लखनऊ: स्वाति सिंह और उनकी बेटी के खिलाफ बसपा नेताओं द्वारा प्रदर्शन के दौरान दी गई गालियों पर कार्रवाई करते हुए यूपी पुलिस ने पॉस्को एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया है। स्वाति सिंह ने पुलिस से अपील की थी कि पॉस्को के तहत बसपा नेताओं पर मुकदमा दर्ज किया जाए।
बता दें कि गत शुक्रवार डीजीपी ने हजरतगंज कोतवाली से बसपा समर्थकों के प्रदर्शन की सीडी और बसपा नेताओं द्वारा की गई नारेबाजी की ट्रांसस्क्रिप्ट तलब की थी जिसके बाद नसीमुद्दीन सिद्दीकी समेत कई नेताओं पर पॉस्को एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज होने की संभावना बढ़ गई थी। हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने के बाद दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह ने एक बार फिर बसपा नेताओं पर पॉस्को एक्ट लगाने की मांग की थी। पॉस्को के तहत पुरे मामले की छानबीन की जायेगी और जरुरी कार्यवाही की जायेगी, ऐसा यूपी पुलिस ने कहा है।
क्या है ‘पॉस्को’
पास्को अंग्रेजी भाषा का शब्द है जिसका पूर्णकालिक अर्थ होता है ‘प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फार्म सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012’ यानी ‘लैंगिक उत्पीड़न’ से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012. इस एक्ट के अनुसार, नाबालिग बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराध और छेड़छाड़ के मामलों में कार्रवाई की जाती है और यह एक्ट बच्चों को सेक्सुअल हैरेसमेंट, सेक्सुअल असॉल्ट और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए अमल में लाया गया।
2012 में बनाये गए इस एक्ट की धारा 3 के तहत पेनेट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट को भी परिभाषित किया गया है। इसमें बच्चे के शरीर के साथ किसी भी तरह की हरकत करने वाले शख्स को कड़ी सजा का प्रावधान है।
धारा 4 के तहत वो मामले शामिल किए जाते हैं जिनमें बच्चे के साथ दुष्कर्म या कुकर्म किया गया हो। इसमें सात साल की सजा से लेकर उम्रकैद और जुर्माने का प्रावधान है।
पास्को एक्ट की धारा 6 के अधीन वे मामले लाए जाते हैं जिनमें बच्चों को दुष्कर्म या कुकर्म के बाद गम्भीर चोट पहुंचाई गई हो। आरोप साबित हो जाने पर आरोपी पर दस साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है।
धारा 7 और 8 के तहत वो मामले आते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग से छेडछाड़ की जाती है। आरोप साबित होने के बाद पांच से सात साल तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
18 साल से कम उम्र के बच्चों से किसी भी तरह का यौन व्यवहार इस कानून के दायरे में आ जाता है। इस कानून में लड़के और लड़की को समान रूप से सुरक्षा प्रदान की जाती है। इस कानून के तहत पंजीकृत होने वाले मामलों की सुनवाई विशेष अदालत में होती है।