फर्रूखाबाद:अट्ठाइसवाँ मानस सम्मेलन सूर्य पूजन के साथ प्रारम्भ हुआ मानस विचार समिति के संरक्षक राधे श्याम गर्ग ने मोहल्ला आढ़तियान स्थित मिर्चीलाल के फाटक में सूर्य पूजन कर मानस सम्मेलन का शुभारम्भ किया। सूर्य पूजन के बाद भक्तों ने भगवान श्रीराम, सीता, भगवान सूर्य तथा अन्य देवी-देवताओं की आरती की।
मानस के मुख्य अतिथि स्वामी ब्रह्मानन्द त्रिदण्डी जी महाराज जाजलपुर वाले ने सूर्य पूजन के बाद कहा कि मनुष्य को अपने कल्याण के लिये सत्संग आवश्य करना चाहिए। हमें मनुष्य शरीर बहुत मुश्किल से मिला है इस शरीर से हम सत्कर्म करें। जिससे हमें यश, कीर्ति, धन तथा सम्मान मिले। हम अच्छे कर्म करेंगे तभी हमें पुनः मानव शरीर की प्राप्ति होगी। पांच दिन के इस मानस सम्मेलन में हम बाहर से आने वाले मानस विद्वानों से सत्कर्म की शिक्षा लें यही मेरी कामना है। रायबरेली से पधारे मानस विद्वान गजेन्द्र प्रताप सिंह ने जनक सुता जग जननि जानकी की व्याख्या करते हुये कहा कि बालकाण्ड में जहॉ भक्तों की गणना की गयी है वहीं पर सीताराम की वंदना भी की गयी है। उन्होने कहा कि माँ की कृपा से ही निर्मल बुद्धि प्राप्त होती है। सीताराम शक्ति हैं राग दोष ईश्वर में उन्ही के द्वारा प्रदान की जाती है। सीता भगवान की आधी शक्ति हैं। श्रृष्टि की रचना उन्ही के द्वारा की जाती है। ईश्वर में राग व दोष नहीं है लेकिन वह भी ईश्वर में इन्ही की कृपा से प्राप्त होता है।
मानस सम्मेलन के संयोजक डा0 रामबाबू पाठक ने कहा कि पांच दिन मानस विद्वान रामचरित मानस के अट्ठारह बिन्दुओं पर अपनी व्याख्या करेंगे। उन्होने कहा कि ईश्वर को निमित्त मानकर जो योजना बनाई जाती है वह आवश्य सफल होती है। सीताहरण में मारीच ने अपनी मुक्ति की योजना बनाई थी जबकि दुष्ट रावण ने षडयन्त करके सीता के हरण की जिसमें भगवान श्रीराम ने सोने के मृगरूपी मारीच का बध किया जिससे उसकी मुक्ति हुई। इस प्रकार मारीच की योजना ईश्वर को निमित्त थी जबकि रावण की योजना अपयश पाने की थी। हमें धर्म का मार्ग अपनाना चाहिए क्योंकि यह मार्ग ही ईश्वर की ओर जाने का मार्ग है।
इस अवसर पर ब्रजकिशोर सिंह किशोर, बी0 के0 श्रीमाली, नरेन्द्र कुमार गुप्ता, अजय कृष्ण गुप्त, आलोक गौड़, सुजीत व अजीत पाठक, डा0 कृष्णकांत अक्षर, रजनी लौंगानी, श्रीमती पुष्पा गौड़ सहित कई लोगों ने मानस कथा का श्रवण किया।