देश का गौरव: लाल बहादुर शास्त्री की पुण्‍यतिथि आज

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नई दिल्‍ली|| सादा जीवन, उच्‍च विचार’ को अपने जीवन में आत्‍मसात करने वाले देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्‍त्री का रुख देश की सुरक्षा को लेकर काफी आक्रामक रहा। 1965 में भारत में परमाणु कार्यक्रम की नींव रखने वाले शास्‍त्री ने विपक्ष और सरकार के भीतर काफी विरोध के बावजूद भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग को परमाणु परीक्षण के लिए तैयार किया।

हालांकि बाद की कई घटनाओं के चलते उस कार्यक्रम पर ब्रेक लग गया। इन घटनाओं में शास्‍त्री जी का निधन, परमाणु बम कार्यक्रम के जनक होमी जहांगीर भाभा की यूरोप में विमान दुर्घटना में रहस्‍यमयी परिस्थितियों में मौत और इंदिरा गांधी के नेतृत्‍व में कमजोर सरकार का होना भी शामिल है।

वैसे पाकिस्तान ने 1965 में यह सोचकर भारत पर हमला किया कि 1962 में चीन से लड़ाई के बाद भारत की ताकत कमजोर हो गई होगी, लेकिन शास्त्री जी के कुशल नेतृत्व में भारत ने पाक के नापाक इरादों को नाकाम कर दिया और उसे करारी शिकस्त भी दी।भारतीय इतिहास के ब्यौरे पेश करने वाले कांग्रेस द्वारा हाल ही में प्रकाशित ‘कांग्रेस एंड द मेकिंग ऑफ द इंडियन नेशन’ में भी इसका जिक्र है कि 1965 में जब पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ जंग शुरू की थी, तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने दुनिया को दिखाया था कि भारत किस तरह कम से कम संसाधनों के साथ अपनी धरती की रक्षा कर सकता है। 1974 में भारत ने जब पहली बार परमाणु परीक्षण किया तो दुनिया हैरान रह गई।

लाल बहादुर शास्त्री एक ऐसी हस्ती थे जिन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में देश को न सिर्फ सैन्य गौरव का तोहफा दिया, बल्कि हरित क्रांति और औद्योगीकरण की राह भी दिखाई। ईमानदारी की मिसाल माने जाने वाले शास्त्री जी किसानों को जहाँ देश का अन्नदाता मानते थे, वहीं देश के सीमा प्रहरियों के प्रति भी उनके मन में अगाध प्रेम था जिसके चलते उन्होंने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया।

नौ जून 1964 को प्रधानमंत्री सहित विदेश मंत्री और परमाणु ऊर्जा मंत्री पद की जिम्‍मेदारी संभालने वाले शास्‍त्री का कार्यकाल हालांकि छोटा था लेकिन इस दौरान ही देश को तीन बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। देश में खाद्यान्‍न की बड़ी पैमाने की कमी हो गई और अकाल की स्थिति पैदा हुई। मद्रास में हिंदी विरोधी उग्र प्रदर्शन हुए जिसे सेना की मदद से कुचला गया और फिर कश्‍मीर पर पाकिस्‍तान के साथ दूसरी जंग। हालांकि शास्‍त्री जी ने इन चुनौतियों का बखूबी सामना किया और देश को संकट ने उबारा।