग, तपस्या और वैराग्य के प्रतीक माघ मेला रामनगरिया में मोक्ष की प्राप्ति को कई जिलो के हजारों श्रद्धालु यहां जप-तप करने आते हैं। तम्बू में रहकर एक माह तक रेती पर धूनी रमाकर ‘कल्पवास’ करते हैं। इनमे से ही एक है चिलम वाले साधू जिसकी साधना ही चिलम के नशे पर होती है|
मेला रामनगरिया में वृंदावन से आये साधू लोहा-लंगड़ी इन दिनों चर्चा के केंद्र है| सुबह से ही भगवान भोलेनाथ की साधन और ऊपर से चिलम का नशीला प्रसाद पाकर पूरा दिन गुजार रहे है| उनके साथ ही साथ उनके अनुआई भी चिलम को प्रसाद का प्रतीक मानकर बम-बम भोले कर रहे है| इस तरह से कई साधू कल्पवास के दौरान सुख-सुविधाओं का त्यागकर घास-फूस में लेटना, एक समय भोजन, दिन में तीन बार गंगा स्नान, प्रभु नाम का जप व संतों की सेवा एवं उनके सानिध्य में भजन-पूजन करना कल्पवासी की दिनचर्या को निभा रहे है|
साधू ने बताया कि माघ मास में सच्चे हृदय से कल्पवास करने वाले साधक को जीते जी मोक्ष की प्राप्ति होती है। बशर्ते कल्पवास 12 वर्ष पूर्ण होना चाहिए। परिस्थिति कोई भी हो कल्पवासी इस बीच घर नहीं जाता। अगर जाता है तो उसकी तपस्या खंडित हो जाती है। माघ मास में मानव ही नहीं, बल्कि देवता भी तप करने प्रयाग की पावन धरा पर अवतरित होते हैं। वह सच्चे हृदय से कल्पवास करने वाले साधक को किसी न किसी रूप में दर्शन देते हैं।