फर्रुखाबाद: मानस सम्मेलन के दूसरे दिन मानस मनीषियों ने रामचरित मानस को अपने आचरण में उतारने का आवाह्न किया। मानव शरीर किराये का घर है। हमारे इस शरीर को श्रीराम का ध्यान, सत्कर्म एवं सत्संग में लगाना चाहिये तभी हमारा कल्याण सम्भव है।
मोहल्ला अढ़तियान स्थित मिर्चीलाल के फाटक में मानस विचार समिति के संयोजक डा0 रामबाबू पाठक के संयोजन में चल रहे 27वें पांच दिवसीय मानस सम्मेलन में जालौन से पधारे मानस मनोहर ईश्वरदास ब्रह्मचारी ने कर्म प्रधान विश्व रचि राखा प्रसंग पर बोलते हुये कहा कि हमारे रामचरित मानस को अपने आचरण में उतारना चाहिये। उन्होने कहा कि श्रीराम व रावण की राशि एक ही है पर श्रीराम का आचरण जीवन में उतारने योग्य है| जबकि रावण का आचरण निन्दनीय है। उन्होने भजन प्रस्तुत किया जल जाये जिव्हा पापिनी हरि नाम के बिना सियाराम के बिना घनश्याम के बिना।
झांसी से आये मानस विद्वान अरूण गोस्वामी ने कहा कि यदि हमने राम नहीं लिया तो हमें गंगा के किनारे दो बूंद जल भी नहीं मिलेगा। मछली केवल जल में जीवित रह सकती है परन्तु दूध में मछली डालने पर वह तड़प तड़प कर मर जाती है। बृन्दा सती प्रसंग पर श्री गोस्वामी ने कहा कि वृन्दा के पति जालंधर ने युद्ध में सभी देवताओं को परास्त कर दिया। भगबान शिब से भी राक्षस जलंधर का महायुद्ध हुआ पर उसे वह परास्त नहीं कर पाये। इस पर भगबान विष्णु ने जालंधर का रुप रखकर सती वृन्दा के सतीत्व को भंग करना चाहा तो सती वृन्दा ने विष्णु जी को पहचानकर उन्हें पाषाण होकर सालिगराम बन जाने का श्राप दे दिया। इस पर देवी लक्ष्मी ने आकर सती वृन्दा को तुलसी बन जाने का श्राप दे दिया इसीलिये सालिगराम को भोग लगाते समय तुलसीदल लगाया जाता है। श्राप से ग्रसित सती वृन्दा ने देवी लक्ष्मी को श्राप दिया जैसे तुम्हारे पति विष्णु ने मेरा हाथ पकड़कर मेरा सतीत्व भंग किया है उसी प्रकार त्रेतायुग में मेरे पति जलंधर रावण के रुप में तुम्हारे कर कमलों का स्पर्ष अवश्य करेगें।
ग्वालियर से पधारे मनीषि विद्वार डा0 मानस मनोहर दुबे ने लक्ष्मण गीता प्रसंग पर कहा कि मानव शरीर किराये का घर है पर हम इस शरीर को अपना मान वैठे हैं। शरीर की सारी क्रियायें भगबान की इच्छा से पूरी होती हैं अतः हमें इस शरीर से श्रीराम के नाम का ध्यान सत्संग व सत्कर्म करना चाहिये। उन्होने कहा कि श्रीराम को अयोध्या का राज सौंपा गया तो उन्होने सेवक बनकर जनता की सेवा की। जबकि महाभारत काल में धृष्तराष्ट्र राज्य पाकर वह उसके मालिक बन बैठे और राजसत्ता का दुरूपयोग किया इसी कारण उनके पुत्रों और उनके राज्य का नाश हो गया। विठूर कानपुर से आये मानस मनीषि स्वामी शिबचेतन ब्रह्मचारी ने कहा मानव जीवन थोड़े समय का है हमें भगबान का नाम लेना चाहिये।
उन्होने कहा कि जब शिशु मां के पेट में होता है तो भगबान से पेट की गन्दगी से निकलने की प्रार्थना करता है और भगबान से उनकी पूजा पाठ, दान पुण्य, सत्संग, समाज सेवा, एवं तीर्थ यात्रा करने का बादा करता है पर जन्म लेने के बाद मानव ईश्वर को भूलकर 99 के फेर में पड़ जाता है। उन्होने कहा कि जबकि हमें गृहस्थ धर्म का पालन करने के साथ श्रीराम का ध्यान व सत्संग अवश्य करना चाहिये। संचालन पण्डित रामेन्द्र नाथ मिश्र और तबले पर संगत मुन्ना सिंह ने की। इस मौके पर अशोक रस्तोगी, दिवाकर लाल अग्निहोत्री, सुजीत पाठक, आलोक गौड़, त्रिवेदी, अमन चतुर्वेदी, अजीत व विशेष पाठक, रमेश चन्द्र चतुर्वेदी, भारत सिंह, रामनरायन दीक्षित, अपूर्व व अद्भुत पाठक सहित सैकड़ों भक्त मौजूद रहे।