पंचायत चुनाव 2015: चल दिए चुनाव लड़ने, नेताजी पहले समझिए तो सही पंचायत राज है क्या?

FARRUKHABAD NEWS Politics

Editorपंचायत चुनाव की घमासान शुरू हो चुकी है| फर्रुखाबाद के सात ब्लाक में से अब तक चार ब्लाको में नामांकन भी हो चला है| दर दर भटक रहे नेताजी के पास कोई विज़न नहीं है| केवल जीत जाए और माल पैदा हो जाए इसी आशा में चुनाव लड़ रहे है| ये खालिस सत्य है| कुछ अपना राजनैतिक अस्तित्व बचाने के उद्देश्य से लड़ रहे है तो कुछ पहचान बन जाए इसलिए| मगर इन सब के पास कोई योजना नहीं है जीतने के बाद के लिए| हाँ जीतने के लिए जरूर योजना है|
कुछ नेता अफसरों के तबादले कराकर अपने पक्ष में माहौल खड़ा कर रहे है तो कुछ दूसरो को नीचे दिखा कर| दम्भ और गुरुर में मतदाता कहाँ खड़ा है इस पर चिंता किसी को नहीं| मगर इस पंचायत चुनाव में फर्रुखाबाद की जनता एक बार फिर से फ़र्रुखाबादी डाव दिखाने वाली है जिसका परिणाम आने वाली 1 नबम्बर को मिलेगा| बाहरी बर्दास्त नहीं…..|

उम्मीदवारों से कुछ सवाल

जिला व क्षेत्र पंचायत के उम्मीदवारों से पूछिये कि क्या आप जानते हैं कि 1992 में हुए 73वें संविधान संशोधन के कारण, नगरपालिकाओं व पंचायतों को ’तीसरी सरकार’ का दर्जा मिलना संभव हुआ ?

क्या आप जानते हैं कि 73वें संशोधन के बाद अब यह विधानसभा की जिम्मेदारी है कि वह जिला पंचायतों को कृषि विकास, भूमि सुधार, जल संसाधन, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, गरीबी उन्मूलन, ग्रामीण सड़क, ग्रामीण विद्युतीकरण और ग्रामोद्योग आदि गांव विकास के कार्यों की योजना, निर्णय तथा क्रियान्वयन का पर्याप्त अधिकार दे ?

क्या आप जानते हैं कि उ. प्र. की विधानसभा ने प्रदेश की पंचायती राज संस्थाओं को न पर्याप्त अधिकार दिए हैं, न पर्याप्त कर्मचारी और न पर्याप्त कोष ? लिहाजा, हमारी पंचायतें ’तीसरी सरकार’ बनने की बजाय, प्रशासन के बताये काम निपटाने वाली संस्था बन कर रह गयी है| स्पष्ट कहें तो महज् एक ऐसा ठेकेदार बनकर रह गई है, जिन पर न प्रशासन यकीन करता है और ग्रामसमाज। इस स्थिति में न तो सही मायनों में हमें असली आजादी मिल सकती है और न ही हमारे गावों व लोकतंत्र का सही विकास हो सकता है।
क्या आप नहीं चाहते कि उ. प्र. के त्रुटिपूर्ण पंचायती राज अधिनियम को दुरुस्त किया जाये ?

क्या आप नहीं चाहते कि बतौर पंचायती राज प्रतिनिधि, आपको वे सभी संविधान प्रदत अधिकार मिलें, जिनके जरिए आप अपने कर्तव्य का पूरी तरह निर्वाह कर सकें ?

क्या आप नहीं चाहते कि पंचायती राज संस्थाओं को नेकनामी संस्था में बदला जाये ?

इन सवालों से उठा चित्र स्पष्ट है कि यदि पंचायती राज संस्थाओं को सचमुच बदनामी से बचना है, यदि हम चाहते हैं कि पंचायती राज संस्थान सत्ता के विकेन्द्रीकरण के उस लक्ष्य को प्राप्त करें, जिन्हे सामने रखकर 73वां संविधान संशोधन किया गया है, तो तद्नुसार अधिकार और व्यवस्था दिए बगैर यह संभव नहीं है। नैतिकता और जागरूकता तो बुनियादी शर्त हैं हीं।

जागृति जरूरी

आज सचमुच जिला पंचायत के हर उम्मीदवार को जानना चाहिए कि बतौर जिला पंचायत सदस्य, वह कम से कम 50 हजार गांववासियों का प्रतिनिधित्व करता है। करीब 25 से 30 ग्राम पंचायतों व ग्रामसभाओं का ख्याल रखना उसकी निजी जवाबदेही है। उससे जानना चाहिए कि प्रत्येक जिला पंचायत में छह समितियां होती हैं। प्रत्येक समिति में छह सदस्य होते हैं। प्रत्येक सदस्य, किन्ही दो समितियों का सदस्य होता ही है। दो समितियों को छोङकर, प्रत्येक समिति का सभापति, कोई न कोई सदस्य ही होता है। प्रत्येक समिति का उपसभापति तो निश्चित रूप से जिला पंचायत सदस्य ही होता है। कल को वह भी होगा; तब उसकी जिम्मेदारी होगी कि महीने में एक बार प्रत्येक समिति की बैठक हो। उसे पता होना चाहिए कि प्रत्येक समिति चाहे तो, आवश्यकतानुसार उपसमितियां भी बना सकती है। वह जानें कि जिला पंचायत के समस्त निर्णय और उनका क्रियान्वयन, इन्ही समितियों/उपसमितियों के माध्यम से ही किए जाते हैं।

कुछ उम्मीद

स्पष्ट है कि समितियों के सभापति/उपसभापति/सदस्य के तौर पर एक जिला पंचायत उम्मीदवार के पास कई काम और अधिकार होते हैं। जरूरत होती है, तो सिर्फ समर्पण और संकल्प की। क्या उम्मीदवारी का पर्चा भरने वाले हमारे आज के उम्मीदवारों के पास है ?

यह सवाल मतदाता और उम्मीदवार..दोनो के लिए है।

सच है कि यह जवाबदेही, सहज् नहीं है। फिर भी इसी व्यवस्था में कई ने इस जवाबदेही का निर्वाह किया है। वे ऐसा इसलिए कर पाये, चूंकि राजनैतिक दल, व्यक्ति अथवा स्वेच्छा से प्रेरित होकर चुनाव के मैदान में कूदने के बावजूद, जीत के बाद उन्होने इन सभी का होते हुए भी गांव और गांव मंे भी सबसे जरूरतमंद के हित व बेहतरी को अपनी प्राथमिकता बनाया; तय कर लिया कि समुचित विकास, सामाजिक न्याय और सुशासन की राह में वे कोई रोङा स्वीकार नहीं करेंगे।
कहना न होगा कि यह संकल्प का मामला है; लाखों-लाख गांवों के उत्थान का मामला है। संविधान प्रदत तीसरी सरकार को अपनी सरकार बनाने का काम, सचमुच ग्रामोदयी सपने को सच करने का काम है। हम सभी को इस काम में लगना चाहिए। उम्मीद करनी चाहिए कि इन पंचायती चुनावों के दौरान और पश्चात् उत्तर प्रदेश की जनता अपनी जागरुकता का दम दिखायेगी। अपनी जरूरतों और आकांक्षाओं को लोक घोषणा पत्र खुद बनायेगी और चुनाव पश्चात् उसे लागू करने के लिए जीते हुए उम्मीदवार को प्रेरित, विवश और सहयोग करेगी।