भ्रष्टाचार के सूत्रधारो पर कारवाही क्यूँ नहीं?

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सवाल बड़ा और सीधा है कि जनपद स्तर पर सरकारी योजनाओ और नियमित सरकारी कामो में फर्जीवाड़े और भ्रष्टाचार के खुलासे के बाद भी जिम्मेदार सरकारी कर्मचारी और अधिकारिओं पर कारवाही क्यूँ नहीं होती| क्यूँ नहीं फर्जीवाड़े के तहत लाभ उठाने वाले घोटालेवाजों के खिलाफ जिला प्रशासन मुकदमा चलाता| इस सवाल का जबाब सिर्फ और सिर्फ जिले का मुखिया दे सकता है क्योंकि भारतीय लोकतान्त्रिक सविधान में भ्रष्टाचार रोकने जिम्मेदारी भले ही हम सभी की हो मगर कारवाही का अधिकार सिर्फ जिले के जिलाधिकारी के पास ही है|

बात बहुत पुरानी नहीं करेंगे पिछले दो माह में आये चर्चित मामलों को ले लें| पंचायत चुनाव का पहला चरण शुरू होने से पहले मतदाता सूची में गंभीर अनिमियताओं की शिकायते आम ग्रामीण जनता द्वारा की गयी| तमाम शिकायतों में तत्कालीन जिलाधिकारी ने जाँच कराने की टिपण्णी करने के बाद शिकायती पत्र को ज्यादातर उसी के पास जाँच के लिए भेज दिया जो परोक्ष या अपरोक्ष रूप से उस कार्य के लिए जिम्मेदार था| नतीजा ज्यादातर मामलों में कुछ भी नहीं हुआ और तमाम जगह जनता चुप बैठ गयी| मगर इसी दौरान एक मामला राजेपुर ब्लाक के अमैयापुर ग्रामसभा बड़ा चर्चित हुआ| इस ग्रामसभा में बड़े पैमाने पर फर्जी मतदाता सूची लेखपाल और प्रधान के सहयोग से बनाने की शिकायत उसी गाँव के कुलदीप ने डीएम् से की थी मगर नतीजा कुछ नहीं निकला| कुलदीप हार नहीं माना और कमिशनरी से लेकर आयोग तक गया और आखिरकार चुनाव प्रेक्षक ने मामले को गंभीरता से लिया तब तत्कालीन डीएम् की जमकर फटकार लगायी| फिर क्या था चुनाव से ठीक पहले तत्कालीन एडीएम, एसडीएम, एएसपी, लेखपाल और तहसीलदार के साथ गाँव में चौपाल लगाकर जाँच की और लगभग एक सैकड़ा वोट फर्जी पाए| वो वोट ज्यादातर उस वक़्त के प्रधान के दूसरे जिलों में रह रहे रिश्तेदारों के थे| ये वोट काटे गए और फिर चुनाव हो गया मगर इस सब गोलमाल के लिए जिम्मेदार के खिलाफ कोई कारवाही नहीं हुई|

क्या बिना फार्म के वोट बन गए थे|

**उन वोटों की जाँच की जिम्मेदारी लेखपाल और तहसीलदार की थे| उसी तहसीलदार की जिसमे प्रथम जाँच में शिकायतकर्ता को ही झूठा बता दिया था और बाद में वही वोट काटने पड़े| क्या उनके खिलाफ कारवाही नहीं होनी चाहिए? या फिर सिर्फ जाँच करने में ही सरकार अपना वक़्त बार बार जाया करती रहेगी|

दूसरा मामला वर्तमान में काशीराम आवास योजना के माकन आवंटन घोटाले का है| इसमें लगातार जाँच में फर्जी आवंटी मिल रहे है| आखिर क्या उन फर्जी आवंटियों के खिलाफ कोई अपराध पंजीकृत नहीं करना चाहिए| झूठे हलफनामे लगाकर उन्होंने गरीबो और जरूरतमंदों के मकान हथिया लिए थे| क्या उन सरकारी कर्मियों के खिलाफ कारवाही नहीं होनी चाहिए जिन्होंने झूठे प्रपत्र जारी कर इस घोटाला करने में सहभागिता निभाई| जाँच रिपोर्ट लगाने वाले कर्मचारियो से लेकर अधिकारी तक क्या इस गड़बड़ी के जिम्मेदार नहीं है|

सरकार की कोई भी योजना हो भ्रष्टाचार के जिन्न और घोटालेबाज हमेशा सेंध लगाते है, शिकायत होती है पकड़ में आते है मगर हर बार किस वजह से वक्श दिए जाते है?

ये तो एक बानगी मात्र है चारो तरफ हर रोज कोई न कोई शिकायतकर्ता फर्जीवाड़े की आवाज लेकर जिला मुख्यालय पर आता है| कभी फर्जी राशन कार्ड की तो कभी नरेगा में फर्जी जॉब कार्ड की| मगर जब उसे इस पर माकूल जबाब नहीं मिलता तो बेचारा खामोश होकर बैठ जाता है|

जबाब का इन्तजार हम करेंगे इसी लेख में आपकी टिपण्णी के साथ-